मध्य प्रदेश से उठी ‘हिंदू राष्ट्र’ की गूंज: सियासत और धर्म का नया गठजोड़
भोपाल। मध्य प्रदेश इन दिनों सियासी और धार्मिक बयानबाज़ी का केंद्र बन गया है। ‘हिंदू राष्ट्र’, ‘सनातन धर्म की रक्षा’, और ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ जैसे मुद्दों ने प्रदेश की राजनीति को नया मोड़ दे दिया है। संत, महात्मा, और शंकराचार्य इस आंदोलन के केंद्र में हैं, जबकि राजनीतिक दल अपने-अपने सियासी समीकरण साधने में जुट गए हैं।
सनातन धर्म के मुद्दे पर संतों की मुखरता
धार्मिक हस्तियां, जैसे बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, और स्वामी रामभद्राचार्य, हिंदू धर्म की रक्षा और ‘हिंदू राष्ट्र’ के पक्ष में खुलकर बोल रहे हैं। वक्फ बोर्ड हटाने और धार्मिक विभाजन के खिलाफ अलख जगाने जैसे मुद्दे भी तेजी से उठाए जा रहे हैं।
विश्व हिंदू परिषद और अन्य संगठनों ने ‘हिंदू जागृति’ को देश की नई दिशा बताते हुए इसे समय की मांग बताया है। उनके अनुसार, “भारत का संविधान और लोकतंत्र हिंदू धर्म की नींव पर खड़ा है, तो फिर हिंदू राष्ट्र पर आपत्ति क्यों?”
राजनीतिक बयानबाज़ी और प्रतिक्रिया
बीजेपी ने इस मुद्दे को समर्थन दिया है। बीजेपी प्रवक्ता अजय सिंह यादव का कहना है, “सनातन धर्म पर हो रहे हमलों और हिंदू जनसंख्या में गिरावट के मुद्दे पर अब जनता जागरूक हो रही है। आगामी चुनावों में यह मुख्य मुद्दा होगा।”
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी जनसंख्या असंतुलन को देश के लिए चुनौती बताया और तीन बच्चों के परिवार मॉडल का समर्थन किया।
विपक्ष का आरोप: यह ‘ध्रुवीकरण की राजनीति’ है
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे दल इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रयास मानते हैं। कांग्रेस नेता अवनीश बुंदेला ने कहा, “बीजेपी महंगाई और बेरोजगारी जैसे असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए धर्म और मज़हब का सहारा ले रही है।”
समाजवादी पार्टी नेता मनोज यादव ने कहा, “हिंदू धर्म को सबसे बड़ा खतरा खुद बीजेपी और आरएसएस से है।”
मुस्लिम संगठनों की कड़ी प्रतिक्रिया
ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड के अध्यक्ष काजी सैयद अनस अली ने कहा, “यह संविधान और देश की एकता पर हमला है। धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना एक चुनावी एजेंडा है। मस्जिदों की खुदाई और मंदिरों की खोज जैसे मुद्दे समाज को बांटने का प्रयास हैं।”
क्या ‘हिंदू राष्ट्र’ चुनावी एजेंडा है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि मध्य प्रदेश से उठी यह गूंज देश की राजनीति को व्यापक रूप से प्रभावित कर सकती है। विपक्ष इसे ‘चुनावी एजेंडा’ कह रहा है, जबकि सत्तारूढ़ दल इसे ‘सनातन धर्म की रक्षा’ का मामला बता रहा है।
क्या कहता है इतिहास?
हिंदू संगठनों ने यह भी कहा कि भारत के विभाजन के समय हुई गलतियों का परिणाम आज तक सनातनी भुगत रहे हैं। अगर तब सही निर्णय लिए गए होते, तो पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश अस्तित्व में नहीं आते।
आगामी चुनावों पर प्रभाव
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, हिंदू राष्ट्र और सनातन धर्म के मुद्दे ने समाज के बड़े वर्ग का ध्यान खींचा है। इस बार चुनावों में यह मुद्दा प्रमुख रहेगा। क्या यह सियासी दांव बीजेपी को लाभ देगा, या विपक्ष इसे पलटने में कामयाब होगा? यह सवाल देश की राजनीति के भविष्य को तय करेगा।
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