“हमें हिंदू धर्म मत सिखाओ”: मनोज जरांगे ने कालीचरण पर किया तीखा हमला
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल और धर्मगुरु कालीचरण महाराज के बीच तीखी जुबानी जंग ने सियासी माहौल गरमा दिया है। औरंगाबाद में महायुति उम्मीदवार के समर्थन में आयोजित एक सभा के दौरान कालीचरण ने विपक्ष और मनोज जरांगे पर निशाना साधते हुए उन्हें “राक्षस” तक कह दिया। इस बयान ने विवाद को जन्म दिया, जिसके बाद मनोज जरांगे ने कालीचरण पर पलटवार किया।
मनोज जरांगे का करारा जवाब
कालीचरण के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए मनोज जरांगे पाटिल ने कहा,
“जब भी हिंदू धर्म पर संकट आता है, हम आगे आते हैं। आपको मराठा समुदाय का दर्द नहीं समझ आता। हमसे नफरत क्यों? सरकार ऐसे संतों को उपदेश देने के लिए क्यों भेजती है?”
जरांगे ने कालीचरण पर सवाल उठाते हुए कहा कि,
“आप बटुए लेकर कीर्तन करें, हमें हिंदू धर्म सिखाने की जरूरत नहीं है। आरक्षण के मुद्दे पर आपका क्या लेना-देना? जब मेरी मां और बहन पर हमला हुआ, तब आप कहां थे?”
कालीचरण के आरोप
कालीचरण महाराज ने एक सभा में मनोज जरांगे पर आरोप लगाते हुए कहा था,
“हिंदू-हिंदू में फूट डालने का एक आंदोलन शुरू हो गया है। ये लोग जातियों के आरक्षण के नाम पर हिंदुत्व को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं।”
उन्होंने आगे कहा,
“क्या आप जानते हैं कि तनाव की स्थिति में लाखों लोग कहां खाएंगे, कहां जाएंगे? ऐसे आंदोलनों से हिंदू समाज कमजोर होता है।”
राजनीतिक विवाद की गर्मी
यह विवाद सिर्फ मनोज जरांगे और कालीचरण तक सीमित नहीं है। चुनावी माहौल में इस जुबानी जंग ने मराठा आरक्षण के मुद्दे को फिर से केंद्र में ला दिया है। मनोज जरांगे पाटिल ने इसे मराठा समुदाय के अधिकारों की अनदेखी करार दिया, जबकि कालीचरण ने इसे हिंदुत्व को तोड़ने की साजिश बताया।
जरांगे ने उठाए बड़े सवाल
जरांगे ने कालीचरण से तीखे सवाल पूछे,
“मराठा आरक्षण का मुद्दा वारकरी संप्रदाय के संस्कार सिखाने से अलग है। बाबा, आप सरकार की तरफ से क्यों बोल रहे हैं? आपने मराठा बेटों का समर्थन क्यों नहीं किया?”
राजनीतिक विश्लेषण
चुनाव प्रचार के आखिरी दिन इस विवाद ने सत्तारूढ़ महायुति और विपक्षी दलों के बीच पहले से मौजूद तनाव को और बढ़ा दिया है। मनोज जरांगे का समर्थन मराठा समुदाय में गहरा है, वहीं कालीचरण का हिंदुत्ववादी रुख महायुति को फायदा पहुंचा सकता है।
मराठा आरक्षण और हिंदुत्व की राजनीति के बीच यह जुबानी जंग चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकती है। अब यह देखना होगा कि मतदाता इन आरोप-प्रत्यारोपों को किस नजरिए से देखते हैं और इसका चुनावी परिणामों पर क्या असर पड़ता है।