Editorial

गणतंत्र दिवस: लोकतंत्र की अद्भुत यात्रा और आज के भारत की दिशा

सय्यद फेरोज़ आशिक की कलम से

26 जनवरी भारत के इतिहास का वह गौरवशाली दिन है, जब देश ने अपने संविधान को अंगीकार कर लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्वयं को स्थापित किया। यह दिन न केवल हमारे संवैधानिक मूल्यों की याद दिलाता है, बल्कि भारत की विविधता में एकता, सामाजिक समरसता और विकास की यात्रा को भी दर्शाता है।

गणतंत्र की संकल्पना: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत को एक संगठित राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की चुनौती थी। अंग्रेजों की छोड़ी हुई प्रशासनिक व्यवस्था भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं थी। ऐसे में, देश के समक्ष एक ऐसा संविधान बनाने का दायित्व था जो न केवल राष्ट्रीय एकता को सुनिश्चित करे, बल्कि हर नागरिक को समान अधिकार और अवसर प्रदान करे।

संविधान सभा, जिसकी अध्यक्षता डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने की और मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने नेतृत्व किया, ने 2 साल, 11 महीने और 18 दिन की कड़ी मेहनत के बाद 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंतिम रूप दिया। हालांकि, इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया, ताकि 1930 में इसी दिन हुए पूर्ण स्वराज दिवस की ऐतिहासिक स्मृति को जीवंत रखा जा सके।

गणतंत्र दिवस का व्यापक महत्व

गणतंत्र दिवस केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों का एक प्रत्यक्ष प्रतीक है। यह दिन हमें भारतीय गणराज्य के उन स्तंभों—न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व—की याद दिलाता है, जिन पर यह राष्ट्र टिका है।

भारत का संविधान न केवल दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, बल्कि यह अपने नागरिकों को मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों की भी सीख देता है। यह दिन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं?

गणतंत्र दिवस समारोह: एक राष्ट्रीय उत्सव

हर वर्ष, दिल्ली के कर्तव्य पथ (पूर्व में राजपथ) पर आयोजित गणतंत्र दिवस परेड, भारत की सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक समृद्धि का भव्य प्रदर्शन है। इस परेड में भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना के जवान अनुशासन और शक्ति का प्रदर्शन करते हैं, तो वहीं विभिन्न राज्यों की झांकियां भारत की सांस्कृतिक विरासत को उजागर करती हैं।

इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में किसी मित्र राष्ट्र के प्रमुख को आमंत्रित किया जाता है, जो भारत की कूटनीतिक नीतियों और वैश्विक संबंधों का प्रतीक होता है। वहीं, इस अवसर पर वीरता पुरस्कारों का वितरण, विशेष रूप से परमवीर चक्र, महावीर चक्र और अशोक चक्र जैसे सम्मानों द्वारा देश के वीर जवानों को सम्मानित किया जाता है।

आधुनिक भारत और गणतंत्र दिवस की प्रासंगिकता

आज, जब भारत विश्व में एक उभरती हुई शक्ति के रूप में अपनी पहचान बना रहा है, तब संविधान की प्रासंगिकता और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। आर्थिक विकास, सामाजिक समरसता और तकनीकी प्रगति के बीच हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों से कोई समझौता न हो।

गणतंत्र दिवस हमें यह याद दिलाता है कि लोकतंत्र केवल चुनावों तक सीमित नहीं, बल्कि यह एक सतत प्रक्रिया है जिसमें नागरिकों की भागीदारी, जिम्मेदारी और जवाबदेही अनिवार्य है। सामाजिक असमानता, भ्रष्टाचार और बढ़ती असहिष्णुता जैसे मुद्दों से निपटने के लिए हमें संविधान के मार्गदर्शन का पालन करना आवश्यक है।

युवाओं की भूमिका: गणतंत्र की नींव

आज का युवा भारत, डिजिटल क्रांति, नवाचार और स्टार्टअप संस्कृति के माध्यम से देश को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहा है। ऐसे में, युवाओं का यह कर्तव्य है कि वे अपने कर्तव्यों को समझें और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए संविधान को अपने जीवन का मार्गदर्शक बनाएं।

संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के साथ-साथ हर नागरिक का यह उत्तरदायित्व है कि वह देश की प्रगति में योगदान दे और जाति, धर्म तथा भाषा की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता को मजबूत करे।

निष्कर्ष

गणतंत्र दिवस न केवल भारत की संप्रभुता का प्रतीक है, बल्कि यह एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण का संकल्प भी है जो समावेशी, न्यायसंगत और समृद्ध हो। हमें इस अवसर पर न केवल देश की उपलब्धियों का जश्न मनाना चाहिए, बल्कि अपनी जिम्मेदारियों को भी समझना चाहिए।

“सशक्त भारत का निर्माण तभी संभव है जब हम सभी नागरिक अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों को भी प्राथमिकता दें।”

गणतंत्र दिवस हमें यह प्रेरणा देता है कि हम भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को और अधिक मजबूत करें और एक उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर हों।

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