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भारत में बढ़ता ‘ओपन मैरिज’ का ट्रेंड: रिश्तों की नई परिभाषा या नैतिकता पर सवाल?

नई दिल्ली: बदलते दौर के साथ रिश्तों की परिभाषा भी बदल रही है। एक समय था जब शादी को जन्मों का बंधन और समर्पण व भरोसे की नींव पर टिका रिश्ता माना जाता था, लेकिन अब रिश्तों को निभाने के तरीके भी बदल रहे हैं। ‘ओपन मैरिज’ नामक एक नया कॉन्सेप्ट अब भारत में भी धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहा है, खासकर शहरी क्षेत्रों में।

क्या है ओपन मैरिज?

ओपन मैरिज एक ऐसी शादी है, जिसमें पति-पत्नी आपसी सहमति से शादी के बाहर भी अन्य लोगों के साथ रोमांटिक या फिजिकल संबंध बना सकते हैं। हालांकि, इसे बहुविवाह (पॉलीएमोरी) से अलग माना जाता है, क्योंकि पॉलीएमोरी में कई लोगों के साथ इमोशनल रिलेशनशिप अहम होते हैं, जबकि ओपन मैरिज में शारीरिक संबंध प्राथमिक होते हैं।

भारत में बढ़ती ओपन मैरिज की प्रवृत्ति

शहरों में यह ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकारने वाले लोगों की संख्या कम है। फ्रांस की एक्स्ट्रा मैरिटल डेटिंग ऐप ‘ग्लीडेन’ पर 30 लाख से अधिक भारतीय एक्टिव हैं, जो इस चलन की बढ़ती स्वीकार्यता को दर्शाता है। वहीं, 2023 के बम्बल सर्वे के अनुसार, 60% सिंगल भारतीयों ने कहा कि वे भविष्य में ओपन मैरिज या पॉलीएमोरी जैसे रिश्ते को अपना सकते हैं।

साइकोलॉजिस्ट की राय

वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक मोनिका शर्मा का कहना है कि ओपन मैरिज में पारंपरिक विवाह के मुकाबले ज्यादा ईमानदारी की जरूरत होती है, क्योंकि इसमें आपसी सहमति से पार्टनर्स को स्वतंत्रता दी जाती है। हालांकि, यह हर व्यक्ति के लिए सही नहीं होता, इसलिए इसे अपनाने से पहले इसके नैतिक, भावनात्मक और सामाजिक पहलुओं को समझना जरूरी है।

ओपन मैरिज: आधुनिकता या रिश्तों की बेड़ियां तोड़ने की कोशिश?

भारत में पारंपरिक विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है, लेकिन ओपन मैरिज को लेकर नैतिकता और सामाजिक मूल्यों पर सवाल उठ रहे हैं। कई लोग इसे रिश्तों में ईमानदारी और आज़ादी का प्रतीक मानते हैं, तो कई इसे ‘नैतिक गिरावट’ और ‘संबंधों की अनिश्चितता’ के रूप में देख रहे हैं।

निष्कर्ष:

ओपन मैरिज को चाहे नया ट्रेंड माना जाए या आधुनिक समाज की जरूरत, यह स्पष्ट है कि यह भारतीय संस्कृति के पारंपरिक मूल्यों को चुनौती दे रहा है। इसे कुछ लोग नए जमाने की रिश्तों की परिभाषा कह रहे हैं, जबकि अन्य इसे ‘धोखे को वैधता देने का तरीका’ बता रहे हैं। आखिरकार, यह हर व्यक्ति की निजी पसंद का विषय है, लेकिन यह समाज और रिश्तों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।

(खासदार टाईम्स की विशेष रिपोर्ट)

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