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क्या लव जिहाद कानून के ज़रिए मुस्लिम युवाओं को फंसाने की हो रही है साजिश?

सय्यद फेरोज़ आशिक की कलम से

महाराष्ट्र सरकार द्वारा ‘लव जिहाद’ और धर्मांतरण पर कानून लाने की कवायद देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है। यह सवाल उठता है कि जब देश और राज्य बेरोजगारी, महंगाई, स्वास्थ्य, और शिक्षा जैसे गंभीर मुद्दों से जूझ रहे हैं, तब सरकार की प्राथमिकता विवादास्पद कानून लाने की क्यों है?

ऐसे कानूनों का उद्देश्य जनता के ध्यान को मूलभूत समस्याओं से भटकाना है। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि सरकार वास्तविक मुद्दों पर काम करने के बजाय धार्मिक भावनाओं को भड़काकर हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दों के सहारे राजनीतिक फायदे उठाने में लगी हुई है।

इस प्रकार का कानून न केवल समाज में नफरत और विभाजन को बढ़ावा देगा, बल्कि संविधान में दिए गए व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन भी करेगा। क्या सरकार यह भूल गई है कि भारत का संविधान हर नागरिक को अपनी पसंद से जीवनसाथी चुनने और धर्म अपनाने का अधिकार देता है?

भाजपा सरकार का यह कदम केवल एक समुदाय को निशाना बनाने का प्रयास है, जिससे मुस्लिम युवाओं को जबरन कानून के दायरे में फंसाकर उनकी जिंदगी बर्बाद की जा सके। यह एक चिंताजनक स्थिति है, क्योंकि यह नीति सरकार की नाकामी को छिपाने का हथकंडा प्रतीत होती है।

जब बेरोजगारी अपने चरम पर है और आम आदमी महंगाई से त्रस्त है, तब सरकार को इस पर काम करना चाहिए। लेकिन इसके बजाय, वह जनता को धर्म के नाम पर विभाजित करने में लगी है ताकि किसी को यह सवाल पूछने का मौका न मिले कि रोजगार और विकास के लिए क्या किया गया है।

यह भी देखा गया है कि सरकार की नीतियां केवल अंबानी और अदाणी जैसे बड़े उद्योगपतियों के हितों की पूर्ति करती नजर आती हैं। गरीब और मध्यम वर्ग के लिए सरकार के पास कोई ठोस योजना नहीं है। विकास के दावे केवल उन तक सीमित हैं जो पहले से ही विशेषाधिकार प्राप्त हैं।

यह समय है कि जनता इन सियासी खेलों को पहचाने और सरकार से विकास, रोजगार और सामाजिक समानता पर सवाल पूछे। धर्म और जाति की राजनीति से ऊपर उठकर देश को एकता और प्रगति के रास्ते पर ले जाने की जरूरत है। संविधान के मूल्यों की रक्षा करना हमारा नैतिक दायित्व है, और इसके खिलाफ किसी भी साजिश का पुरजोर विरोध होना चाहिए।

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