अहले सुन्नत जमात कन्नड द्वारा: धार्मिक स्थल अधिनियम 1991 का उल्लंघन करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों पर कारवाही की मांग
अहले सुन्नत जमात कन्नड द्वारा प्रधानमंत्री भारत सरकार को दिए गए ज्ञापन में कहा गया है कि; उत्तर प्रदेश के संभल जिले में हाल ही में घटी घटनाओं ने देश में धार्मिक तनाव और प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह प्रकरण शाही जामा मस्जिद और अजमेर शरीफ की दरगाह से जुड़े कथित विवादित सर्वे से शुरू हुआ, जिसने धार्मिक और राजनीतिक विवाद को हवा दी। इस पूरे घटनाक्रम पर विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने आरोप लगाए हैं कि यह संविधान और कानून के खिलाफ जाकर प्रशासन और न्यायपालिका द्वारा की गई सुनियोजित साजिश है।**
घटनाओं का क्रम और आरोप
19 नवंबर 2024: विवाद की शुरुआत
- एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा शाही जामा मस्जिद में शिव मंदिर होने और परिसर में रास्ता देने की अपील संभल की जिला अदालत में दाखिल की गई।
- मामले की सुनवाई:
अदालत ने प्रतिपक्ष (मस्जिद प्रशासन) को बिना सुने ही उसी दिन शाम 3:30 बजे सर्वे का आदेश जारी किया। - आदेश पर तत्काल कार्रवाई:
प्रशासन (जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, और सीओ) ने उसी दिन रात 6:30 बजे मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण शुरू कर दिया। यह रात में किया गया सर्वे धार्मिक स्थल अधिनियम 1991 का उल्लंघन है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 के बाद धार्मिक स्थलों की स्थिति नहीं बदली जा सकती।
20 नवंबर 2024: उपचुनाव और राजनीतिक खेल
- 20 नवंबर को उपचुनाव की वोटिंग थी। आरोप है कि सर्वे और विवादित खबरों के जरिए अल्पसंख्यक समुदाय में भय का माहौल बनाया गया।
- कुछ सामाजिक संगठनों ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने अल्पसंख्यक समुदाय के वोट डालने में बाधा पहुंचाई, ताकि चुनाव परिणाम प्रभावित हो सके।
24 नवंबर 2024: तनाव और दंगे
- सर्वे का प्रयास:
प्रशासन द्वारा सुबह 7:00 बजे मस्जिद परिसर में दोबारा सर्वेक्षण करने की कोशिश की गई। - दंगाई भीड़ का साथ:
आरोप है कि प्रशासन ने नारेबाजी कर रहे दंगाई समूहों को मस्जिद तक पहुंचने की अनुमति दी। - तनाव का बढ़ना:
इन उकसाने वाली गतिविधियों के कारण मस्जिद परिसर के आसपास माहौल बिगड़ गया। - प्रशासन की कार्रवाई:
पुलिस और प्रशासन ने अल्पसंख्यक समुदाय के विरोध को नियंत्रित करने के लिए पत्थरबाजी का सहारा लिया और गोलीबारी की, जिसमें 5 लोगों की मौत हो गई। - मीडिया पर प्रसारित वीडियो:
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही और पक्षपात की झलक देखने को मिली।
कानूनी और संवैधानिक मुद्दे
धार्मिक स्थल अधिनियम 1991 का उल्लंघन
- यह अधिनियम धार्मिक स्थलों की 1947 की स्थिति को यथावत बनाए रखने की बात करता है।
- मस्जिद परिसर में सर्वेक्षण का आदेश और उसे अंजाम देना इस अधिनियम का खुला उल्लंघन है।
न्यायपालिका की भूमिका
- जिला अदालत के जज पर आरोप है कि उन्होंने जल्दबाजी में आदेश देकर कानून की अवहेलना की।
- इस फैसले के पीछे राजनीतिक दबाव की आशंका जताई जा रही है।
प्रशासनिक लापरवाही और पक्षपात
- जिला प्रशासन पर आरोप है कि उन्होंने इस आदेश का दुरुपयोग करते हुए रात में सर्वे कराया।
- मुरादाबाद के संभागीय आयुक्त अंजनय कुमार पर साजिश का मास्टरमाइंड होने के आरोप हैं।
अहले सुन्नत जमात की प्रतिक्रिया और मांगें
घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ज्ञापन सौंपा, जिसमें निम्नलिखित मांगें की गईं:
- जज को बर्खास्त किया जाए:
मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश देने वाले जज को तुरंत बर्खास्त किया जाए। - प्रशासनिक अधिकारियों पर कार्रवाई:
- मुरादाबाद के संभागीय आयुक्त, संभल के डीएम, एसपी, और सीओ पर हत्या और दंगे भड़काने के आरोप में एफआईआर दर्ज की जाए।
- इन अधिकारियों की संपत्तियों और कार्यकाल की सीबीआई जांच की जाए।
- सीबीआई जांच:
- शाही जामा मस्जिद और अजमेर शरीफ की दरगाह पर सर्वे के आदेश और इसके बाद हुई हिंसा की निष्पक्ष जांच कराई जाए।
- संविधान की रक्षा:
- धार्मिक स्थल अधिनियम 1991 का उल्लंघन रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं।
- न्यायपालिका और प्रशासन को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त किया जाए।
राजनीतिक साजिश के आरोप
- राजनीतिक लाभ का आरोप:
आरोप है कि यह प्रकरण उत्तर प्रदेश उपचुनावों में एक विशेष राजनीतिक दल के पक्ष में माहौल बनाने के लिए किया गया। - धार्मिक ध्रुवीकरण:
विवाद के माध्यम से एक समुदाय को निशाना बनाकर चुनावी ध्रुवीकरण की साजिश रची गई।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
घटनाक्रम की संवेदनशीलता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल कार्रवाई करते हुए मस्जिद परिसर में सर्वेक्षण पर रोक लगा दी। यह न्यायपालिका का सराहनीय कदम है।
निष्कर्ष और आवश्यक कदम
यह प्रकरण प्रशासनिक लापरवाही, न्यायपालिका के दुरुपयोग और राजनीतिक साजिश का प्रतीक बनकर उभरा है। इससे देश में सामाजिक तनाव और अस्थिरता का खतरा बढ़ा है।
सरकार और न्यायपालिका को इस मामले में कठोर और निष्पक्ष कदम उठाने होंगे ताकि:
- कानून का पालन सुनिश्चित हो।
- प्रशासनिक अधिकारियों पर राजनीतिक दबाव का अंत हो।
- देश में सांप्रदायिक सद्भाव और शांति बनी रहे।
इस तरह की घटनाओं से देश की सामाजिक और राजनीतिक संरचना कमजोर हो सकती है। इसलिए, दोषियों को सजा देकर कानून और संविधान का पालन सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
अहले सुन्नत जमात द्वारा दिए गए ज्ञापन पर; सैय्यद अरबाज अली (शहर सुन्नी यूथ फोर्स कन्नड), शेख गणी लाल मौहम्मद (जमाते अमीर साहब कन्नड), शेख खालिद बईयोद्दीन (अध्यक्ष अहेलेसुन्नत जमात), इमरान उस्मान शाह। मुतवल्ली इनामदार (जिल्हा अध्यक्ष मायनॉरिटीज डेमोक्रेटिक पाटी (MDP) आदि के हस्ताक्षर मौजूद हैं।