
14 अप्रैल विशेष – एक प्रेरणादायक और क्रांतिकारी जीवन की अमर गाथा
प्रस्तावना
14 अप्रैल 1891 को एक दलित परिवार में जन्म लेकर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने न केवल भारत के संविधान की रचना की, बल्कि करोड़ों शोषितों और वंचितों को न्याय, समानता और सम्मान का अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ी। उनका जीवन एक सशक्त उदाहरण है कि कठिनाइयों के बीच भी शिक्षा, संघर्ष और आत्मबल के सहारे बदलाव लाया जा सकता है।
1. पारिवारिक जीवन
जन्म व बचपन:
बाबासाहेब का जन्म मध्यप्रदेश के महू नामक स्थान पर हुआ। वे अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे और अत्यंत अनुशासनप्रिय व शिक्षाप्रेमी थे। उनकी माता भीमाबाई धार्मिक एवं सहनशील महिला थीं।
जातीय भेदभाव का अनुभव:
हालांकि उनके पिता सेना में अधिकारी थे, लेकिन भीमराव को जातिगत भेदभाव का गहरा अनुभव बचपन से ही होने लगा था। स्कूल में उन्हें पानी तक छूने नहीं दिया जाता था, न बेंच पर बैठने दिया जाता था।
विवाह और परिवार:
बाबासाहेब का विवाह 1906 में रामाबाई से हुआ। दोनों के बीच गहरा प्रेम था। लेकिन उनकी पारिवारिक जिंदगी कष्टों से भरी रही। रामाबाई को अनेक पारिवारिक दुखों का सामना करना पड़ा। पांच बच्चों में केवल एक बेटा यशवंत जीवित रहा।
1935 में रामाबाई का निधन हो गया। बाद में बाबासाहेब ने डॉक्टर शारदा कबीर से विवाह किया, जो विवाह के बाद सविता आंबेडकर बनीं और बाबासाहेब के अंतिम दिनों तक उनकी सेवा करती रहीं।
2. शिक्षा और सामाजिक संघर्ष
शिक्षा की महान यात्रा:
शोषण और गरीबी के बावजूद बाबासाहेब ने शिक्षा की लौ को कभी बुझने नहीं दिया।
- उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया।
- फिर स्कॉलरशिप पाकर कोलंबिया यूनिवर्सिटी (अमेरिका) से M.A. और PhD की डिग्री ली।
- इसके बाद लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से भी D.Sc. की डिग्री प्राप्त की।
- उन्होंने बार-एट-लॉ भी किया।
सामाजिक क्रांति की शुरुआत:
बाबासाहेब ने समाज के निचले तबके के अधिकारों के लिए अनेक ऐतिहासिक आंदोलन किए —
- 1927 – चवदार तालाब सत्याग्रह: दलितों को सार्वजनिक जल का अधिकार दिलाने के लिए।
- 1930 – कालाराम मंदिर आंदोलन: मंदिर में प्रवेश के लिए।
- ‘बहिष्कृत भारत’, ‘मूकनायक’ जैसे पत्रों के माध्यम से आवाज बुलंद की।
- उन्होंने मनुस्मृति दहन कर जातीय व्यवस्था के विरुद्ध क्रांति का संदेश दिया।
3. राजनैतिक जीवन
संविधान निर्माता:
भारत की आजादी के बाद जब संविधान का निर्माण हुआ, तो बाबासाहेब को संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
- उन्होंने एक ऐसा संविधान बनाया, जिसमें हर नागरिक को समानता, स्वतंत्रता और न्याय का अधिकार मिला।
- अनुच्छेद 17 के तहत छुआछूत को अपराध घोषित किया गया।
कानून मंत्री पद और इस्तीफा:
वे भारत के पहले कानून मंत्री बने, लेकिन जब हिंदू कोड बिल को संसद में पारित नहीं होने दिया गया, तो उन्होंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया।
राजनैतिक संगठन:
- बाबासाहेब ने ‘शेड्यूल कास्ट फेडरेशन’ और बाद में ‘रेपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया’ की नींव रखी।
4. धर्म परिवर्तन – बौद्ध धम्म की ओर
हिंदू धर्म से मोहभंग:
बाबासाहेब ने कहा था – “मैं हिंदू धर्म में जन्मा यह मेरे हाथ में नहीं था, लेकिन हिंदू होकर मरूं या नहीं यह मैं तय करूंगा।”
14 अक्टूबर 1956 को नागपुर के दीक्षाभूमि में बाबासाहेब ने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार किया।
- उन्होंने 22 प्रतिज्ञाएं दिलवाईं।
- यह महज धर्म परिवर्तन नहीं था, बल्कि सामाजिक मुक्ति का ऐतिहासिक आंदोलन था।
5. अंतिम संस्कार – अमर हो गई एक क्रांति
6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में उनका निधन हुआ।
उनकी अंतिम यात्रा को देखने के लिए लाखों लोग उमड़े।
- पार्थिव शरीर को मुंबई लाया गया।
- दादर के चौपाटी पर बौद्ध रीति से अंतिम संस्कार किया गया।
- यह स्थान आज ‘चैत्यभूमि’ के नाम से जाना जाता है – एक पवित्र तीर्थ।
उपसंहार
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर केवल संविधान निर्माता नहीं थे, वे क्रांति, समानता और न्याय के प्रतीक थे। उनका जीवन बताता है कि कैसे ज्ञान, संघर्ष और नेतृत्व से पूरी व्यवस्था बदली जा सकती है।
आज जब हम उनकी जयंती मनाते हैं, तो यह केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि संकल्प होना चाहिए — उनके विचारों को अपनाने और सामाजिक न्याय की मशाल को आगे बढ़ाने का।