भुजबल का बल, कैबिनेट में असफल! सियासी सफर; आज और कल…
महाराष्ट्र की राजनीति के दिग्गज नेता छगन भुजबल, जिनका कभी राज्य की सियासत में बड़ा रुतबा था, आज फडणवीस कैबिनेट से बाहर होने की वजह से चर्चा में हैं। येवला से एनसीपी सिंबल पर विधायक चुने गए भुजबल अपनी नाराजगी के चलते सुर्खियों में हैं।
ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले भुजबल का नाम एक समय पर शरद पवार, बालासाहेब ठाकरे और सोनिया गांधी जैसे बड़े नेताओं के करीबी में शुमार होता था। लेकिन अब राजनीतिक समीकरणों और विवादों ने उन्हें कैबिनेट से दूर कर दिया है।
कैसे शुरू हुआ भुजबल का सियासी सफर?
छगन भुजबल ने अपनी सियासी यात्रा बेहद सामान्य शुरुआत से की। पुणे से 10वीं तक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अपनी मां के साथ बायकुला में सब्जी बेचने का काम किया। 1960 के दशक में वे बालासाहेब ठाकरे के मराठा आंदोलन से जुड़े और शिवसेना के संस्थापक सदस्य बने।
उनकी तेज-तर्रार छवि और फायरब्रांड अंदाज के चलते उन्हें मुंबई की सियासत में पहचान मिली। पहले पार्षद, फिर दो बार मुंबई के मेयर बनने के बाद भुजबल 1985 में मझगांव सीट से विधायक चुने गए।
1991 में भुजबल ने शिवसेना से बगावत कर कांग्रेस का दामन थामा। यह कदम उस दौर में साहसिक माना गया, क्योंकि मुंबई में बालासाहेब ठाकरे के खिलाफ जाना जोखिम भरा था। इसके बाद 1998 में वे शरद पवार की एनसीपी से जुड़ गए और विलासराव देशमुख सरकार में उपमुख्यमंत्री बने।
कैसे बदले भुजबल के सियासी समीकरण?
भुजबल ने महाराष्ट्र की राजनीति में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं। उन्होंने सुशील कुमार शिंदे, अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण, उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे जैसे मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया।
2023 में एनसीपी में विभाजन के दौरान भुजबल अजित पवार गुट में शामिल हो गए। इससे पहले, शरद पवार ने पार्टी को बचाने की जिम्मेदारी भुजबल को दी थी, लेकिन भुजबल ने पवार का साथ छोड़ दिया।
भुजबल के साइडलाइन होने की वजहें
- विश्वसनीयता का संकट
शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के बीच बार-बार दल बदलने से भुजबल की विश्वसनीयता पर सवाल उठे। 2023 में शरद पवार का साथ छोड़ अजित पवार गुट में जाने को लेकर उनकी आलोचना हुई। - विवादित बयान
भुजबल का फायरब्रांड अंदाज अक्सर उनके लिए मुश्किलें खड़ी करता रहा है। 2023 में उन्होंने ब्राह्मण समुदाय पर विवादित टिप्पणी की, जिससे सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ी। - उम्र का फैक्टर
77 साल के भुजबल को उम्र के कारण भी कैबिनेट में जगह नहीं मिली। फडणवीस सरकार ने युवाओं और 70 वर्ष तक के नेताओं को प्राथमिकता दी। - भ्रष्टाचार के आरोप
2003 के तेलगी घोटाले और महाराष्ट्र सदन निर्माण घोटाले ने भुजबल की साख को नुकसान पहुंचाया। 2016 में ईडी द्वारा गिरफ्तारी के बाद उनका राजनीतिक कद गिरने लगा।
भविष्य का क्या होगा?
राजनीतिक अनुभव और ओबीसी समुदाय में पैठ रखने वाले छगन भुजबल को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता। हालांकि, उनकी साख और विश्वसनीयता पर सवाल बने हुए हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे अपनी खोई हुई सियासी ताकत वापस पा सकते हैं या उम्र और विवाद उनके करियर पर पूर्णविराम लगाएंगे।
महाराष्ट्र की राजनीति में छगन भुजबल का भविष्य अब उनके अगले कदम और बदलते सियासी समीकरणों पर निर्भर है।