अमेरिका में अडानी पर धोखाधड़ी का आरोप, राहुल गांधी ने मोदी सरकार को घेरा
नई दिल्ली: भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी पर अमेरिका में निवेशकों ने धोखाधड़ी और 250 मिलियन डॉलर (लगभग 2200 करोड़ रुपये) की रिश्वत देने का आरोप लगाया है। यह आरोप न्यूयॉर्क की संघीय अदालत में दायर एक मुकदमे में लगाया गया है। दावा किया गया है कि अडानी समूह ने एशिया में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के अनुबंध और वित्त पोषण हासिल करने के लिए भारतीय सरकारी अधिकारियों को रिश्वत दी।
इस खबर के सामने आने के बाद अडानी ग्रुप के बॉन्ड्स में गिरावट दर्ज की गई है। समूह ने 60 करोड़ रुपये की फंड जुटाने की योजना भी रद्द कर दी है।
राहुल गांधी का तीखा हमला
इस मामले को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा, “अडानी ने अमेरिका में अपराध किया है, लेकिन भारत में उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। जब कोई आम आदमी छोटा सा अपराध करता है, तो उसे जेल हो जाती है, लेकिन अडानी खुलेआम घूम रहे हैं। यह भाजपा सरकार के संरक्षण के बिना संभव नहीं है।”
राहुल ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के गठन की मांग करते हुए कहा कि अडानी समूह पर लगे इन आरोपों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी खुद अडानी के साथ खड़े हैं। अडानी भाजपा की फंडिंग करते हैं और देश को हाईजैक कर रखा है।”
अडानी ग्रुप का पक्ष
अडानी ग्रुप ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि ये दावे निराधार हैं और समूह हमेशा से उच्चतम कानूनी और नैतिक मानकों का पालन करता रहा है। हालांकि, इस विवाद के चलते अडानी समूह की साख को बड़ा झटका लगा है।
भाजपा और सरकार की चुप्पी
भाजपा की ओर से इस मामले पर फिलहाल कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, पार्टी के कुछ नेताओं ने राहुल गांधी के बयानों को “राजनीतिक चाल” करार दिया है।
विपक्ष की एकजुटता
इस मुद्दे पर विपक्षी दलों ने सरकार को घेरने की रणनीति बनाई है। तृणमूल कांग्रेस, आप, और लेफ्ट पार्टियों ने भी अडानी मामले की जांच की मांग का समर्थन किया है। संसद के आगामी सत्र में यह मामला जोर-शोर से उठने की संभावना है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख पर असर
अडानी समूह पर लगे आरोपों का असर भारत की वैश्विक साख पर भी पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला भारतीय कॉर्पोरेट जगत और सरकारी तंत्र की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है।
इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट हो गया है कि अडानी समूह और भाजपा सरकार के बीच कथित संबंध विपक्षी राजनीति के केंद्र में रहेंगे। अब यह देखना होगा कि सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है और क्या जांच के लिए कोई कदम उठाया जाता है।