बदायूं की 800 साल पुरानी जामा मस्जिद पर महादेव मंदिर होने का दावा, कोर्ट में विवाद जारी
बदायूं की ऐतिहासिक जामा मस्जिद को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। हिंदू महासभा ने दावा किया है कि मस्जिद की जगह पहले महादेव मंदिर था। उन्होंने वहां पूजा करने की अनुमति मांगी है। मामले पर सुनवाई करते हुए स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अगली तारीख 3 दिसंबर निर्धारित की है।
मामले का मूल विवाद
अखिल भारतीय हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल ने याचिका दाखिल कर जामा मस्जिद को महादेव मंदिर बताया है। उनका कहना है कि यह स्थल ऐतिहासिक रूप से हिंदू मंदिर था और वहां पूजा-अर्चना का अधिकार मिलना चाहिए।
मुस्लिम पक्ष ने इस दावे को खारिज कर दिया है। जामा मस्जिद की इंतजामिया कमेटी के अधिवक्ता अनवर आलम ने अदालत में कहा:
- जामा मस्जिद करीब 800 साल पुरानी है।
- यह दावा कि मस्जिद पहले मंदिर थी, ऐतिहासिक रूप से गलत और बेबुनियाद है।
- हिंदू महासभा को ऐसा वाद दायर करने का कोई अधिकार नहीं है।
कोर्ट की कार्यवाही
शनिवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को अपनी दलीलें पेश करने का मौका दिया। इसके बाद अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मामले को 3 दिसंबर तक स्थगित कर दिया।
अगली सुनवाई में मुस्लिम पक्ष द्वारा प्रस्तुत दलीलों का जवाब हिंदू महासभा की ओर से दिया जाएगा।
ऐसे ही अन्य विवादित मामले
यह विवाद कोई अकेला मामला नहीं है। भारत में कई ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों को लेकर इसी प्रकार की याचिकाएं दायर की गई हैं:
- संभल की जामा मस्जिद
- यहां भी मस्जिद में मंदिर होने का दावा किया गया है।
- कोर्ट के आदेश पर जब एएसआई टीम सर्वे के लिए गई, तो हिंसा भड़क उठी।
- इस घटना में चार लोगों की मौत हो गई।
- अजमेर शरीफ
- प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर भी ऐसा ही दावा किया गया है।
- हिंदू पक्ष ने दरगाह में मंदिर होने की बात कहते हुए पूजा की अनुमति मांगी है।
- ज्ञानवापी मस्जिद, वाराणसी
- यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है।
- हिंदू पक्ष ने वहां शिवलिंग होने का दावा किया और पूजा की अनुमति मांगी।
- शाही ईदगाह, मथुरा
- कृष्ण जन्मभूमि से सटी इस मस्जिद को लेकर भी विवाद जारी है।
- कोर्ट ने हाल ही में यहां सर्वेक्षण की अनुमति दी है।
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 का संदर्भ
भारत में पूजा स्थलों की स्थिति को लेकर प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 लागू है। इसके तहत:
- 15 अगस्त 1947 को जिस पूजा स्थल की जो स्थिति थी, उसे बदला नहीं जा सकता।
- यह कानून विवादों को रोकने और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए लाया गया था।
हालांकि, हिंदू पक्ष का तर्क है कि यह कानून एएसआई द्वारा संरक्षित स्थलों पर लागू नहीं होता।
सांप्रदायिक तनाव और प्रभाव
ऐसे मामलों से सांप्रदायिक तनाव बढ़ने की संभावना है।
- हिंदू पक्ष का दावा है कि यह उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का सवाल है।
- मुस्लिम पक्ष इसे उनकी धार्मिक स्वतंत्रता और ऐतिहासिक धरोहर का मामला मानता है।
आगे की राह
3 दिसंबर की सुनवाई पर देशभर की निगाहें हैं। यह मामला न केवल बदायूं, बल्कि देश के अन्य विवादित स्थलों पर भी असर डाल सकता है। अगर कोर्ट किसी दिशा में ठोस निर्णय देता है, तो यह अन्य मामलों के लिए एक नज़ीर बन सकता है।
विशेषज्ञों की राय
- इतिहासकारों और कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में वैज्ञानिक सबूत और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का ध्यान रखना जरूरी है।
- कोर्ट का काम है कि वह कानून के तहत सभी पक्षों के अधिकारों की रक्षा करे।
बदायूं जामा मस्जिद का यह मामला ऐतिहासिक धरोहरों को लेकर विवादों की नई कड़ी है। अदालत को संवेदनशीलता और कानून के दायरे में इस पर फैसला लेना होगा। आगे की कार्यवाही से देश में सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक स्वतंत्रता के संतुलन की दिशा तय होगी।