दिल्ली हाईकोर्ट ने AIMIM का पंजीकरण रद्द करने की याचिका खारिज की, कहा – “मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप”
दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलिमीन (AIMIM) का पंजीकरण रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में दावा किया गया था कि AIMIM का संविधान केवल मुस्लिम समुदाय के हितों की बात करता है, जो देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे और संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
कोर्ट का निर्णय
20 नवंबर को पारित अपने फैसले में जस्टिस प्रतीक जालान ने कहा कि याचिका में कोई दम नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि AIMIM ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए की आवश्यक शर्तों को पूरा किया है। अधिनियम के तहत, प्रत्येक राजनीतिक दल को अपने संविधान में यह घोषित करना होता है कि वह भारतीय संविधान और इसके समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखता है।
कोर्ट ने कहा, “याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर AIMIM ने यह शर्त पूरी की है। इसके संविधान में संशोधन करते हुए 1989 में चुनाव आयोग को आवश्यक दस्तावेज सौंपे गए थे।”
याचिकाकर्ता के आरोप
याचिकाकर्ता तिरुपति नरसिम्हा मुरारी ने 2018 में यह याचिका दायर की थी। उन्होंने तर्क दिया कि AIMIM का संविधान केवल मुसलमानों के हितों को बढ़ावा देता है, जो धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। मामले की सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि याचिकाकर्ता पहले शिवसेना का सदस्य था और अब भाजपा से जुड़ा हुआ है।
कोर्ट का तर्क
हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के तर्क AIMIM सदस्यों के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप के समान हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अपवादों को छोड़कर, चुनाव आयोग के पास किसी राजनीतिक दल के पंजीकरण को पुनर्विचार करने का अधिकार नहीं है।
याचिका खारिज, AIMIM का पक्ष मजबूत
कोर्ट के इस फैसले से AIMIM को बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने याचिका को आधारहीन करार देते हुए इसे खारिज कर दिया। फैसले के बाद AIMIM की वैधता और उसकी धर्मनिरपेक्ष नीतियों पर उठाए गए सवालों पर विराम लग गया है।