औरंगाबाद: इतिहास, राजनीति और बदलते समीकरणों का केंद्र
Writer : Feroz Aashiq
महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर की पहचान सिर्फ उसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों से नहीं, बल्कि इसकी राजनीतिक गतिविधियों और सामाजिक समीकरणों से भी जुड़ी हुई है। इतिहास से लेकर वर्तमान तक, यह शहर राजनीति के जटिल और महत्वपूर्ण दौरों का हिस्सा रहा है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
औरंगाबाद की नींव 1610 में अहमदनगर के निजामशाही के सैन्य नेता मलिक अंबर ने खड़की नामक कस्बे के रूप में रखी थी। 1653 में, जब मुगल सम्राट औरंगजेब ने इसे दक्कन की राजधानी बनाया, तब इसका नाम बदलकर औरंगाबाद कर दिया गया। यह शहर तब से लेकर आज तक भारत के विभिन्न कालखंडों में राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है।
इस क्षेत्र का महत्व केवल मुगल काल तक सीमित नहीं है। दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने 1327 में अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद स्थानांतरित की थी। बाद में, आसफजाही शासन ने भी इसे अपनी राजधानी बनाया।
समाज और सांस्कृतिक विविधता
आज का औरंगाबाद एक बहुसांस्कृतिक और अल्पसंख्यक बहुल शहर है। 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां की आबादी का 42% हिस्सा अल्पसंख्यकों का है। इनमें:
- मुसलमान: 27%
- बौद्ध: 13.17%
- जैन: 1.34%
सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता की यह विशेषता, शहर को एक अनोखी पहचान देती है। लेकिन हाल के दशकों में, शहर की राजनीति में इस विविधता का दुरुपयोग धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए हुआ है।
राजनीतिक परिदृश्य और विकास की राजनीति
कांग्रेस का दौर
स्वतंत्रता के बाद, औरंगाबाद की राजनीति पर लंबे समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा।
- प्रसिद्ध नेता रफीक जकारिया ने शहर के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने न्यू औरंगाबाद और सिडको जैसी योजनाओं के माध्यम से शहर का विस्तार किया।
- जकारिया को “औरंगाबाद का रचनाकार” कहा जाता है।
ध्रुवीकरण की राजनीति का उभार
1989 के बाद, शहर में शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने तेजी से उभरकर, राजनीति के समीकरण बदल दिए।
- हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण शहर की राजनीति का प्रमुख आधार बन गया।
- शिवसेना ने नारे जैसे ‘खान हवा की, बाण हवा’ और शहर का नाम बदलने जैसे मुद्दों को केंद्र में रखा।
- 2014 के बाद, भाजपा ने अपने सहयोगियों के साथ हिंदुत्व के एजेंडे को और अधिक मुखर बनाया।
एआईएमआईएम और नई चुनौतियां
प्रवेश और विस्तार
2012 में, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने औरंगाबाद में प्रवेश किया।
- 2014 में इम्तियाज जलील ने औरंगाबाद मध्य से जीत दर्ज की।
- पार्टी के आने से शहर में मुस्लिम समुदाय को राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिला, लेकिन इसके साथ ही ध्रुवीकरण की राजनीति भी तेज हो गई।
चुनौतियां
- ध्रुवीकरण का प्रभाव: हिंदू और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण कांग्रेस को लगभग अप्रासंगिक बना चुका है।
- मुस्लिम वोटों का विभाजन: एआईएमआईएम के अलावा अन्य दल, जैसे समाजवादी पार्टी और वंचित बहुजन अघाड़ी, मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
विधानसभा चुनाव 2024: भविष्य के समीकरण
भाजपा: मजबूत स्थिति में
- भाजपा ने फिर से अतुल सावे को उम्मीदवार बनाया है।
- पार्टी धार्मिक ध्रुवीकरण और नाम बदलने के एजेंडे पर केंद्रित है।
- नारे: ‘वोट जिहाद’ और ‘छत्रपति संभाजीनगर’।
एआईएमआईएम: अस्तित्व की लड़ाई
- पार्टी के भीतर गुटबाजी और गफ्फार कादरी जैसे नेताओं के बगावत करने से इम्तियाज जलील की स्थिति कमजोर हुई है।
- मुस्लिम वोटों के विभाजन को रोकना एआईएमआईएम के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
महाविकास अघाड़ी (एमवीए): कमजोर स्थिति
- कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के गठबंधन ने लाहू शेवाले को उम्मीदवार बनाया है।
- अंदरूनी कलह और कमजोर उम्मीदवार के कारण एमवीए का प्रदर्शन अस्थिर दिखाई देता है।
वंचित बहुजन अघाड़ी (बीवीए): मुस्लिम वोटों पर नजर
- प्रकाश आंबेडकर के नेतृत्व वाली इस पार्टी ने अफसर खान को मैदान में उतारा है।
- बीवीए और एआईएमआईएम के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा मुस्लिम वोटों को विभाजित कर सकती है।
मुख्य मुद्दे और संभावित परिणाम
ध्रुवीकरण बनाम विकास
शहर की राजनीति में विकास के मुद्दे अक्सर धार्मिक ध्रुवीकरण के पीछे दब जाते हैं।
- भाजपा ने हिंदू वोटों को जोड़ने के लिए धार्मिक एजेंडे को प्रमुखता दी है।
- एआईएमआईएम, अपने पिछले प्रदर्शन को आधार बनाकर, मुस्लिम वोटों को एकजुट करने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस का हाशिए पर जाना
कभी औरंगाबाद की राजनीति का केंद्र रही कांग्रेस, अब संघर्ष करती दिख रही है।
- पार्टी की अंदरूनी कमजोरी और स्पष्ट रणनीति की कमी ने उसे अप्रासंगिक बना दिया है।
मुस्लिम नेतृत्व की चुनौती
- एआईएमआईएम को दूसरे समुदायों के वोट हासिल करना जरूरी है, केवल मुस्लिम वोट पर्याप्त नहीं होंगे।
- मुस्लिम प्रतिनिधित्व की राजनीति में बंटवारे का असर, लंबे समय में समुदाय के लिए हानिकारक हो सकता है।
Aurangabad
औरंगाबाद का 2024 का चुनाव केवल एक विधानसभा सीट की लड़ाई नहीं, बल्कि यह शहर की राजनीतिक दिशा और सामाजिक संरचना का भविष्य तय करेगा।
- भाजपा और एआईएमआईएम के बीच सीधी टक्कर, ध्रुवीकरण की राजनीति को और तेज कर सकती है।
- अगर विपक्ष, विशेष रूप से एआईएमआईएम, मुस्लिम वोटों को एकजुट नहीं कर पाती, तो भाजपा की जीत आसान हो सकती है।
इस चुनाव में औरंगाबाद के नागरिकों को यह तय करना होगा कि वे धर्म के नाम पर विभाजन की राजनीति को जारी रखें या विकास और समरसता की नई राह चुनें। यह चुनाव केवल पार्टियों के लिए नहीं, बल्कि औरंगाबाद के भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण है।