सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा, “कब तक मुफ्त राशन देंगे? श्रमिकों के लिए रोज़गार पैदा करें”
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रवासी श्रमिकों के लिए मुफ्त राशन और सुविधाओं पर जोर देते हुए रोजगार और क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने कोविड महामारी के समय से जारी मुफ्त राशन योजना पर सवाल उठाते हुए कहा कि “कब तक मुफ्त सुविधाएं दी जा सकती हैं?”
81 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन, करदाता छूटे बाहर
केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त या रियायती दर पर राशन दिया जा रहा है। इस पर कोर्ट ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि इसका मतलब करदाता ही इन योजनाओं से बाहर हैं।
प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार की मांग
एनजीओ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने “ई-श्रम” पोर्टल पर पंजीकृत प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त राशन जारी रखने का अनुरोध किया। इस पर पीठ ने सवाल किया कि “क्यों न इन श्रमिकों के लिए नौकरी और रोजगार के अवसरों पर ध्यान दिया जाए?”
राज्य-केंद्र की जिम्मेदारी का मुद्दा
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि राज्यों को प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने का निर्देश देने से समस्या और बढ़ सकती है, क्योंकि राज्यों को पता है कि इसका खर्च केंद्र उठाएगा। भूषण ने जनगणना 2021 की कमी का जिक्र करते हुए कहा कि 2011 के आंकड़ों पर निर्भरता प्रवासी श्रमिकों की वास्तविक संख्या को दर्शाने में नाकाम है।
मेहता और भूषण के बीच तीखी बहस
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और प्रशांत भूषण के बीच तीखी नोकझोंक हुई। मेहता ने कुछ एनजीओ पर जमीनी स्तर पर काम न करने का आरोप लगाया, जबकि भूषण ने ईमेल विवाद का जिक्र किया। जस्टिस सूर्यकांत ने दोनों को शांत करने की कोशिश की और प्रवासी श्रमिकों के मामले की विस्तृत सुनवाई के लिए अगली तारीख 8 जनवरी तय की।
सुप्रीम कोर्ट का संतुलन
पीठ ने कहा कि कोविड काल अलग था, जब परेशान श्रमिकों को राहत दी गई, लेकिन अब दीर्घकालिक समाधान पर विचार करना जरूरी है। अदालत ने रोजगार और क्षमता निर्माण पर केंद्रित नीतियां अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
यह मामला न केवल प्रवासी श्रमिकों के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि सामाजिक और आर्थिक नीतियों पर गहरा असर डालेगा।