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फैक्ट-चेकर मोहम्मद ज़ुबैर और मानवाधिकार कार्यकर्ता नदीम खान के खिलाफ कार्रवाई: क्या ये आलोचकों को चुप कराने की रणनीति है?

उत्तर प्रदेश और दिल्ली पुलिस की ओर से की गई हालिया कार्रवाई ने न केवल देश के कानूनी ढांचे पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आलोचना के अधिकार को लेकर भी व्यापक बहस छेड़ दी है। मोहम्मद जुबैर और नदीम खान के मामलों को एक अलग घटना मानने के बजाय, यह इन कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को चुप कराने की व्यापक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।


जुबैर के खिलाफ मामला: क्या यह आलोचना पर हमला है?

AltNews के सह-संस्थापक और जाने-माने फैक्ट-चेकर मोहम्मद जुबैर ने हेट क्राइम और विवादास्पद बयानों के खिलाफ लगातार आवाज उठाई है। लेकिन यूपी पुलिस ने उनके खिलाफ देशद्रोह और अन्य गंभीर धाराएं लगाते हुए उन्हें कानून के शिकंजे में ले लिया।

जुबैर पर आरोप क्या हैं?

  • यूपी पुलिस ने जुबैर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 152 (भारत की संप्रभुता और एकता को खतरे में डालना) जोड़ी है।
  • यह धारा आमतौर पर उन मामलों में लगाई जाती है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और देश की अखंडता को गंभीर खतरे का संकेत देती है।
  • जुबैर का कहना है कि उन्होंने केवल यति नरसिंहानंद के विवादास्पद बयानों पर पोस्ट किया था। यही पोस्ट कई अन्य सोशल मीडिया अकाउंट्स द्वारा भी शेयर की गई थी।

जुबैर की प्रतिक्रिया

जुबैर ने द क्विंट से कहा, “मैं दबाव और धमकियों का आदी हूं, लेकिन इस बार देशद्रोह जैसे गंभीर आरोप देखकर मैं हैरान हूं। यह एक चिंताजनक प्रयास है, जिसमें मेरी आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है।”

इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख

3 दिसंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट की एक बेंच ने जुबैर की गिरफ्तारी से सुरक्षा की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। इस कदम ने मामले को और जटिल बना दिया है, जिससे जुबैर के कानूनी संघर्ष की राह मुश्किल होती दिख रही है।


नदीम खान के खिलाफ आरोप: क्या यह हेट क्राइम पर पर्दा डालने का प्रयास है?

मानवाधिकार कार्यकर्ता और एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) के राष्ट्रीय सचिव नदीम खान पर दिल्ली पुलिस ने “सांप्रदायिकता भड़काने” और “अलगाववाद को बढ़ावा देने” का आरोप लगाया है।

मामला क्या है?

  • यह आरोप हैदराबाद में आयोजित एक प्रदर्शनी के संबंध में लगाए गए हैं, जो जमात-ए-इस्लामी के एक राष्ट्रीय सम्मेलन का हिस्सा थी।
  • प्रदर्शनी में हेट क्राइम के पीड़ितों, मानवाधिकार उल्लंघनों, और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर आधारित सामग्री पेश की गई थी।
  • प्रदर्शनी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की कथित सांप्रदायिक टिप्पणियों से जुड़े वीडियो भी दिखाए गए।

दिल्ली पुलिस के आरोप

  • पुलिस ने कहा कि इस प्रदर्शनी में “एक समुदाय को पीड़ित के रूप में दिखाया गया और अन्य समुदाय को दोषी बताया गया।”
  • इसे “लोगों को भड़काने” और “अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देने” का प्रयास बताया गया।

अदालत की प्रतिक्रिया

दिल्ली की अदालत ने नदीम खान को 6 दिसंबर तक गिरफ्तारी से अंतरिम राहत देते हुए कहा, “देश की सद्भावना इतनी नाजुक नहीं है कि इसे ऐसे मामलों से खतरा हो।”


आलोचना और सामाजिक प्रतिक्रियाएं

इन मामलों ने मानवाधिकार संगठनों, पत्रकारों और आम जनता के बीच तीखी बहस छेड़ दी है।

समर्थन में तर्क

  • मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह कार्रवाई उन लोगों को डराने का प्रयास है, जो हेट क्राइम और मानवाधिकार उल्लंघनों को उजागर करते हैं।
  • जुबैर और नदीम खान के मामले को “आलोचना पर दमन” और “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला” बताया जा रहा है।

सरकारी पक्ष

  • पुलिस और सरकारी सूत्रों का दावा है कि यह कार्रवाई कानून के तहत की गई है और इसमें सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने की कोशिशों को रोकने का उद्देश्य है।

क्या है बड़ा सवाल?

इन घटनाओं ने व्यापक मुद्दों को जन्म दिया है:

  1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला: क्या हेट क्राइम पर बात करना और सच दिखाना अब अपराध माना जाएगा?
  2. कानून का राजनीतिक इस्तेमाल: क्या सरकार और पुलिस कानून का दुरुपयोग करके आलोचकों को चुप करा रही है?
  3. धार्मिक आधार पर पक्षपात: क्या ये कार्रवाइयां अल्पसंख्यकों के खिलाफ दमन का हिस्सा हैं?

निष्कर्ष…

जुबैर और नदीम खान के खिलाफ कार्रवाई को स्वतंत्रता और मानवाधिकार के मूलभूत सिद्धांतों के लिए खतरा माना जा रहा है। इन मामलों ने भारत में लोकतांत्रिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर गहरी चिंता पैदा कर दी है। अब यह देखना अहम होगा कि न्यायपालिका इन मामलों में क्या रुख अपनाती है और क्या सरकार इस आलोचना का जवाब देने के लिए तैयार है।

खासदार टाइम्स

खासदार टाईम्स {निडर, निष्पक्ष, प्रखर समाचार, खासदार की तलवार, अन्याय पे प्रहार!} हिंदी/मराठी न्यूज पेपर, डिजिटल न्यूज पोर्टल/चैनल) RNI No. MAHBIL/2011/37356 संपादक - खान एजाज़ अहमद, कार्यकारी संपादक – सय्यद फेरोज़ आशिक

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