डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम भारतीय इतिहास और समाज में समानता, न्याय और स्वतंत्रता का पर्याय है। संविधान निर्माता और समाज सुधारक अंबेडकर ने अपने विचारों और सिद्धांतों के माध्यम से भारतीय समाज की बुनियादी समस्याओं को संबोधित किया। लेकिन वर्तमान में, उनके नाम और विचारों पर राजनीति का ऐसा खेल चल रहा है कि सवाल उठता है—क्या यह अंबेडकर के सिद्धांतों का सम्मान है या सियासी अवसरवाद?
अंबेडकर के विचार: सियासत के लिए चुनौती
डॉ. अंबेडकर ने अपने जीवनकाल में जातिवाद, असमानता और धार्मिक रूढ़िवाद के खिलाफ मजबूत आवाज उठाई। हिंदू धर्म में व्याप्त जातिवादी व्यवस्था और धार्मिक कुरीतियों से मोहभंग होने के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया। उनके द्वारा ली गई 22 प्रतिज्ञाएं न केवल उनके विचारों का प्रतिबिंब थीं, बल्कि वे हिंदुत्व की विचारधारा को खुली चुनौती भी देती थीं।
उनकी प्रतिज्ञाओं में मूर्ति पूजा, भगवान के अवतारवाद और ब्राह्मणवादी सोच का विरोध स्पष्ट रूप से झलकता है। इसके साथ ही, उन्होंने समानता, भाईचारा और लोकतंत्र के आदर्शों पर जोर दिया। यह विचार आज की राजनीति के लिए चुनौती बन गए हैं, क्योंकि वे उन रूढ़ियों और परंपराओं के विपरीत हैं, जिन पर अधिकांश राजनीतिक दल अपनी विचारधारा और समर्थन आधार तैयार करते हैं।
बीजेपी और अंबेडकर: विचारधारा का टकराव
बीजेपी की विचारधारा हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के इर्द-गिर्द घूमती है। यह विचारधारा अंबेडकर के उन सिद्धांतों से मेल नहीं खाती, जो जातिवाद के खात्मे और धार्मिक समानता पर आधारित थे।
अंबेडकर की प्रतिज्ञाएं मूर्ति पूजा और भगवान के अवतारवाद को खारिज करती हैं। वहीं, बीजेपी की राजनीति अक्सर इन्हीं धार्मिक प्रतीकों और परंपराओं पर आधारित होती है। इसके अलावा, अंबेडकर ने हिंदू राष्ट्र की अवधारणा का भी कड़ा विरोध किया था। उन्होंने इसे असमानता और लोकतंत्र के लिए खतरा बताया था। ऐसे में सवाल यह है कि क्या बीजेपी अंबेडकर के सिद्धांतों को पूरी तरह आत्मसात कर सकती है?
कांग्रेस और अंबेडकर: इतिहास की अनदेखी
कांग्रेस ने खुद को धर्मनिरपेक्षता और समानता की समर्थक पार्टी के रूप में प्रस्तुत किया है। लेकिन अंबेडकर के साथ कांग्रेस का रिश्ता हमेशा जटिल रहा। उन्होंने कांग्रेस पर दलितों के मुद्दों को नजरअंदाज करने और ब्राह्मणवादी सोच को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था।
कांग्रेस ने अंबेडकर को वह महत्व नहीं दिया, जो वह उनके जीवनकाल में और उसके बाद भी देने की आवश्यकता थी। यह इतिहास आज भी कांग्रेस के लिए एक कड़वी सच्चाई है, जो उसे अंबेडकर के सच्चे अनुयायी के रूप में प्रस्तुत करने में बाधा बनती है।
अंबेडकर के सिद्धांत और आज की राजनीति
अंबेडकर ने अपने विचारों और सिद्धांतों के माध्यम से एक ऐसा समाज बनाने का सपना देखा, जो जातिवाद, धार्मिक भेदभाव और असमानता से मुक्त हो। उनकी प्रतिज्ञाओं और विचारों का पालन करना आज भी मुश्किल है, खासकर उन राजनीतिक दलों के लिए, जो अपने समर्थन आधार को धार्मिक और जातिगत भावनाओं पर बनाते हैं।
क्या कोई पार्टी है अंबेडकर के करीब?
बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अंबेडकर के नाम का उपयोग करते हैं, लेकिन उनके सिद्धांतों पर चलने की कोशिश में कमजोर पड़ जाती हैं। बीजेपी के लिए हिंदुत्व को पीछे छोड़ना मुश्किल है, जबकि कांग्रेस के लिए अंबेडकर के साथ ऐतिहासिक असंगति एक बाधा है।
निष्कर्ष: अंबेडकर का सच्चा सम्मान कैसे हो?
डॉ. अंबेडकर का जीवन और उनके सिद्धांत आज भी समाज के लिए प्रेरणा हैं। लेकिन उनके नाम पर राजनीति करने की बजाय उनके विचारों को आत्मसात करना और समाज में समानता, न्याय और स्वतंत्रता को बढ़ावा देना ही उनका सच्चा सम्मान होगा।
अंबेडकर के आदर्शों का पालन करना केवल राजनीतिक मजबूरी नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसे एक नैतिक जिम्मेदारी के रूप में देखा जाना चाहिए। समाज के लिए यह समझना जरूरी है कि अंबेडकर के सिद्धांत किसी एक पार्टी की संपत्ति नहीं हैं। वे भारतीय लोकतंत्र और समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं।