
उर्दू भाषा न केवल एक साहित्यिक धरोहर है, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक विरासत का अभिन्न हिस्सा भी है। इस भाषा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से लेकर प्रेम और भाईचारे के संदेश तक, हर पहलू को अपने अंदर समेटा है। लेकिन दुर्भाग्यवश, आज यह भाषा राजनीतिक साजिशों और कट्टरपंथी धारणाओं का शिकार बन गई है।
उर्दू: भारतीयता की पहचान
उर्दू भाषा का जन्म भारतीय उपमहाद्वीप की माटी में हुआ। यह भाषा मूलतः फारसी, अरबी और स्थानीय भाषाओं के मिश्रण से विकसित हुई। उर्दू का अर्थ ही है ‘लश्कर की भाषा’, जिसका तात्पर्य है कि यह भाषा विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के मेलजोल से बनी है। यही कारण है कि उर्दू हमेशा से सांस्कृतिक विविधता और एकता का प्रतीक रही है।
- क्रांतिकारी भाषा: उर्दू ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। भगत सिंह ने जेल से अपने आखिरी ख़त उर्दू में लिखे। ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ और ‘जय हिंद’ जैसे नारे उर्दू भाषा के ही उपहार हैं।
- महात्मा गांधी का प्रेम: गांधी जी उर्दू को ‘हिंदुस्तानी’ भाषा कहते थे और इसे भारतीय एकता की ज़बान मानते थे।
- नेहरू और पटेल का उर्दू प्रेम: पंडित नेहरू और सरदार पटेल भी उर्दू के साहित्य और कविता से प्रभावित थे।
उर्दू में साहित्यिक योगदान
भारतीय साहित्य में उर्दू भाषा ने अमिट छाप छोड़ी है। यह प्रेम, बग़ावत और सामाजिक न्याय की भाषा रही है।
- राम प्रसाद बिस्मिल: क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी भावनाओं को उर्दू में व्यक्त किया। उनकी कविताएं और लेखन उर्दू के प्रति उनके गहरे प्रेम को दर्शाते हैं।
- फिराक़ गोरखपुरी: उर्दू शायरी के महान हस्ताक्षर रघुपति सहाय ‘फिराक़’ ने उर्दू को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
- गुलज़ार: सम्पूर्ण सिंह कालरा, जिन्हें हम गुलज़ार के नाम से जानते हैं, ने उर्दू भाषा में गीत, ग़ज़ल और कहानियों के माध्यम से अपनी अमर पहचान बनाई।
आनंद नारायण मुल्ला और उर्दू
आनंद नारायण मुल्ला, जो स्वयं हिंदू थे, ने उर्दू को ‘सुलह की ज़बान’ कहा। उनकी शायरी उर्दू के प्रति उनके प्रेम और सम्मान को व्यक्त करती है। उनकी एक प्रसिद्ध पंक्ति:
“मुल्ला बना दिया है इसे भी महाज़-ए-जंग,
इक सुल्ह का पयाम थी उर्दू ज़बाँ कभी।”
उर्दू पर हो रही सियासत
आज के दौर में, उर्दू भाषा को एक विशेष समुदाय से जोड़कर देखा जा रहा है। कुछ राजनेता इसे कट्टरपंथ से जोड़ते हुए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं।
- भ्रम और पूर्वाग्रह: यह धारणा गलत है कि उर्दू केवल एक धर्म विशेष की भाषा है। उर्दू के कवि और लेखक विभिन्न धर्मों से आए हैं और उन्होंने इसे भारतीयता की भाषा बनाया है।
- धार्मिकता बनाम साहित्य: उर्दू हमेशा से साहित्य, प्रेम और समानता की भाषा रही है। इसे धर्म से जोड़ना भाषा के इतिहास और उसकी महानता के साथ अन्याय है।
उर्दू: प्रेम और भाईचारे का संदेश
उर्दू ने हमेशा से प्रेम, सौहार्द और एकता का संदेश दिया है। यह विभाजन नहीं, बल्कि मेलजोल की भाषा है। जिस उर्दू में भगत सिंह ने स्वतंत्रता की बात की, जिस उर्दू में प्रेमचंद ने अपने साहित्य को संवारा, वह भाषा कट्टरपंथियों की नहीं हो सकती।
इसलिए, उर्दू को सांप्रदायिक राजनीति से अलग रखकर इसे भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर के रूप में संरक्षित करना हम सभी की ज़िम्मेदारी है। जैसा कि गांधी जी ने कहा था, उर्दू को हिंदुस्तानी भाषा के रूप में अपनाएं और इसे विभाजन की नहीं, बल्कि एकता की भाषा बनाएं।