संसद में अमित शाह द्वारा डॉक्टर भीमराव आंबेडकर का कथित अपमान कोई आकस्मिक घटना नहीं है। यह एक वैचारिक संघर्ष का परिणाम है, जो भारतीय राजनीति और समाज के गहरे विभाजन को दर्शाता है। अमित शाह के भाषण के दौरान उनके सिर के ऊपर विनायक दामोदर सावरकर की तस्वीर का होना इस बात का प्रतीक है कि वह सावरकर की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह वही विचारधारा है, जिसका डॉ. आंबेडकर ने अपने समय में तीव्र विरोध किया था।
डॉ. आंबेडकर ने न केवल सावरकर की हिंदुत्ववादी राजनीति की आलोचना की, बल्कि इसे भारतीय समाज के लिए एक गंभीर खतरा बताया। उन्होंने इसे स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत बताया।
डॉ. आंबेडकर और सावरकर: विचारों का टकराव
डॉ. आंबेडकर ने सावरकर और जिन्ना दोनों की राजनीतिक सोच को “दो राष्ट्र के सिद्धांत” का वाहक माना। उनकी पुस्तक “पाकिस्तान और भारत का विभाजन” में इस मुद्दे को गहराई से विश्लेषित किया गया। डॉ. आंबेडकर लिखते हैं:
“यह बात सुनने में भले ही विचित्र लगे, पर एक राष्ट्र बनाम दो राष्ट्र के प्रश्न पर श्री सावरकर और श्री जिन्ना के विचार परस्पर विरोधी होने के बजाय एक-दूसरे से पूरी तरह मेल खाते हैं। दोनों ही इस बात को स्वीकार करते हैं और न केवल स्वीकार करते हैं, बल्कि इस पर ज़ोर देते हैं कि भारत में दो राष्ट्र हैं।”
सावरकर ने हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना की, जिसमें भारत को हिंदुओं की भूमि माना गया। इसके विपरीत, डॉ. आंबेडकर का विचार था कि भारतीयता की परिभाषा धर्म, जाति या संस्कृति के आधार पर नहीं हो सकती। उनके लिए भारतीयता का अर्थ समानता, भाईचारा और धर्मनिरपेक्षता था।
डॉ. आंबेडकर ने यह भी कहा कि सावरकर ने हिंदुत्व को जानबूझकर इस प्रकार गढ़ा कि मुसलमान और ईसाई इससे बाहर हो जाएं। उन्होंने लिखा:
“सावरकर का हिंदुत्व न केवल मुसलमानों को बाहर करता है, बल्कि भारतीय समाज के भीतर असमानता और भेदभाव को भी बढ़ावा देता है। यह एक विभाजनकारी विचारधारा है।”
हिंदू राज और भारतीय लोकतंत्र
डॉ. आंबेडकर ने सावरकर की हिंदू राष्ट्र की सोच को भारत के लिए एक बड़ा ख़तरा बताया। उन्होंने लिखा:
“अगर वास्तव में हिंदू राज बन जाता है तो निस्संदेह इस देश के लिए एक भारी खतरा उत्पन्न हो जाएगा। हिंदुत्व स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए एक खतरा है।”
यह बयान केवल सावरकर के हिंदुत्ववादी विचारों की आलोचना नहीं थी, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा का आह्वान भी था। डॉ. आंबेडकर का मानना था कि धर्म को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए। उनका विचार था कि धर्म का उपयोग समाज को बांटने के लिए नहीं किया जा सकता।
सावरकर और जिन्ना: समानांतर विचारधाराएं
डॉ. आंबेडकर ने सावरकर और जिन्ना की विचारधाराओं को समान बताया। जहां सावरकर हिंदू राष्ट्र की बात कर रहे थे, वहीं जिन्ना मुस्लिम राष्ट्र की। दोनों का विचार दो राष्ट्रों की स्थापना पर आधारित था। डॉ. आंबेडकर ने इस बात को बार-बार दोहराया कि यह दृष्टिकोण भारतीय समाज की एकता के लिए हानिकारक है।
उनके अनुसार, सावरकर और जिन्ना की सोच ने भारत की विविधता को नजरअंदाज किया। भारतीयता केवल हिंदू या मुसलमान होने तक सीमित नहीं है। यह उन सभी लोगों की पहचान है, जो इस भूमि पर रहते हैं और इसकी सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत का हिस्सा हैं।
गांधी और आंबेडकर का दृष्टिकोण
महात्मा गांधी और डॉ. आंबेडकर, दोनों ने सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी। गांधी ने अपने पूरे जीवन में हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास किया, जबकि डॉ. आंबेडकर ने संविधान के माध्यम से एक ऐसा ढांचा तैयार किया, जो समानता और धर्मनिरपेक्षता की गारंटी देता है।
डॉ. आंबेडकर ने अपनी किताब में लिखा कि गांधी के प्रयासों के बावजूद, सावरकर और जिन्ना जैसे नेताओं ने धार्मिक विभाजन को और गहरा किया। यह विभाजन न केवल 1947 में भारत के विभाजन का कारण बना, बल्कि आज भी भारतीय राजनीति में इसका प्रभाव देखा जा सकता है।
डॉ. आंबेडकर की प्रासंगिकता आज
डॉ. आंबेडकर का यह कथन कि “हिंदुत्व स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए एक ख़तरा है,” आज के संदर्भ में अत्यधिक प्रासंगिक है। भारत की राजनीति में आज भी सांप्रदायिकता और धर्म आधारित राजनीति का बोलबाला है।
जो लोग “अखंड भारत” की बात करते हैं, वे अक्सर प्रेम और भाईचारे के बजाय नफरत और अलगाव की राजनीति करते हैं। अखंड भारत की कल्पना केवल तभी साकार हो सकती है, जब भारतीय समाज में सभी धर्मों और समुदायों के बीच प्रेम और समानता हो।
अमित शाह का बयान: भाजपा की मानसिकता का प्रतिबिंब
अमित शाह का डॉ. आंबेडकर के बारे में विवादित बयान भाजपा और आरएसएस की विचारधारा का प्रतिबिंब है। यह विचारधारा डॉ. आंबेडकर की समतावादी और धर्मनिरपेक्ष सोच के विपरीत है।
संसद में डॉ. आंबेडकर का अपमान न केवल एक व्यक्ति का अपमान है, बल्कि यह भारतीय संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों का भी अपमान है। यह घटना इस बात का संकेत है कि भाजपा और आरएसएस की नीतियां और विचारधारा भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करने की दिशा में काम कर रही हैं।
डॉ. आंबेडकर का जीवन और उनकी विचारधारा भारत के संविधान और लोकतंत्र की नींव है। सावरकर की हिंदुत्ववादी सोच और डॉ. आंबेडकर की समतावादी सोच के बीच का यह संघर्ष केवल इतिहास का हिस्सा नहीं है। यह आज भी भारतीय समाज और राजनीति में जारी है।
भारत की ताकत उसकी विविधता में है। यह तभी संभव है, जब समाज में सभी धर्मों, जातियों और समुदायों को समानता और सम्मान दिया जाए। डॉ. आंबेडकर के विचार हमें यह याद दिलाते हैं कि भारत का भविष्य उसकी विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में है, न कि धर्म और राजनीति के खतरनाक मेल में।