वक्फ संशोधन बिल के बहाने क्या मंदिरों का खज़ाना हथियाना चाहती हैं सरकार? हिंदू बोर्ड के पास हैं 150 लाख एकड़ जमीन
Sayyed Feroz Aashiq
केंद्र सरकार द्वारा लाया गया वक्फ बोर्ड संशोधन बिल चर्चा का केंद्र बन गया है। इस बिल को लेकर सरकार का तर्क है कि यह संशोधन वक्फ संपत्तियों के मुनासिब उपयोग और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए लाया गया है। वहीं, एक समुदाय इस बिल को अपने धार्मिक मामलों में सरकार की सीधी दखलंदाजी करार दे रहा है। वक्फ संपत्तियों पर चर्चा के साथ अब इसे अन्य धार्मिक समुदायों की संपत्तियों से भी जोड़ा जा रहा है, जहां वक्फ संपत्तियों की संख्या अपेक्षाकृत कम बताई जा रही है।
वक्फ संपत्ति बनाम अन्य धार्मिक संपत्तियां
वक्फ बोर्ड को लेकर प्रचार किया जा रहा है कि यह देश में रेलवे और सेना के बाद तीसरी सबसे बड़ी संपत्ति है। लेकिन इसके विरोध में कई जानकारों का दावा है कि वक्फ बोर्ड के पास केवल 9.5 लाख एकड़ जमीन है, जबकि हिंदू बोर्ड के पास 150 लाख एकड़ जमीन है। उदाहरण के तौर पर, तमिलनाडु में हिंदू बोर्ड के पास 3.5 लाख एकड़, और आंध्र प्रदेश में 4.65 लाख एकड़ जमीन है, जो वक्फ बोर्ड की कुल संपत्ति से कहीं अधिक है।
सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर तर्क
वक्फ संपत्तियों पर सोशल मीडिया से लेकर सार्वजनिक मंचों पर चर्चाएं तेज हैं। यहां तर्क दिया जा रहा है कि भारत के 29 राज्यों और 8 यूनियन टेरिटरीज में हिंदू बोर्ड के पास कम से कम 150 लाख एकड़ जमीन होनी चाहिए। इसमें मंदिर, मठ, आश्रम, वेद पाठशालाएं, और अन्य धार्मिक स्थल शामिल हैं।
विरोध करने वालों की राय
वक्फ बोर्ड संशोधन का विरोध करने वालों का कहना है कि यह सरकार की रणनीति है, जो मुसलमानों की धार्मिक जमीन छीनने की शुरुआत कर रही है। इसके बाद सिख, ईसाई, बौद्ध, और जैन समुदायों के साथ भी यही होगा। आलोचकों का मानना है कि सरकार का असली उद्देश्य हिंदू बोर्ड की जमीन और मंदिरों में जमा सोने-चांदी को नियंत्रित करना है।
मंदिरों के तहखाने खोलने की कोशिश
इस मुद्दे पर यह भी चर्चा हो रही है कि पहले भी उत्तर प्रदेश सरकार ने नुज़ूल बिल पास कराने की कोशिश की थी, जिसके तहत हिंदुओं की संपत्तियों को कब्जे में लिया जा सकता था। विधानसभा में भले ही यह बिल पास हो गया हो, लेकिन विधान परिषद में इसे रोक दिया गया और एक कमेटी के पास भेज दिया गया। बीजेपी के ही विधायकों के विरोध के बाद यह बिल फिलहाल रुका हुआ है।
हिंदू-मुस्लिम संपत्ति विवाद और नफरत का प्रचार
जानकारों का कहना है कि देश में कई असंवैधानिक कानून लाए जा रहे हैं, जिनका प्रचार-प्रसार अक्सर मुसलमानों को निशाना बनाकर किया जाता है। इस तरह के कानूनों का विरोध सबसे पहले मुसलमान ही करते हैं, लेकिन बाकी समुदाय तब बोलते हैं जब उनका नंबर आता है।
विभिन्न धार्मिक बोर्डों का गठन
देश में हिंदुओं के कई धार्मिक पंथ हैं, जिसके चलते एक एकीकृत बोर्ड संभव नहीं है। हर राज्य में अलग-अलग ट्रस्ट हैं, जैसे कि राम मंदिर ट्रस्ट, शिव ट्रस्ट, कृष्णा ट्रस्ट, और तिरुपति बालाजी ट्रस्ट। इसी तरह, मुसलमानों के लिए शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड हैं, जबकि सिखों के लिए गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी बनी हुई है।
वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को लेकर जारी विवाद और चर्चाएं सरकार की मंशा और संपत्तियों के प्रबंधन पर सवाल उठा रही हैं। एक तरफ वक्फ संपत्तियों के सही उपयोग की बात हो रही है, वहीं दूसरी ओर इसे धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा है। आगे यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार और विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच इस मुद्दे पर क्या समाधान निकलता है।