“राजनीति नहीं, जनसेवा का मिशन है — खान एजाज़ अहमद की अनोखी पहल”

जब राजनीति आज चकाचौंध, पैसे और प्रचार के शोर में डूबी हुई नज़र आती है, तब एक शख्स खामोशी से लोगों के बीच विश्वास का दीप जला रहा है — नाम है खान एजाज़ अहमद। एक ऐसा नेता, जो चुनाव को सेवा का माध्यम मानता है, सत्ता पाने का जरिया नहीं।
सच्चाई, पारदर्शिता और इंसानियत के तीन स्तंभ
खान एजाज़ अहमद की राजनीतिक सोच किसी दल विशेष से नहीं, बल्कि देश के भविष्य से जुड़ी है। वे मानते हैं कि राजनीति में सच्चाई होनी चाहिए, चुनावों में पारदर्शिता और नेताओं में इंसानियत। वे उस राजनीति के हिमायती हैं, जहाँ पैसा नहीं, विचार चलते हैं। उनका संकल्प है कि एक ऐसा मॉडल खड़ा किया जाए, जिसमें चुनाव के लिए बेतहाशा खर्च और दिखावे की कोई जरूरत न हो।
2019 से 2029 तक — सफर की एक ईमानदार शुरुआत
2019 में औरंगाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ते हुए, खान एजाज़ अहमद ने यह दिखा दिया कि बिना धनबल और बाहुबल के भी जनता का दिल जीता जा सकता है। 23 उम्मीदवारों में से पाँचवें स्थान पर आना, वह भी सीमित संसाधनों के साथ, उनके विचारों की स्वीकृति का संकेत है।
अब वे 2029 के लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरने को तैयार हैं — लेकिन इस बार और भी मजबूत सोच और दूरदर्शिता के साथ।
एक राष्ट्रीय सोच: पूरे देश में बदलाव की लहर
खान एजाज़ अहमद सिर्फ अपने क्षेत्र के नेता नहीं रहना चाहते, वे चाहते हैं कि राजनीति का नया मॉडल — जो ईमानदारी, इंसानियत और जनसरोकार पर आधारित हो — पूरे देश में लागू हो। इसके लिए वे क्रांतिकारी विचारधारा रखने वाले युवाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को साथ जोड़ रहे हैं। उनका सपना है कि राजनीति फिर से एक सम्मानजनक और समाजोन्मुख पेशा बने।
प्रचार नहीं, संवाद है उनका हथियार
जहाँ बाकी नेता बड़े मंच, मीडिया प्रचार और रोड शो में व्यस्त रहते हैं, वहीं खान एजाज़ अहमद आम लोगों के बीच बैठकर ‘चाय पे चर्चा’ करते हैं, जन संवाद करते हैं, और उनके विचारों को समझते हैं। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म को वे अपने विचारों के प्रचार का माध्यम बनाते हैं, न कि दिखावे का।
एक अपील: पहचानिए सच्चे नेता को
आज जब देश ऐसी राजनीति से परेशान है, जहाँ वादे बहुत होते हैं लेकिन नीयत कमजोर होती है, तब खान एजाज़ अहमद जैसे नेता उम्मीद की किरण हैं। ऐसे लोगों को समर्थन देकर देश एक नया रास्ता अपना सकता है — जहां सत्ता नहीं, सेवा सर्वोपरि हो।
अब वक्त है — सोच बदलने का, सिस्टम बदलने का और राजनीति को फिर से पवित्र बनाने का।