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छोटी उम्र, बड़ा सब्र: मासूम बहनों ने रखा पहला रोज़ा, बना मिसाल

सिल्लोड : (उंडनगांव) रमज़ान-उल-मुबारक बरकतों, रहमतों और इबादत का महीना है। इस मुक़द्दस महीने में जहाँ बड़ों के लिए रोज़ा फ़र्ज़ किया गया है, वहीं कई मासूम बच्चे भी बड़े जज़्बे और इख़्लास के साथ इस इबादत में शामिल होते हैं। ऐसा ही एक दिल छू लेने वाला मंजर उंडनगांव में देखने को मिला, जब शेख आयशा अज़ीम (5 साल) और शेख फरिहा अज़ीम (4 साल) ने पहली बार रोज़ा रखकर अपने परिवार और समाज के लिए फ़ख्र का मौक़ा पैदा किया।

पहले रोज़े का अज्म और हौसला

जुम्मा के दिन इन मासूम बहनों ने रोज़ा रखने का इरादा किया। घरवालों को पहले लगा कि इतनी छोटी उम्र में यह उनके लिए मुश्किल होगा, लेकिन दोनों बहनों का अज़्म (दृढ़ संकल्प) और इबादत के लिए जुनून देखकर सभी हैरान रह गए। सहरी के वक्त दोनों अपनी वालिदा के साथ उठीं, निय्यत की और रोज़े की बुनियाद रखी। दिन भर भूख-प्यास की सख़्ती को बर्दाश्त करते हुए इन मासूम रोज़ेदारों ने साबित कर दिया कि सच्चे दिल से की गई इबादत में अल्लाह ताअला खुद ताक़त देता है।

इफ़्तार का पुरसुकून मंज़र

गर्म मौसम के बावजूद दोनों बच्चियों ने सब्र और इस्तिक़ामत (धैर्य और दृढ़ता) से रोज़ा मुकम्मल किया। जब इफ़्तार का वक़्त आया, तो घर का माहौल जज़्बाती हो गया। वालिदैन ने अपनी लाडली बेटियों के इस जज़्बे को सलाम किया और उनके लिए ख़ास दुआएं मांगी। पूरे परिवार ने मिलकर इनके पहले रोज़े की खुशी को यादगार बना दिया। रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने भी इन नन्हीं रोज़ेदारों की हिम्मत की दाद दी।

मुस्लिम समाज के बच्चों के लिए बनी मिसाल

शेख आयशा और शेख फरिहा ने इतनी छोटी उम्र में जो सब्र और इख़्लास का सबूत दिया, वह दूसरे बच्चों के लिए भी एक मिसाल बन गया है। रमज़ान सिर्फ भूख और प्यास सहने का नाम नहीं, बल्कि तर्बियत, सब्र, और इबादत का महीना है। इन मासूम बहनों ने साबित कर दिया कि जब नीयत पाक होती है, तो उम्र कोई मायने नहीं रखती।

उनका यह पहला रोज़ा हमेशा उनके लिए और उनके परिवार के लिए एक यादगार लम्हा रहेगा। अल्लाह इन मासूम बच्चियों की इबादत को क़ुबूल फरमाए और उन्हें दीनी और दुनियावी तरक्की अता करे। आमीन!

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