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संपादकीय: भारत के अमीरों का पलायन – अवसर या चेतावनी?

भारत, एक ऐसा देश जिसने “सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा” जैसे शब्दों को आत्मसात किया, आज एक अलग वास्तविकता का सामना कर रहा है। देश के धनी और प्रभावशाली नागरिक, जो कभी इसकी प्रगति और विकास के स्तंभ थे, तेजी से पलायन कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति केवल आर्थिक मुद्दों का परिणाम नहीं है, बल्कि यह भारत की प्रशासनिक, सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियों की ओर भी संकेत करती है।

आकर्षक विदेश, घटता मोह

पिछले कुछ वर्षों में, हेनली प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट जैसी रिपोर्ट्स ने बताया है कि हजारों करोड़पति भारतीय देश छोड़ रहे हैं। 2024 में 4,300 करोड़पतियों के भारत छोड़ने की उम्मीद है। यह केवल आर्थिक निर्णय नहीं है, बल्कि जीवन की गुणवत्ता, कर प्रणाली और प्रशासनिक जटिलताओं से निराशा का परिणाम है।

विदेश का आकर्षण

  1. गोल्डन वीजा प्रोग्राम्स: संयुक्त अरब अमीरात, यूनान और अन्य यूरोपीय देशों द्वारा दिए जा रहे नागरिकता विकल्पों ने अमीर भारतीयों को आकर्षित किया है।
  2. संपत्ति और व्यापार के अवसर: लंदन, दुबई, और सिंगापुर जैसे शहरों में भारतीय उद्योगपतियों ने संपत्ति खरीदी है।
  3. ग्लोबल कनेक्टिविटी: बेहतर तकनीकी और परिवहन सुविधाओं ने भारतीय उद्यमियों को विदेश में अपने कारोबार का संचालन करने में सक्षम बनाया है।

भारत में जीवन की चुनौतियां

  1. शहरी अराजकता: प्रदूषण, अवैध निर्माण, ट्रैफिक जाम, और खराब स्वच्छता ने भारतीय शहरों को रहने के लिए मुश्किल स्थान बना दिया है।
  2. टैक्स और आर्थिक बाधाएं: उच्च टैक्स दरों और जटिल कर प्रणाली ने उद्योगपतियों और व्यापारियों को निराश किया है।
  3. न्यायिक और प्रशासनिक समस्याएं: धीमी न्यायिक प्रक्रिया और अप्रभावी प्रशासन ने अमीर और प्रतिभाशाली लोगों के पलायन को बढ़ावा दिया है।

पलायन के प्रभाव

भारत के लिए आर्थिक नुकसान

जब अमीर और प्रतिभाशाली लोग देश छोड़ते हैं, तो इससे भारत को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों आर्थिक नुकसान होता है। उनके साथ-साथ उनकी संपत्ति, निवेश और कारोबार भी देश से बाहर चला जाता है।

  • प्रतिभा का पलायन: नवाचार और उद्यमिता के क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले लोग भारत की वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन थे।
  • निवेश का ह्रास: जिन धनाढ्यों के पास निवेश की क्षमता है, वे इसे विदेशों में लगा रहे हैं।

भारत की वैश्विक छवि पर असर

यह प्रवृत्ति यह संकेत देती है कि भारत, जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का दावा करता है, अपने नागरिकों को अपने साथ बनाए रखने में असफल हो रहा है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को धूमिल करता है।

समाधान की दिशा में कदम

1. बुनियादी ढांचे में सुधार

भारतीय शहरों में सार्वजनिक परिवहन, स्वच्छता, और प्रदूषण नियंत्रण पर ध्यान देना होगा। नए हवाई अड्डे और राष्ट्रीय राजमार्ग बनने के बावजूद, भारत के शहर अंतरराष्ट्रीय मानकों से काफी पीछे हैं।

2. प्रशासनिक और न्यायिक सुधार

कानून-व्यवस्था और न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी और त्वरित बनाना होगा। लोगों को भरोसा दिलाना होगा कि उनके अधिकार और संपत्ति सुरक्षित हैं।

3. टैक्स प्रणाली को सरल बनाना

जटिल और उच्च कर प्रणाली को सरल और उद्यम-अनुकूल बनाना जरूरी है। “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” पहल को जमीनी स्तर पर प्रभावी बनाना होगा।

4. भारतीय नागरिकों से जुड़ाव

सरकार को अपने नागरिकों से नियमित संवाद स्थापित करना होगा। उनकी जरूरतों और समस्याओं को समझने और उनका समाधान करने की पहल करनी होगी।

निष्कर्ष: भारतीय प्रतिभा और संपत्ति को बनाए रखने की जरूरत

भारत से अमीर और प्रतिभाशाली नागरिकों का पलायन केवल व्यक्तिगत निर्णय नहीं है; यह राष्ट्रीय समस्या है। यह समस्या केवल आर्थिक नहीं है, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था की कमियों को भी उजागर करती है।

अगर भारत को विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाए रखनी है और “विकसित भारत” का सपना साकार करना है, तो उसे अपने नागरिकों के लिए बेहतर जीवन स्तर, सुविधाएं और प्रशासनिक ढांचा तैयार करना होगा। देश छोड़कर जाने वाले कुछ लाख लोग भले ही बड़ी संख्या न लगें, लेकिन उनकी अनुपस्थिति का असर देश के भविष्य पर गहरा होगा।

हमें एक ऐसा भारत बनाना होगा जहां हर भारतीय गर्व से कह सके, “सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा।”

लेखक : सय्यद फेरोज़ आशिक

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