मदुरै जिले के तिरुमंगलम के पास अनुपपट्टी गांव में स्थित “करुमपाराई मुथैया” मंदिर में हर साल आयोजित होने वाला अनोखा त्योहार इस बार भी चर्चा का विषय बन गया। मार्गशीर्ष महीने में मनाए जाने वाले इस त्योहार में केवल पुरुषों को भाग लेने की अनुमति है, जबकि महिलाओं के प्रवेश पर पूरी तरह प्रतिबंध है।
10,000 लोगों के लिए मांस भोज
त्योहार के दौरान मंदिर में पाले गए काले बकरों की बलि दी गई और 50 बोरी चावल के साथ मांस पकाकर 10,000 पुरुषों को भोज परोसा गया। खास बात यह है कि बलि के लिए इस्तेमाल किए गए बकरे सालभर मंदिर और उसके आसपास के जंगलों में खुले छोड़ दिए जाते हैं।
पूजा की अनोखी परंपरा
त्योहार की शुरुआत सुबह 8 बजे भक्तों द्वारा पोंगल बनाकर पूजा से की गई। इसके बाद भेंट किए गए बकरों की बलि दी गई। मंदिर में करुमपाराई मुथैया स्वामी की कोई मूर्ति नहीं है। पूजा के बाद तैयार भोजन को मिट्टी के ढेर पर सजाया गया और झोल डालकर परोसा गया।
सवालों के घेरे में परंपरा
यह त्योहार जहां परंपरागत आस्था का प्रतीक है, वहीं मांस भोज और बलि प्रथा पर कई सवाल भी उठ रहे हैं। खासतौर पर बकरीद जैसे त्योहारों पर बलि का विरोध करने वाले संगठनों की इस प्रथा पर चुप्पी को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि जीव हत्या के प्रति यह दोहरा मापदंड क्यों? क्या धार्मिक मान्यताओं के आधार पर नियम अलग-अलग हो सकते हैं?
परंपरा बनाम आधुनिकता
त्योहार के इस स्वरूप ने धार्मिक और सामाजिक बहस को जन्म दिया है। जहां कुछ लोग इसे आस्था और परंपरा का हिस्सा मानते हैं, वहीं अन्य इसे समय के साथ बदलने की जरूरत बताते हैं। क्या इस तरह की परंपराएं भविष्य में भी जारी रहनी चाहिए, यह चर्चा का विषय है।