मनोज जरांगे पाटिल का बड़ा कदम: मराठवाड़ा चुनावों में महायुति के खिलाफ नई रणनीति का ऐलान
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में आज पर्चा वापस लेने की अंतिम तिथि है, लेकिन इससे पहले राजनीतिक हलचल बढ़ गई है। मराठा आरक्षण आंदोलन के प्रमुख चेहरा, मनोज जरांगे पाटिल, अपने समर्थन की घोषणा को लेकर सुर्खियों में हैं। पाटिल के समर्थन के लिए उम्मीदवारों का जमावड़ा उनके आवास पर देखा जा रहा है। खबरों के मुताबिक, जरांगे ने आठ जिलों की प्रमुख विधानसभा सीटों पर समर्थन देने का निर्णय लिया है, जिनमें जालना जिले की परतुर, धार शिव जिले की भुमपराडा, हिंगोली जिले की वसमत, छत्रपति संभाजी नगर की फूलनबारी, और बीड़ जिले की केज विधानसभा सीटें प्रमुख हैं।
जरांगे का चुनावी रणनीति और महायुति के खिलाफ बयान
मनोज जरांगे पाटिल ने ऐलान किया है कि इस बार वे महायुति गठबंधन को सत्ता में नहीं आने देंगे। उन्होंने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि मराठा समुदाय के लिए कुनबी प्रमाणपत्र की मांग को लेकर उन्होंने बार-बार अनशन और आंदोलन किए, लेकिन सरकार ने उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया। अब, उनका लक्ष्य मराठा समुदाय के मुद्दों के अलावा मुसलमानों, दलितों और किसानों को भी एकजुट करना है, ताकि महायुति सरकार को सत्ता से उखाड़ा जा सके।
जरांगे का प्रभाव और चुनावी समीकरण
मनोज जरांगे पाटिल की मराठवाड़ा क्षेत्र में अच्छी पकड़ मानी जाती है, खासकर युवा वर्ग में उनकी लोकप्रियता है। यह क्षेत्र 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी का गढ़ रहा था, जहां बीजेपी ने सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि, हाल ही में हुए चुनावों में बीजेपी को इस क्षेत्र में हार का सामना करना पड़ा, और कई बड़े नेताओं को हार झेलनी पड़ी।
जरांगे के आंदोलन और उनकी लोकप्रियता के चलते वे इस बार के चुनावों में बड़ा फैक्टर साबित हो सकते हैं। अगर जरांगे पाटिल मराठा, मुस्लिम, दलित और किसान वर्गों को एक मंच पर लाने में सफल होते हैं, तो यह महायुति के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
उनकी इस चुनावी रणनीति ने विपक्षी दलों और महायुति दोनों में हलचल पैदा कर दी है। अगर जरांगे का समर्थन सही दिशा में जाता है और विपक्षी दल इस समर्थन का फायदा उठाते हैं, तो महाराष्ट्र के चुनावी नतीजे अप्रत्याशित हो सकते हैं।