महाराष्ट्र के परभणी जिले में 15 दिसंबर को सोमनाथ सूर्यवंशी की पुलिस हिरासत में मौत ने राज्य में दलित समुदाय के भीतर आक्रोश पैदा कर दिया है। 35 वर्षीय सोमनाथ, जो अंबेडकर की तरह वकील बनने के सपने देख रहे थे, उनकी कानून की परीक्षा से दो दिन पहले हिरासत में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और सरकार का रवैया
अंतरिम पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार, सोमनाथ की मौत का कारण “कई चोटें” बताया गया है। इसके बावजूद, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा में बयान देते हुए कहा कि सोमनाथ को सांस लेने में तकलीफ थी और वह अन्य बीमारियों से ग्रस्त थे। फडणवीस ने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट के सामने पेश किए जाने पर सोमनाथ ने पुलिस उत्पीड़न की कोई शिकायत नहीं की।
हालांकि, सरकार ने घटना की गंभीरता को देखते हुए विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन किया है। एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर को निलंबित कर दिया गया है, जबकि एक अन्य को छुट्टी पर भेज दिया गया है। लेकिन सोमनाथ का परिवार और दलित समुदाय इसे “पुलिस हिरासत में हत्या” मानते हुए न्याय की मांग कर रहा है।
संविधान अपमान और विरोध प्रदर्शन
सोमनाथ की मौत से पहले परभणी में दलित समुदाय ने संविधान की प्रति के कथित अपमान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। 10 दिसंबर को अंबेडकर की मूर्ति के पास संविधान की प्रति को अपमानित किया गया था। पुलिस ने इस घटना के आरोपी को “मानसिक रूप से अस्थिर” बताते हुए मामले को शांत करने की कोशिश की, लेकिन यह कदम समुदाय के गुस्से को और भड़का गया।
विरोध प्रदर्शन में हिंसा और पुलिस की भूमिका
परभणी शहर में विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण शुरू हुआ था, लेकिन बाद में हिंसा में बदल गया। पुलिस पर प्रदर्शनकारियों के साथ अत्याचार करने का आरोप है। इस घटना के बाद पुलिस ने बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया, जिसमें सोमनाथ भी शामिल थे। परिवार के अनुसार, सोमनाथ ने प्रदर्शनकारियों को कानूनी सलाह देने की पेशकश की थी, जिसे पुलिस ने गलत तरीके से देखा।
सोमनाथ का संघर्ष और परिवार की पीड़ा
सोमनाथ सूर्यवंशी एक खानाबदोश वडार परिवार से थे, जो शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल करने की कोशिश कर रहे थे। उनके भाई प्रेमनाथ ने बताया कि सोमनाथ का सपना अंबेडकर की तरह वकील बनकर जरूरतमंदों को मुफ्त कानूनी मदद देना था। परिवार ने उनकी पढ़ाई पर कर्ज लेकर निवेश किया था, लेकिन पुलिस हिरासत में उनकी मौत ने परिवार की उम्मीदों को चूर-चूर कर दिया।
दक्षिणपंथ और संविधान अपमान का एंगल
परभणी में दलित समुदाय को पुलिस की कहानी पर भरोसा नहीं है। समुदाय ने दावा किया कि आरोपी को दक्षिणपंथी संगठन द्वारा आयोजित रैली में देखा गया था, जो “मानसिक रूप से अस्थिर” बताए जाने के दावे को झूठा साबित करता है।
सरकार के प्रति अविश्वास
दलित समुदाय का मानना है कि सरकार और प्रशासन सोमनाथ की मौत और संविधान अपमान की घटना को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। एसआईटी के गठन और निलंबन जैसे कदम समुदाय के लिए अपर्याप्त हैं।
क्या यह न्याय है?
सोमनाथ की मौत ने पुलिस हिरासत में होने वाले अत्याचार और दलितों के प्रति सामाजिक और प्रशासनिक भेदभाव पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकार की कार्रवाई और बयानबाजी में विरोधाभास न्याय दिलाने के प्रयासों पर सवाल उठाते हैं।
यह मामला न केवल सोमनाथ के परिवार के लिए न्याय का सवाल है, बल्कि यह पूरे दलित समुदाय की गरिमा और अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बन गया है।