“औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग पर विवाद: क्या साधु संत देश में दंगे भड़काना चाहते हैं?
अयोध्या छावनी के पीठाधीश्वर जगद्गुरु परमहंस महाराज द्वारा महाराष्ट्र सरकार को चेतावनी देने के बाद देशभर में नई बहस छिड़ गई है। परमहंस महाराज ने कहा है कि यदि सरकार औरंगजेब की कब्र नहीं हटाती, तो दो करोड़ साधु-संत महाराष्ट्र की ओर कूच करेंगे और उसे स्वयं हटा देंगे। इस बयान के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या साधु-संत देश में दंगा भड़काना चाहते हैं?
परमहंस महाराज के बयान को लेकर राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है। लोग पूछ रहे हैं कि इन साधु-संतों को इस प्रकार के उग्र बयान देने के लिए कौन शय दे रहा है? मंदिरों और मठों तक सीमित रहने वाले साधु-संत अब राजनीति में क्यों कूद पड़े हैं? क्या देश में मनुवादी विचारधारा को फिर से तेज करने की साजिश हो रही है? क्या यह देश में ब्राह्मण वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश है?
“क्या देश फिर ब्राह्मणवादी शासन की ओर बढ़ रहा है?”
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस प्रकार के बयान संघी मानसिकता का हिस्सा हैं, जो देश में धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकते हैं। क्या यह सब एक सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है? और यदि ऐसा है, तो इसके पीछे किन शक्तियों का हाथ है?
विपक्षी दलों और कई सामाजिक संगठनों ने इसे देश में संप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने की साजिश करार दिया है। उनका कहना है कि जब देश को आर्थिक, सामाजिक और विकास संबंधी मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है, तब इस तरह के बयान देकर धार्मिक उन्माद फैलाने की कोशिश की जा रही है।
“भाजपा सरकार के लिए अग्निपरीक्षा”
परमहंस महाराज ने महाराष्ट्र में भाजपा सरकार के गठन में साधु-संतों के समर्थन का दावा करते हुए कहा है कि अब सरकार का कर्तव्य बनता है कि वह औरंगजेब की कब्र को हटाए। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या भाजपा सरकार इन दबावों के आगे झुकेगी, या कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाएगी?
इस पूरे घटनाक्रम से महाराष्ट्र और देश की राजनीति में हलचल मच गई है। धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की कसौटी पर यह एक बड़ा सवाल खड़ा करता है कि क्या साधु-संतों को इस तरह की राजनीतिक बयानबाजी करनी चाहिए? और क्या यह देश के सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरा बन सकता है?
अब सभी की नजरें महाराष्ट्र सरकार की प्रतिक्रिया और भविष्य में इस मुद्दे को लेकर बनने वाले माहौल पर टिकी हैं।