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नागपुर हिंसा: इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की साजिश और बढ़ती सांप्रदायिक नफरत

लेखक: सय्यद फेरोज़ आशिक

– संपादकीय

महाराष्ट्र के नागपुर में जो कुछ हुआ, वह हमारे समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह सिर्फ एक दिन की हिंसा नहीं थी, बल्कि लंबे समय से फैलाई जा रही नफरत और सुनियोजित उकसावे का नतीजा थी। औरंगज़ेब के नाम पर भड़काऊ भाषण दिए गए, उनकी कब्र को खोदने की बातें की गईं, धार्मिक प्रतीकों का अपमान किया गया और अब जब हालात बिगड़ गए हैं, तो शांति बनाए रखने की अपील की जा रही है। सवाल यह है कि आखिर इस आग को भड़काने वाले कौन हैं? और उनके खिलाफ कार्रवाई कब होगी?

इतिहास को हथियार बनाकर नफरत फैलाने की साजिश

भारत का इतिहास विविधता और संघर्षों का इतिहास रहा है। यहाँ चोल, मौर्य, गुप्त, मुग़ल, मराठा, राजपूत, सिख—सभी ने शासन किया और अपने-अपने तरीके से भारत की संस्कृति में योगदान दिया। लेकिन आज इतिहास को एक जहरीले औजार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। मुगलों को हिंदू-विरोधी बताकर, औरंगज़ेब को शैतान साबित करने की कोशिश करके, धार्मिक उन्माद फैलाया जा रहा है।

यह विडंबना ही है कि जो लोग इतिहास को अपनी सुविधा के अनुसार तोड़-मरोड़ रहे हैं, वे यह भूल जाते हैं कि इतिहास किसी एक धर्म, जाति या संप्रदाय का नहीं होता। औरंगज़ेब जितना भारत का हिस्सा हैं, उतने ही छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, टीपू सुल्तान, अकबर, अशोक और गांधी भी हैं। यह सभी हमारे अतीत के पात्र हैं, जिन्हें गर्व और आलोचना दोनों के नजरिए से देखा जा सकता है। लेकिन इतिहास का इस्तेमाल नफरत भड़काने के लिए नहीं किया जा सकता।

नफरत की आग में झोंकने वाली फिल्में और बयानबाज़ी

नागपुर की हिंसा अचानक नहीं हुई। महीनों से लगातार ऐसी बातें फैलाई जा रही थीं, जिनका उद्देश्य समाज में कट्टरता और द्वेष फैलाना था। कुछ खास तरह की फिल्में इतिहास के नाम पर सिर्फ एक समुदाय को टारगेट करके नफरत का बीज बो रही हैं। सोशल मीडिया और जनसभाओं में भड़काऊ बयान दिए जा रहे थे, धार्मिक प्रतीकों का अपमान किया जा रहा था, और इसका अंत हिंसा के रूप में सामने आया।

जो लोग आज शांति की अपील कर रहे हैं, वही लोग कल तक इस आग में घी डाल रहे थे। अगर सच में शांति चाहिए, तो उन फिल्म निर्माताओं, नेताओं और उकसाने वालों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, जिन्होंने समाज को इस हिंसा की ओर धकेला।

नफरत के सौदागरों पर कार्रवाई कब?

इस हिंसा की जड़ में सिर्फ गुस्सा नहीं, बल्कि एक सुनियोजित रणनीति है।

  • कौन लोग थे, जिन्होंने औरंगज़ेब के पुतले को जलाया?
  • किसने कुरान की आयतें लिखकर अपमानजनक तरीके से प्रदर्शन किया?
  • कौन से संगठनों ने महीनों से नफरत की राजनीति को हवा दी?

अगर वास्तव में शांति की चाहत है, तो इन सवालों का जवाब सरकार को देना होगा। सिर्फ बयानबाजी से काम नहीं चलेगा। जो लोग इस हिंसा के मास्टरमाइंड हैं, उन्हें जेल में डालना होगा।

इतिहास पर राजनीति बंद होनी चाहिए

भारत मुग़ल काल से लेकर ब्रिटिश राज और आज़ादी तक एक साझा विरासत रखता है। हमें गर्व करना चाहिए कि हम एक ऐसे देश में रहते हैं, जहाँ इतिहास के अलग-अलग नायक और खलनायक हैं, लेकिन वे सब भारतीय इतिहास का हिस्सा हैं।

जो लोग इतिहास के नाम पर कब्रों को खोदने और अतीत से बदला लेने की बात कर रहे हैं, वे दरअसल अपनी जहालत और संकीर्ण मानसिकता को उजागर कर रहे हैं। भारत का भविष्य इतिहास से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने में है, न कि उसे हथियार बनाकर आपसी खून-खराबे में झोंकने में।

अब वक्त आ गया है कि सिर्फ शांति की अपील करने से आगे बढ़कर, नफरत की राजनीति करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं। इतिहास के नाम पर समाज को तोड़ने वाले लोगों को यह समझना होगा कि मुगल हों, शिवाजी हों, महाराणा प्रताप हों या गांधी—ये सब हमारे हैं, भारत के हैं, हमारी विरासत हैं।

निष्कर्ष

नागपुर की हिंसा सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि भविष्य के लिए एक चेतावनी है। अगर अब भी नफरत फैलाने वालों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह आग और भड़केगी और पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेगी। हमें इतिहास को हथियार नहीं, एक सीख की तरह देखना होगा—क्योंकि जो समाज अपने अतीत से सीख नहीं लेते, वे भविष्य में सिर्फ विनाश की ओर बढ़ते हैं।

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