
दिनांक 17 मार्च 2025 को भारतीय बौद्ध महासभा, लोणार तालुका की ओर से बिहार के मुख्यमंत्री को बुद्धगया स्थित महाबोधि महाविहार को गैर-बौद्धों के नियंत्रण से मुक्त कराने को लेकर तहसीलदार, लोणार के माध्यम से एक ज्ञापन सौंपा गया।
ज्ञापन में कहा गया कि महाबोधि महाविहार दुनिया भर के बौद्ध धर्मावलंबियों का श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। भारत में अन्य धर्मों के धार्मिक स्थलों का प्रबंधन उनके अपने धर्मावलंबियों के हाथों में है, लेकिन महाबोधि महाविहार, जो कि बौद्ध धर्म का पवित्र स्थल है, वह अब भी गैर-बौद्धों के नियंत्रण में है। इसलिए, इसे बौद्धों के नियंत्रण में सौंपने की मांग भारतीय बौद्ध महासभा, लोणार तालुका द्वारा उठाई गई।
इसके साथ ही, बिहार सरकार से ‘महाबोधि महाविहार अधिनियम 1949’ को पूरी तरह समाप्त करने की मांग की गई और महाबोधि महाविहार का संपूर्ण प्रबंधन बौद्ध धर्मावलंबियों को सौंपने की अपील की गई। इस मांग को विभिन्न बौद्ध संगठनों, राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों का समर्थन प्राप्त हुआ।
ज्ञापन सौंपते समय ये प्रमुख लोग रहे उपस्थित
इस दौरान भारतीय बौद्ध महासभा के प्रमुख पदाधिकारी सदाशिव साबळे, राहुल अंभोरे, नागवंशी संघपाल पनाड, मेहकर-लोणार विधानसभा के नेता सुधाकर वानखडे, सरस्वती ताई साबळे, तुळशीदास घेवंदे, विजय सरकटे, रत्नमाला मुळे, वैशाली खरात, आम्रपाली तुरुकमाने, अर्चना कांबळे, पंचशीला मोरे और उषाताई नरवडे आदि उपस्थित थे।
इसके अलावा, रिपब्लिकन पार्टी के नेता भाई संघपाल पनाड, वंचित बहुजन आघाडी के वरिष्ठ नेता डॉ. के. बी. इंगळे, भाई दीपक अंभोरे, भाई महेंद्र मोरे और अन्य संगठनों के तानाजी अंभोरे, समाधान सरदार सहित कई प्रमुख नेताओं ने इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
महिला पदाधिकारियों में तुकाराम साळवे, जी.के. तुरुकमाने, प्रतीक्षा गवई, पल्लवी मोरे, नंदा सरकटे, रत्नमाला इंगोले, छाया भालेराव, रेखा ससाने, उषा अंभोरे, सुरेखा भगत, कुसुम मोरे, रुक्मिणी कांबळे, अलका घेवंदे, स्नेहलता गवई, भारती अवसरमोल सहित बड़ी संख्या में बौद्ध समुदाय के लोग इस आंदोलन में शामिल हुए।
बौद्ध समुदाय की प्रमुख मांगें
- महाबोधि महाविहार को गैर-बौद्धों के नियंत्रण से मुक्त किया जाए।
- महाबोधि महाविहार अधिनियम 1949 को रद्द किया जाए।
- महाबोधि महाविहार का संपूर्ण प्रबंधन बौद्ध धर्मावलंबियों के हाथों में सौंपा जाए।
इस आंदोलन को बौद्ध समाज के लोगों और विभिन्न राजनीतिक-सामाजिक संगठनों का समर्थन मिल रहा है, और उन्होंने बिहार सरकार से जल्द से जल्द उचित कदम उठाने की मांग की है।