धर्म के नाम पर बढ़ती नफरतें: क्या हम एकता और भाईचारे की विरासत भूल रहे हैं?
लेखक : सय्यद फेरोज़ आशिक
आज का भारत एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहाँ धर्म और जाति के नाम पर नफरत फैलाना आम हो गया है। धर्म की अफीम चाटे हुए कुछ लोग अपने ही देशवासियों को दुश्मन समझने लगे हैं। हालिया घटनाएं, जैसे कि एक मुस्लिम सब्जी विक्रेता पर हमला और उसे “बांग्लादेशी” कहकर पीटना, यह दर्शाती हैं कि समाज का एक हिस्सा किस कदर ज़हर से भर चुका है।
यहां सवाल उठता है: क्या भारत के मुसलमानों का इस देश पर कोई हक़ नहीं है?
अगर हम भारत के इतिहास पर नजर डालें, तो मुस्लिम समुदाय ने इस देश की स्वतंत्रता के लिए उतनी ही कुर्बानियां दी हैं जितनी किसी अन्य समुदाय ने दी होंगी। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, मौलवी अहमदुल्लाह शाह फ़ैज़ाबादी, अब्दुल हमीद जैसे अनगिनत मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी। ये वे लोग थे जिन्होंने अपनी आखिरी सांस तक भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया।
आज की स्थिति
यह देखकर दुख होता है कि आज का भारत, जिसे कभी अपनी गंगा-जमुनी तहजीब पर गर्व था, धार्मिक विभाजन और नफरत के जाल में फंसता जा रहा है। हाल ही में वायरल हुए वीडियो में एक गरीब मुस्लिम सब्जी विक्रेता को सरेआम पीटा जा रहा है, और उसे बांग्लादेशी कहा जा रहा है। हमलावर ने माफी मांग ली, लेकिन क्या माफी इन गहरी नफरतों को मिटा सकती है?
मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती हिंसा
गाय के नाम पर लिंचिंग हो या मुसलमानों के अस्तित्व पर सवाल, इस तरह की घटनाओं ने देश के ताने-बाने को हिला दिया है। यह वही देश है जहाँ सदियों से हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई साथ रहते आए हैं। ऐसे में यह चिंता का विषय है कि आज कुछ लोग इस भाईचारे को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
समाज और सरकार की जिम्मेदारी
सरकार और समाज दोनों को इस स्थिति पर गंभीरता से ध्यान देना होगा। जो लोग धर्म और जाति के नाम पर नफरत फैला रहे हैं, उन्हें पहचानना और उनका विरोध करना आज सबसे ज़रूरी हो गया है। यह देश जितना हिंदुओं का है, उतना ही मुसलमानों का भी है। हमें उन ताकतों को चुनौती देनी होगी जो हमारे देश की एकता और अखंडता को कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं।
समाज को जागरूक करना, नफरत के खिलाफ आवाज उठाना, और इंसानियत को प्राथमिकता देना ही इस समस्या का हल है। यह समय है जब हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों को याद करें और उस भाईचारे और एकता को फिर से जीवित करें जिसके लिए उन्होंने संघर्ष किया था।
गोदी मीडिया का प्रोपेगेंडा: हिंदू-मुस्लिम विभाजन को बढ़ावा देने की साजिश
देश में सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे को तोड़ने के लिए जिस तरह से गोदी मीडिया और कुछ राजनीतिक संगठन काम कर रहे हैं, वह चिंता का विषय बन गया है। दिन भर टीवी पर मुस्लिम विरोधी एजेंडा चलाना, हिंदुओं को भड़काना, और “हिंदू खतरे में है” जैसे जुमलों के जरिए समाज में नफरत फैलाना अब एक नई सामान्यता बन गई है। गोदी मीडिया न केवल इस ध्रुवीकरण को हवा दे रही है, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता को खत्म करने का काम भी कर रही है।
मुस्लिमों के खिलाफ झूठा प्रोपेगेंडा
टीवी डिबेट्स में मुसलमानों को निशाना बनाकर उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाए जाते हैं। “गाय के नाम पर” मुस्लिम विरोधी बयानबाजी और हिंसा को सामान्य बनाने की कोशिश की जा रही है। इस प्रोपेगेंडा का मुख्य उद्देश्य मुसलमानों को देशद्रोही या बाहरी के रूप में पेश करना और हिंदू समुदाय के बीच भय का माहौल बनाना है। नफरत का यह खेल गोदी मीडिया के माध्यम से जनता तक पहुंचता है, जो दिन रात इस एजेंडे को बढ़ावा दे रही है।
राजनीतिक साजिश
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर आरोप लगते हैं कि वे धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं। झूठी अफवाहों और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़काया जा रहा है। यह रणनीति चुनावी राजनीति के लिए बनाई गई है, जिससे वोट बैंक की राजनीति की जा सके। मुसलमानों के खिलाफ झूठी खबरें फैलाना और हिंदुओं के बीच असुरक्षा का माहौल बनाना इसका मुख्य उद्देश्य है।
गंगा-जमुनी तहजीब पर हमला
भारत की गंगा-जमुनी तहजीब और सर्व धर्म समभाव की भावना पर लगातार हमला हो रहा है। सदियों से चले आ रहे हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को कमजोर करने के लिए मीडिया और राजनीति का सहारा लिया जा रहा है। “हिंदू खतरे में हैं” का नैरेटिव फैलाकर इस भाईचारे को तोड़ा जा रहा है। गोदी मीडिया द्वारा मुसलमानों के खिलाफ लगातार हो रही बहसें और झूठे आरोप समाज में विभाजन और नफरत का बीज बो रही हैं।
सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा
यह प्रोपेगेंडा न केवल सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि हिंसा और सांप्रदायिक तनाव को भी बढ़ावा दे रहा है। कई बार अफवाहें और झूठी खबरें वास्तविक हिंसा में बदल जाती हैं, जहाँ निर्दोष लोग निशाना बनते हैं। गाय के नाम पर हुई लिंचिंग की घटनाएं इसका सबसे बुरा उदाहरण हैं, जहां सिर्फ अफवाहों के चलते मासूम मुसलमानों की जान ली गई।
समाज को जागरूक करने की जरूरत
इस पूरे षड्यंत्र का मुकाबला करने के लिए समाज को जागरूक होना बेहद जरूरी है। यह समझने की आवश्यकता है कि मीडिया और राजनीति किस तरह से हमें विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर फैलने वाले झूठे संदेशों और प्रोपेगेंडा के खिलाफ सटीक जानकारी और तथ्यात्मकता से लड़ना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि देश का सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारा बरकरार रहे।
गोदी मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे झूठे प्रोपेगेंडा और राजनीतिक साजिशों का उद्देश्य सिर्फ समाज को बांटना और नफरत फैलाना है। यह हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है। हमें इन साजिशों से सतर्क रहना होगा और अपने देश की गंगा-जमुनी तहजीब और भाईचारे को बचाए रखना होगा।