महाराष्ट्र चुनाव: मुस्लिम वोटों के लिए सियासी होड़, वक्फ विधेयक और ईशनिंदा कानून पर बढ़ता तनाव
महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक दलों के बीच मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन पाने की होड़ तेज हो गई है। चाहे मुंबई हो, मालेगांव या मराठवाड़ा, प्रत्येक मुस्लिम बहुल क्षेत्र में मतदाताओं के ध्रुवीकरण के लिए हरसंभव प्रयास हो रहे हैं। इस दौरान भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) को छोड़कर बाकी लगभग सभी दल मुस्लिम समुदाय तक पहुंचने और उनकी राजनीतिक नब्ज़ को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं। यहां तक कि मराठा समाज के हालिया चर्चित नेता मनोज जरांगे पाटिल भी इस दौड़ में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
मुस्लिम उम्मीदवारों को लेकर बढ़ती राजनीतिक प्रतिस्पर्धा
महाराष्ट्र में इस बार की चुनावी होड़ खास है क्योंकि कई प्रमुख दलों ने बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जहां भाजपा और दोनों शिवसेना गुट मुस्लिम उम्मीदवारों से दूर हैं, वहीं समाजवादी पार्टी (सपा), राकांपा (अजीत पवार गुट), कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से अपने उम्मीदवारों को खड़ा किया है।
उदाहरण के लिए, मुंबई के शिवाजीनगर-मानखुर्द क्षेत्र में सपा के प्रदेश अध्यक्ष अबू आसिम आजमी और राकांपा के उम्मीदवार नवाब मलिक के बीच तीखी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है। यह प्रतिस्पर्धा सिर्फ मुस्लिम वोटों को आकर्षित करने के लिए ही नहीं बल्कि इस समुदाय के नेताओं के बीच भी वर्चस्व की लड़ाई को दर्शाती है।
वक्फ संशोधन विधेयक: मुस्लिम समाज की नाराजगी
8 अगस्त, 2024 को केंद्र सरकार ने लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक पेश किया। इस विधेयक को लेकर महाराष्ट्र में मुस्लिम समुदाय में चिंता बढ़ गई है। मुस्लिम नुमाइंदा परिषद के अध्यक्ष जियाउद्दीन सिद्दीकी ने इस विधेयक को लेकर विरोध जताते हुए कहा कि केंद्र सरकार के इस कदम का उद्देश्य देश भर में मुस्लिम समाज की संपत्तियों पर कब्जा जमाना है। यह विधेयक मुस्लिम समुदाय के अधिकारों और उनकी संपत्तियों के संरक्षण को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। इसके विरोध में छत्रपति संभाजीनगर में एक महीने तक क्रमिक धरना भी चला।
मुस्लिम नेताओं की प्रतिक्रिया और एकजुटता का प्रयास
मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली नेता और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआयएमआयएम) के पूर्व सांसद इम्तियाज जलील ने कहा कि पिछले कुछ सालों में मुस्लिम विरोधी बयानबाजी और नफरत भरे भाषणों में वृद्धि हुई है। इसे रोकने के लिए उन्होंने भारत में एक ईशनिंदा कानून बनाए जाने की मांग की है, ताकि धार्मिक असहिष्णुता और भड़काऊ भाषणों पर नकेल कसी जा सके।
इम्तियाज जलील ने हाल ही में एक बड़ी कार रैली भी निकाली, जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र के मुस्लिम समुदाय को एकजुट रहने और राजनीतिक ध्रुवीकरण के खिलाफ आवाज उठाने का संदेश दिया। उनके अनुसार, यह कानून धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देगा और नफरत फैलाने वालों के लिए एक निवारक उपाय साबित होगा।
मुस्लिम वोटों की राजनीतिक अहमियत और भविष्य की रणनीति
महाराष्ट्र के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मतदाताओं का ध्रुवीकरण चुनावों में एक महत्वपूर्ण पहलू बन गया है। जियाउद्दीन सिद्दीकी ने बताया कि लोकसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए का समर्थन किया था, हालांकि प्रमुख दलों ने मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारा था। अब, विधानसभा चुनावों में मुस्लिम संगठनों को उम्मीद है कि महाविकास अघाड़ी जैसे गठबंधन मुस्लिम समुदाय की प्रतिनिधित्व की अपेक्षाओं को पूरा करेंगे और अधिक मुस्लिम उम्मीदवार खड़े करेंगे।
मुस्लिम नुमाइंदा परिषद के प्रमुख ने खुलकर कहा कि मुस्लिम समुदाय इस बार भी भाजपा और महायुति (NDA) के उम्मीदवारों के खिलाफ जिताऊ मुस्लिम उम्मीदवारों को ही वोट देगा। उन्होंने दावा किया कि मुस्लिम समुदाय ने सामाजिक और राजनीतिक अन्याय का सामना किया है और अब उनकी राजनीतिक भागीदारी को मजबूत करने की आवश्यकता है।
मुस्लिम समुदाय के एकजुट होने का प्रभाव
महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति में मुस्लिम समुदाय की बढ़ती जागरूकता और एकजुटता का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वक्फ (संशोधन) विधेयक, ईशनिंदा कानून की मांग और मुस्लिम प्रतिनिधित्व की उम्मीदें इस बात का संकेत हैं कि मुस्लिम मतदाता सिर्फ पारंपरिक राजनीतिक समर्थन तक सीमित नहीं रहना चाहते। वे अब ऐसी रणनीतियों की तलाश में हैं जो उनके समुदाय के अधिकारों और पहचान को बनाए रखने में मददगार साबित हों।
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम समुदाय का यह रुझान विपक्षी दलों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा साबित हो सकता है। इसके माध्यम से वे भाजपा और उसके सहयोगी दलों के खिलाफ एक मजबूत राजनीतिक मोर्चा खड़ा कर सकते हैं।