फडणवीस कैबिनेट में छगन भुजबल को जगह नहीं, समर्थकों में नाराजगी
महाराष्ट्र में रविवार को देवेंद्र फडणवीस मंत्रिमंडल का बहुप्रतीक्षित विस्तार हुआ, जिसमें 39 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली। हालांकि, इस विस्तार में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल का नाम शामिल नहीं किया गया, जिससे राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है।
छगन भुजबल, जो हाल के दिनों में ओबीसी आंदोलन का प्रमुख चेहरा बनकर उभरे हैं, को लेकर उम्मीद थी कि उन्हें मौजूदा महायुति सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा। लेकिन उनकी अनदेखी ने ओबीसी वर्ग और उनके समर्थकों को निराश कर दिया है।
मराठा और ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर सक्रिय भूमिका
मराठा आरक्षण की मांग तेज होने के बाद ओबीसी वर्ग के अधिकारों की रक्षा के लिए भुजबल ने खुलकर मोर्चा संभाला। उन्होंने राज्य में ओबीसी सम्मेलनों और बैठकों का नेतृत्व किया, जिससे मराठा और ओबीसी समुदायों के बीच राजनीतिक ध्रुवीकरण हुआ।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और मौजूदा परिदृश्य
33 साल पहले नागपुर में शपथ लेकर मंत्री बनने वाले भुजबल ने इस बार भी विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की। उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि उन्हें मंत्री पद मिलेगा। लेकिन उनकी अनदेखी से यह सवाल उठ रहा है कि क्या ओबीसी आंदोलन में उनकी भूमिका इस फैसले का कारण बनी?
भविष्य की चुनौतियां और संभावना
छगन भुजबल का मंत्री पद से बाहर रहना महाराष्ट्र की राजनीति में नए समीकरण बना सकता है। ओबीसी आंदोलन और भुजबल के नेतृत्व को देखते हुए सरकार पर वर्ग विशेष के दबाव और असंतोष का सामना करना पड़ सकता है।
मंत्रिमंडल विस्तार ने जहां नई राजनीतिक संभावनाएं खोली हैं, वहीं भुजबल को लेकर बनी अनिश्चितता ने सरकार की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।