
इतिहास की घटनाओं का निष्पक्ष विश्लेषण
भारतीय इतिहास में मुग़ल शासक औरंगज़ेब को क्रूर, कट्टर, और धार्मिक असहिष्णु शासक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। विशेष रूप से यह कहा जाता है कि उसने अपने पिता शाहजहाँ को कैद कर दिया, अपने भाइयों की हत्या करवाई, और हिंदुओं के प्रति कठोर नीतियाँ अपनाईं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सत्ता संघर्ष में केवल औरंगज़ेब ही अपवाद था?
अगर इतिहास को निष्पक्षता से देखा जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि सत्ता के लिए अपनों का ही खून बहाना न तो औरंगज़ेब से शुरू हुआ था और न ही उस पर खत्म हुआ। यह प्रवृत्ति भारत के हर बड़े राजवंश में देखने को मिलती है, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान। सत्ता प्राप्ति और सुरक्षा की यह परंपरा केवल मुग़लों तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसे प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक और उसके बाद भी देखा जा सकता है।
सत्ता और परिवार: जब अपनों ने अपनों को मारा
राजनीति में सत्ता केवल अधिकार नहीं बल्कि एक युद्ध था, जिसमें विजय के लिए किसी भी हद तक जाना पड़ता था। यहाँ नैतिकता और पारिवारिक प्रेम अक्सर पीछे छूट जाते थे। भारत के प्राचीन राजवंशों में भी सत्ता संघर्ष की वजह से अपनों की हत्या करना एक आम बात थी।
- प्रसेनजीत: को उनके ही पुत्र ने धोखा देकर कैद कर लिया था।
- बिम्बिसार, जो मगध के शक्तिशाली सम्राट थे, उन्हें उनके बेटे अजातशत्रु ने कारागार में डालकर मृत्यु के घाट उतार दिया।
- अजातशत्रु को उसके पुत्र उदयभद्र ने मार डाला।
- उदयभद्र की हत्या उसके पुत्र अनिरुद्ध ने की।
- अनिरुद्ध को उसके पुत्र मुंड ने मार दिया।
- मुंड को उसके पुत्र नगदसक ने खत्म कर दिया।
- समुद्रगुप्त के पुत्र रामगुप्त की हत्या उसके छोटे भाई चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने की।
- अशोक महान ने अपने भाइयों को मारकर गद्दी प्राप्त की।
- महाभारत के पांडवों ने भी सत्ता के लिए अपने भाइयों को मारा।
- राणा सांगा के पिता राणा उदय सिंह प्रथम ने अपने ही पिता राणा कुंभा को धोखे से मंदिर में मार डाला।
- राणा सांगा ने अपने दो भाइयों की हत्या कर सत्ता प्राप्त की।
अगर केवल पारिवारिक हत्याओं के आधार पर किसी शासक को क्रूर कहा जाए, तो फिर इन सभी शासकों को भी उसी श्रेणी में रखना चाहिए। लेकिन इतिहास में इन्हें अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा गया है। अशोक को ‘धम्म सम्राट’, समुद्रगुप्त को ‘भारत का नेपोलियन’ और राणा सांगा को ‘वीर योद्धा’ माना जाता है। फिर औरंगज़ेब के साथ यह भेदभाव क्यों?
औरंगज़ेब का सत्ता संघर्ष: क्या यह अपवाद था?
औरंगज़ेब का अपने भाइयों के साथ संघर्ष किसी एक धर्म की वजह से नहीं था, बल्कि यह सत्ता की भूख का नतीजा था। मुग़ल परंपरा में उत्तराधिकार किसी के जन्म के आधार पर तय नहीं होता था, बल्कि जिसे सत्ता हासिल करनी होती थी, उसे अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराना होता था।
- दारा शिकोह औरंगज़ेब का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी था। अगर औरंगज़ेब उसे नहीं मारता, तो शायद दारा शिकोह ही उसे खत्म कर देता।
- शाहजहाँ को कैद करने का निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि वह दारा शिकोह को गद्दी सौंपना चाहते थे, जबकि मुग़ल परंपरा में बादशाहत ताकत के आधार पर तय होती थी।
- औरंगज़ेब के इस कदम को सिर्फ क्रूरता कहना सही नहीं होगा, क्योंकि अगर उसने ऐसा न किया होता, तो शायद वह खुद मारा जाता।
- मुग़ल इतिहास में इससे पहले भी सत्ता के लिए खून बहाया गया था—हुमायूँ, जहाँगीर, और शाहजहाँ सभी ने सत्ता के लिए संघर्ष किया था।
क्या केवल औरंगज़ेब ही क्रूर था?
अगर केवल सत्ता प्राप्ति के लिए अपनों की हत्या करना ही क्रूरता की परिभाषा होती, तो फिर अशोक, समुद्रगुप्त, और राणा सांगा को भी उसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
- जब चाणक्य ने नंद वंश को समाप्त करने के लिए षड्यंत्र किए, तो इसे राजनीति कहा गया।
- जब अशोक ने अपने भाइयों का संहार किया, तो उन्हें “धम्म सम्राट” कहा गया।
- जब अकबर ने हेमू का सिर काटकर किले पर लटकाया, तो उसे महानता माना गया।
- लेकिन जब औरंगज़ेब ने सत्ता के लिए संघर्ष किया, तो उसे क्रूरता कहा गया।
संभाजी महाराज की हत्या और मनुवादी कानून
संभाजी महाराज की हत्या को औरंगज़ेब की सबसे क्रूरतम घटना के रूप में देखा जाता है। कहा जाता है कि उनकी हत्या बेहद अमानवीय तरीके से की गई थी, लेकिन इसके पीछे भी एक बड़ी राजनीतिक साजिश थी।
- इतिहासकार मानते हैं कि संभाजी को मनुवादी कानून के तहत मारने का निर्णय लिया गया था।
- अगर यह केवल धार्मिक कट्टरता का मामला होता, तो मुग़ल सेना में हिंदू राजा और सेनापति क्यों थे?
- जय सिंह, जसवंत सिंह और अन्य हिंदू राजाओं ने मुग़लों के साथ गठबंधन किया था।
- क्या यह संभव था कि एक इस्लामी कट्टर शासक केवल हिंदुओं को ही निशाना बनाए, जबकि उसकी सेना में हजारों हिंदू अधिकारी और सैनिक थे?
इतिहास को देखने का सही तरीका
इतिहास को पढ़ने और समझने के लिए जरूरी है कि हम उसे निष्पक्षता से देखें, न कि किसी धर्म, जाति या व्यक्तिगत भावनाओं के आधार पर।
- औरंगज़ेब का शासनकाल बहुत लंबा था, और उसने अनेक प्रशासनिक सुधार भी किए।
- उसने हिंदू व्यापारियों को करों में छूट दी और कई मंदिरों को भी दान दिया।
- हाँ, उसने कई मंदिरों को गिरवाया, लेकिन यह राजनीतिक कारणों से किया गया था, न कि केवल धार्मिक कट्टरता के कारण।
- अगर औरंगज़ेब इतना ही क्रूर होता, तो क्या मराठों, राजपूतों और सिखों से इतने लंबे समय तक संघर्ष कर पाता?
निष्कर्ष
इतिहास को धर्म के आधार पर बाँटना सही नहीं है। अगर सत्ता संघर्ष की घटनाओं को देखें, तो औरंगज़ेब अकेला नहीं था, जिसने अपने परिवार के सदस्यों के खिलाफ युद्ध लड़ा। यह राजनीति का एक हिस्सा था, जिसमें नैतिकता से ज्यादा सत्ता मायने रखती थी।
अगर औरंगज़ेब को केवल क्रूरता के आधार पर याद किया जाता है, तो फिर उन सभी राजाओं को भी उसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए जिन्होंने सत्ता के लिए अपनों का खून बहाया। सही इतिहास वही होता है, जो सभी को समान दृष्टि से देखे, न कि किसी एक को दानव और दूसरे को देवता बनाने का प्रयास करे।