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मौलाना साद के बयान पर विवाद, असम में तबलीगी जमात के खिलाफ फतवा जारी

असम में कुछ मौलानाओं द्वारा दावत-ए-तबलीग के खिलाफ फतवा जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि अब असम में मुसलमान तबलीगी जमात का काम नहीं करेंगे। मौलानाओं का कहना है कि तबलीगी जमात के अमीर मौलाना साद साहब कुरान की गलत व्याख्या कर रहे हैं और उनकी शिक्षाएं सही नहीं हैं।

इस फतवे के विरोध में जमीयत उलेमा-ए-हिंद, कामरूप के सदर एडवोकेट जुनैद खालिद ने बयान दिया है। उन्होंने कहा कि यह फतवा अनुचित है और असम के कई प्रमुख उलेमा इससे नाराज हैं।

क्या है मामला?
जीन्यूज की एक रिपोर्ट के अनुसार, कुछ मौलानाओं ने आरोप लगाया है कि मौलाना साद साहब हिदायत के मालिक के संबंध में गलत बयान दे रहे हैं। उनका कहना है कि हिदायत देने का अधिकार केवल अल्लाह को है, जबकि मौलाना साद के बयानों में इसके विपरीत बातें की जा रही हैं। इसी को लेकर असम में तबलीगी जमात के खिलाफ यह फतवा जारी किया गया है।

तबलीगी जमात का इतिहास
तबलीगी जमात की शुरुआत 1926-27 में इस्लामी स्कॉलर मौलाना मोहम्मद इलियास ने की थी। उन्होंने दिल्ली के पास मेवात क्षेत्र में इस्लामी शिक्षाओं के प्रचार के लिए यह पहल शुरू की थी। तबलीगी जमात की पहली बड़ी बैठक 1941 में हुई थी, जिसमें 25 हजार लोग शामिल हुए थे। धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरे भारत में फैला और आज इसकी शाखाएं दुनियाभर के 140 देशों में मौजूद हैं, जिनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं।

तबलीगी जमात का उद्देश्य लोगों में धार्मिक आस्था को मजबूत करना और इस्लाम के सिद्धांतों का प्रचार करना है। इस संगठन के मरकज (मुख्यालय) दिल्ली के निजामुद्दीन में स्थित है।

फतवे पर बढ़ता विवाद
इस फतवे के बाद असम में मुस्लिम समुदाय के बीच चर्चा तेज हो गई है। कई उलेमा इस फैसले के खिलाफ हैं और इसे दावत व तबलीग के काम में बाधा मान रहे हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के एडवोकेट जुनैद खालिद ने कहा कि इस तरह के फतवे से समाज में भ्रम की स्थिति पैदा होगी।

पुलिस और प्रशासन इस पूरे मामले पर नजर बनाए हुए हैं, जबकि धार्मिक संगठनों के बीच इसे लेकर बहस जारी है।

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