EVM विवाद: बाबा आधव ने अनशन खत्म किया, अब बड़े आंदोलन की तैयारी
महाराष्ट्र में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में महायुति की शानदार जीत के बाद ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) को लेकर विवाद फिर से चर्चा में आ गया है। पुणे के सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आधव ने चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए आमरण अनशन शुरू किया था।
उद्धव ठाकरे के आश्वासन पर खत्म हुआ अनशन
बाबा आधव ने शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे द्वारा बड़े आंदोलन का आश्वासन दिए जाने के बाद अपना अनशन समाप्त कर दिया। आधव ने दावा किया कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम लोकसभा चुनावों से बिल्कुल अलग हैं, जिससे चुनाव की निष्पक्षता पर संदेह होता है।
अजित पवार का बचाव: “जनता का समर्थन महायुति के साथ”
एनसीपी नेता और डिप्टी सीएम अजित पवार ने बाबा आधव से मुलाकात कर उन्हें अनशन खत्म करने की अपील की। पवार ने चुनाव परिणामों का बचाव करते हुए कहा कि लोकसभा चुनावों में महाविकास अघाड़ी को 31 और महायुति को 17 सीटें मिली थीं। उस समय ईवीएम पर सवाल नहीं उठे। अब अगर राज्य के लोगों ने महायुति को समर्थन दिया है, तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है।
ईवीएम पर विपक्ष के आरोपों को खारिज
पवार ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में किसी भी मुद्दे पर बहस संभव है, लेकिन ईवीएम पर सवाल उठाना अब व्यर्थ है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही ईवीएम के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर चुका है। विपक्ष की हार के बाद ईवीएम में खराबी का आरोप लगाना सही नहीं है।
ईवीएम विवाद: पक्ष और विपक्ष का नजरिया
- विपक्ष:
- बाबा आधव और शिवसेना (UBT) जैसे दलों का कहना है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव परिणामों में बड़ा अंतर चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है।
- उन्होंने सरकार पर चुनाव जीतने के लिए पैसे और सत्ता का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया है।
- पक्ष:
- महायुति और अजित पवार का दावा है कि यह जनता का जनादेश है और चुनाव प्रक्रिया में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हुई है।
- उनका कहना है कि अगर विपक्ष को ईवीएम पर शक है, तो वे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।
निष्कर्ष
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राजनीतिक बहस को नई धार दी है। ईवीएम पर उठते सवाल और विपक्ष के आंदोलन इस बात का संकेत हैं कि चुनाव प्रक्रिया को लेकर जनता और विपक्षी दलों में भरोसा बढ़ाने की जरूरत है। हालांकि, लोकतंत्र में चुनाव के बाद इस तरह की बहसें आम हैं, लेकिन इसका समाधान लोकतांत्रिक तरीकों और पारदर्शिता के जरिए ही संभव है।