महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024: कांग्रेस की ऐतिहासिक हार और संगठन पर संकट
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस ने अपने इतिहास का सबसे खराब प्रदर्शन किया है। कभी राज्य की राजनीति पर राज करने वाली पार्टी मात्र 16 सीटों पर सिमटकर रह गई। इस शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस के नेतृत्व, संगठन और चुनावी रणनीति पर गंभीर सवाल उठे हैं।
नेतृत्व पर उठे सवाल
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले को इस हार का मुख्य कारण माना जा रहा है। पार्टी के एक बड़े गुट का कहना है कि पटोले की आक्रामक राजनीति और नेतृत्व ने संगठन को कमजोर किया। नाना पटोले पर वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार करने और पार्टी में गुटबाजी को बढ़ावा देने के आरोप हैं। उनकी रणनीतियों से नाराज होकर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, मिलिंद देवड़ा और संजय निरुपम जैसे बड़े नेता पार्टी छोड़कर चले गए।
चुनावी प्रदर्शन का बुरा हाल
इस चुनाव में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता हार गए। बाला साहेब थोराट, जो 1985 से लगातार संगमनेर सीट से जीतते आ रहे थे, हार गए। इसी तरह, पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण कराड साउथ सीट से हार गए। खुद नाना पटोले भी साकोली सीट से मुश्किल से 200 वोटों के अंतर से जीत पाए। पार्टी के पास अब राज्य में मजबूत नेतृत्व और संगठन की कमी साफ नजर आ रही है।
रणनीति की विफलता
कांग्रेस की चुनावी रणनीति जनता से जुड़ने में असफल रही। पार्टी ने भ्रष्टाचार, अपराध और शिवाजी महाराज की मूर्ति गिरने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को छोड़कर संविधान बचाने जैसे विषयों को प्राथमिकता दी। इसके विपरीत महायुति गठबंधन ने महिलाओं के खातों में पैसे डालने और बेरोजगारी कम करने जैसे वादों के साथ जनता तक पहुंच बनाई। कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद आत्ममुग्ध हो गई थी और जमीनी स्तर पर काम करने के बजाय गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे में उलझी रही।
कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट
1978 के बाद यह पहली बार है जब कांग्रेस महाराष्ट्र में इतनी कमजोर स्थिति में है। पार्टी के अंदर मतभेद और गुटबाजी ने इसे और कमजोर किया है। वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी और जमीनी मुद्दों से दूरी ने कांग्रेस को जनता से काट दिया है।
भविष्य की राह
इस हार के बाद कांग्रेस के लिए जरूरी है कि वह नेतृत्व में बदलाव करे और संगठन को मजबूत बनाने के साथ-साथ जमीनी स्तर पर काम करे। नई पीढ़ी को साथ जोड़कर और जनता के मुद्दों को प्राथमिकता देकर ही पार्टी अपने अस्तित्व को बचा सकती है। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो महाराष्ट्र में कांग्रेस का पुनरुत्थान मुश्किल हो सकता है।