नई दिल्ली: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को मंदिर-मस्जिद विवादों को लेकर चिंता जताई और कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग ऐसे मुद्दे उठाकर समाज में तनाव फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, जो स्वीकार्य नहीं है।
समावेशी समाज की आवश्यकता पर जोर
सहजीवन व्याख्यानमाला के दौरान “भारत-विश्वगुरु” विषय पर बोलते हुए भागवत ने समावेशी समाज की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत को दुनिया के सामने यह उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए कि विभिन्न धर्मों के लोग शांति और सौहार्द के साथ रह सकते हैं।
“ऐसे विवाद समाज को विभाजित करते हैं”
भागवत ने राम मंदिर के निर्माण को सभी हिंदुओं की आस्था से जुड़ा बताया, लेकिन साथ ही कहा कि अब नए विवाद खड़े करना समाज के लिए हानिकारक है। उन्होंने कहा, “कुछ लोग समाज में तनाव फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, यह कतई स्वीकार्य नहीं है।” हालांकि, उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन हाल के मंदिरों के सर्वेक्षण को लेकर उठे विवादों की ओर इशारा किया।
भारतीय संविधान और विविधता पर जोर
भागवत ने कहा कि भारत अब संविधान के अनुसार चलता है, जहां सत्ता का केंद्रीकरण समाप्त हो चुका है और लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। उन्होंने भारतीय समाज की विविधता का उदाहरण देते हुए कहा कि रामकृष्ण मिशन में क्रिसमस का त्योहार भी मनाया जाता है।
कट्टरता के खिलाफ संदेश
मुग़लकाल का संदर्भ देते हुए भागवत ने कहा कि कट्टरता कभी स्थायी नहीं होती। उन्होंने औरंगजेब और बहादुर शाह जफर के उदाहरण दिए और कहा कि गोहत्या पर प्रतिबंध बहादुर शाह जफर ने लगाया था। उन्होंने कहा कि यदि हम सभी खुद को भारतीय मानते हैं, तो प्रभुत्व की भाषा का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
भागवत ने अंत में कहा कि भारत में सभी लोग समान हैं, चाहे वे बहुसंख्यक हों या अल्पसंख्यक। यहां सभी को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता है, लेकिन शांति और कानून का पालन करना अनिवार्य है।
विशेष संदेश
आरएसएस प्रमुख ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि भारत की परंपरा हमेशा से सह-अस्तित्व की रही है और इसे बनाए रखना सभी की जिम्मेदारी है।