Editorial

6 दिसंबर 1992: भारतीय लोकतंत्र का काला दिन

सय्यद फेरोज़ आशिक की कलम से

6 दिसंबर 1992 का दिन भारतीय इतिहास के सबसे विवादास्पद और दर्दनाक दिनों में गिना जाता है। इस दिन अयोध्या में स्थित बाबरी मस्जिद को लाखों कारसेवकों की भीड़ ने गिरा दिया। यह घटना सिर्फ एक ऐतिहासिक ढांचे के ध्वंस तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसने भारतीय लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और कानून व्यवस्था को चुनौती दी। इस दिन ने देश के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने को ऐसा झटका दिया, जिसकी गूंज आज भी महसूस की जाती है।


घटना का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

बाबरी मस्जिद का निर्माण और विवाद:

बाबरी मस्जिद 16वीं शताब्दी में मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा बनवाई गई थी। लेकिन यह स्थल हिंदू समुदाय के लिए पवित्र माना जाता है, जिसे वे भगवान राम का जन्मस्थल कहते हैं।

  • 1949: मस्जिद के अंदर रामलला की मूर्ति रखी गई, जिसके बाद इसे विवादित घोषित कर दिया गया।
  • 1986: अदालत के आदेश पर हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति दी गई।
  • 1989: विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन शुरू किया।
  • 1990: लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा निकालकर आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाया।

6 दिसंबर की घटना का सिलसिला

3 दिसंबर 1992:

कारसेवकों का अयोध्या में जुटना शुरू हो गया। विवादित स्थल के पास खुदाई की जा रही थी, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन था। पर्यवेक्षक और प्रशासन ने कार्रवाई की कोशिश की, लेकिन कारसेवक किसी की सुनने को तैयार नहीं थे।

6 दिसंबर की सुबह:

करीब 5-6 लाख कारसेवक अयोध्या पहुंच चुके थे। रामकथा कुंज में भाजपा और वीएचपी के बड़े नेताओं की बैठक चल रही थी, जिनमें लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और अशोक सिंघल शामिल थे।

  • सुबह 8 बजे से पूजा-पाठ शुरू हुआ।
  • 12 बजे अचानक भीड़ उग्र हो गई।

विध्वंस का आरंभ:

भीड़ ने विवादित ढांचे की सुरक्षा में लगे पुलिस बैरिकेड तोड़ दिए।

  • 1:30 बजे: पहला गुंबद गिराया गया।
  • 5 बजे तक: पूरा ढांचा ध्वस्त हो चुका था।
    इस दौरान कानून-व्यवस्था पूरी तरह विफल हो गई।

कल्याण सिंह की सरकार की भूमिका:

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को बाबरी मस्जिद की सुरक्षा का आश्वासन दिया था। लेकिन जब विध्वंस हुआ, तो सरकार ने इसे रोकने की कोई ठोस कोशिश नहीं की।


कानूनी प्रक्रिया और जांच

एफआईआर और चार्जशीट:

  • एफआईआर 197/1992: लाखों कारसेवकों पर बाबरी ढांचे को गिराने का आरोप।
  • एफआईआर 198/1992: भाजपा और वीएचपी के नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप।
    सीबीआई ने कुल 49 एफआईआर दर्ज की और 500 से अधिक गवाहों के बयान दर्ज किए।

अदालती प्रक्रिया:

  • 2001: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि सभी मामले एक साथ लखनऊ में चलेंगे।
  • 2003: सीबीआई ने आरोपियों पर पूरक चार्जशीट दाखिल की।
  • 2020: सीबीआई कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया।

फैसले के सवाल:

सीबीआई के कामकाज पर सवाल उठे। कोर्ट ने माना कि यह घटना पूर्व नियोजित नहीं थी, लेकिन सीबीआई यह साबित करने में असमर्थ रही कि यह साजिश थी।


राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

सांप्रदायिकता और राजनीति:

बाबरी विध्वंस ने भारतीय राजनीति में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया। भाजपा को इससे राजनीतिक लाभ हुआ, और यह राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख ताकत बन गई।

दंगों की आग:

विध्वंस के बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। मुंबई, गुजरात और अन्य राज्यों में हुए दंगों में हजारों लोगों की जान गई।

समाज पर प्रभाव:

  • हिंदू-मुस्लिम संबंधों में गहरी खाई पैदा हुई।
  • सांप्रदायिकता के नाम पर राजनीति और हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ी।

बाबरी विध्वंस: आज के संदर्भ में

राम मंदिर निर्माण:

2019 में सुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि को राम मंदिर निर्माण के लिए सौंप दिया। यह फैसला न्यायपालिका के लिए एक चुनौतीपूर्ण क्षण था। आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण चल रहा है।

सवाल जो बाकी हैं:

  • क्या विध्वंस से पहले सरकार और प्रशासन ने जानबूझकर चुप्पी साधी थी?
  • भीड़ को भड़काने वालों को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया गया?
  • क्या भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए हम पर्याप्त सबक ले पाए हैं?

निष्कर्ष: लोकतंत्र की रक्षा का संकल्प

6 दिसंबर 1992 भारतीय लोकतंत्र के लिए एक सबक है कि धर्म और राजनीति के घालमेल से न केवल समाज, बल्कि कानून व्यवस्था भी खतरे में पड़ सकती है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि संविधान का सम्मान और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखना कितना जरूरी है।
आज 32 साल बाद, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इतिहास की ये त्रासदी फिर कभी न दोहराई जाए। लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन की रक्षा के लिए यह जिम्मेदारी हर नागरिक की है।

खासदार टाइम्स

खासदार टाईम्स {निडर, निष्पक्ष, प्रखर समाचार, खासदार की तलवार, अन्याय पे प्रहार!} हिंदी/मराठी न्यूज पेपर, डिजिटल न्यूज पोर्टल/चैनल) RNI No. MAHBIL/2011/37356 संपादक - खान एजाज़ अहमद, कार्यकारी संपादक – सय्यद फेरोज़ आशिक

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