असम में गोमांस बैन, AIUDF ने कहा- ‘ यह कैबिनेट का विषय नहीं, यह नागरिक अधिकारों का हनन’
असम सरकार द्वारा राज्य में गोमांस खाने और परोसने पर पूर्ण प्रतिबंध की घोषणा के बाद राजनीतिक माहौल गर्मा गया है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कैबिनेट बैठक के बाद कहा कि अब किसी भी होटल, रेस्तरां या सार्वजनिक स्थल पर गोमांस परोसा या खाया नहीं जा सकेगा। यह कदम राज्य में धार्मिक भावनाओं और सामाजिक समरसता बनाए रखने के उद्देश्य से उठाया गया है।
विपक्ष का तीखा विरोध
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) ने इस फैसले को राज्य के नागरिक अधिकारों का उल्लंघन बताया। पार्टी के महासचिव और विधायक हाफिज रफीकुल इस्लाम ने कहा, “सरकार को यह तय करने का अधिकार नहीं है कि लोग क्या खाएंगे या पहनेंगे। यह कैबिनेट का विषय नहीं होना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में, जहां बीजेपी की सरकार है या वह गठबंधन में है, वहां गोमांस पर कोई प्रतिबंध नहीं है। “गोवा में बीजेपी बीफ पर प्रतिबंध नहीं लगा सकती क्योंकि ऐसा करने से वहां उनकी सरकार गिर जाएगी।”
इस्लाम ने यह भी कहा कि असम में मुस्लिम, ईसाई और आदिवासी समुदाय की कई समस्याएं हैं, लेकिन सरकार उन पर ध्यान देने के बजाय इस तरह के मुद्दे उठा रही है।
मुख्यमंत्री का तर्क
मुख्यमंत्री सरमा ने मीडिया को बताया कि कांग्रेस के नेताओं द्वारा गोमांस के मुद्दे पर दिए गए बयानों के बाद यह निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा कि मौजूदा कानून में पहले ही गोमांस के बारे में कई प्रावधान हैं, लेकिन होटल और रेस्तरां में इसे खाने या परोसने पर स्पष्ट रूप से रोक नहीं थी। इस कमी को अब दूर कर दिया गया है।
सामाजिक समरसता का सवाल
सरमा ने कहा, “इस फैसले का उद्देश्य राज्य में धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना है। असम में ऐसे कई इलाके हैं जहां विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं। इन क्षेत्रों में गोमांस परोसना या खाना सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचा सकता है।”
एआईयूडीएफ की अपील
एआईयूडीएफ नेता ने असम के लोगों से अपील की है कि वे इस तरह के विवादित मुद्दों में न फंसे और अपनी एकता बनाए रखें। उन्होंने कहा, “नेता इन मुद्दों पर लोगों को बांटने की कोशिश कर रहे हैं। हमें असली समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए।”
राजनीतिक विवाद जारी
इस फैसले के बाद असम में सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्षी दलों के बीच विवाद और बढ़ने की संभावना है। यह देखना बाकी है कि यह फैसला राज्य की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को कैसे प्रभावित करेगा।