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EVM घोटाले की खुली पोल तो सरकार ने बदले नियम? चुनावी पारदर्शिता पर संकट: महमूद प्राचा

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील महमूद प्राचा ने चुनाव संचालन नियमों में हाल ही में किए गए संशोधनों को “लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सीधा हमला” करार दिया है। इन संशोधनों के तहत जनता की मतदान दस्तावेज़ों, जैसे सीसीटीवी फुटेज और रिटर्निंग अधिकारियों के संचार, तक पहुंच सीमित कर दी गई है।

प्राचा ने कहा कि यह कदम चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही को कमजोर करता है। मध्य प्रदेश में पेपर बैलेट की वापसी के लिए अभियान चला रहे प्राचा ने दावा किया कि सरकार ने “रंगे हाथों पकड़े जाने” के बाद नियमों को बदला है।

संशोधनों का उद्देश्य और उनकी आलोचना
चुनाव नियमों में किए गए ये संशोधन मतदान की वीडियोग्राफी और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों तक पहुंच को बाधित करते हैं। प्राचा ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे “लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर करने की साजिश” बताया।

उन्होंने कहा, “मैंने पारदर्शिता के लिए लड़ाई लड़ी है ताकि हर नागरिक को अदालत के हस्तक्षेप के बिना चुनाव सामग्री तक पहुंच मिल सके।” उन्होंने संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की भी योजना बनाई है।

ईवीएम पर सवाल और पेपर बैलेट की मांग
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) की मुखर आलोचना करते हुए, प्राचा ने इन्हें “छेड़छाड़ के लिए संवेदनशील” बताया। उन्होंने पेपर बैलेट की वापसी का आह्वान करते हुए कहा, “ये संशोधन चुनावों की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। सरकार वोटों से छेड़छाड़ के डर से यह कदम उठा रही है।”

विपक्ष और नागरिक समाज से अपील
प्राचा ने विपक्षी दलों और नागरिक समाज से एकजुट होकर इन संशोधनों का विरोध करने का आग्रह किया। उन्होंने इन्हें “संविधान विरोधी” और “फासीवादी” करार दिया। प्राचा ने जन आंदोलनों की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, “आप अदालती फैसलों को अनदेखा करके लोकतंत्र को पनपने की उम्मीद नहीं कर सकते।”

आगे की योजना
चुनावी पारदर्शिता के लिए लड़ाई जारी रखने का संकल्प लेते हुए, प्राचा ने खुलासा किया कि वे हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में 90 से अधिक लोकसभा सीटों और विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव रद्द करने के लिए कानूनी रास्ते तलाश रहे हैं।

प्राचा के अनुसार, यदि राजनीतिक दल उनका समर्थन करते हैं, तो कुछ ही महीनों में फिर से चुनाव कराए जा सकते हैं। उनकी इस लड़ाई ने चुनावी पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर एक नई बहस को जन्म दिया है।

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