दुनियाभर में मांस का बड़े पैमाने पर सेवन किया जाता है, जिसके लिए प्रतिदिन लाखों जानवरों की हत्या की जाती है। इससे न केवल पशुओं पर क्रूरता होती है, बल्कि मांग के मुकाबले आपूर्ति भी पूरी नहीं हो पाती। एक नई रिपोर्ट में सामने आया है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में लोग प्रयोगशाला में तैयार मांस को पसंद कर रहे हैं। इसे स्वास्थ्य के लिए अधिक लाभकारी माना जा रहा है और यह पर्यावरण के लिए भी बेहतर विकल्प है।
कैसे तैयार होता है प्रयोगशाला में मांस?
प्रयोगशाला में तैयार मांस, जिसे कल्चर्ड मीट, सेल-बेस्ड मीट, या आर्टिफिशियल मीट भी कहा जाता है, जानवरों की हत्या के बिना बनाया जाता है। इसे तैयार करने की प्रक्रिया में सबसे पहले जीवित जानवर से बायोप्सी के जरिए मांसपेशी की स्टेम कोशिकाएं ली जाती हैं। इन कोशिकाओं को विशेष पोषक माध्यम में रखा जाता है, जहां ये विभाजित होकर मांसपेशी और वसा कोशिकाओं में बदल जाती हैं। अंततः ये कोशिकाएं मांस का रूप ले लेती हैं।
पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए बेहतर विकल्प
प्रयोगशाला में तैयार मांस पर्यावरण के लिए पारंपरिक मांस की तुलना में अधिक फायदेमंद है। इसे साफ और नियंत्रित वातावरण में तैयार किया जाता है, जिससे बैक्टीरिया और वायरस के संक्रमण का खतरा कम होता है। इसमें एंटीबायोटिक्स और हार्मोन का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। इसके अलावा, इसका उत्पादन प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
एशिया में बढ़ रही है मांग
ग्लोबल डेटा की रिपोर्ट के अनुसार, सिंगापुर, जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और भारत जैसे देशों में प्रयोगशाला में तैयार मांस की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसे प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन का अच्छा स्रोत माना जा रहा है, जो ऊर्जा से भरपूर है।
पारंपरिक मांस का सुरक्षित और टिकाऊ विकल्प
प्रयोगशाला में तैयार मांस पारंपरिक मांस का बेहतर और सुरक्षित विकल्प है। यह न केवल पशुओं की हत्या को रोकता है, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है। भविष्य में, इसे मांसाहार की नई दिशा के रूप में देखा जा रहा है, जो स्थिरता और नैतिकता दोनों को प्राथमिकता देता है।