बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारी में AIMIM, ‘हैदराबादी प्लान’ के तहत बनाएगी रणनीति

बिहार में विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, लेकिन राजनीतिक दलों ने अभी से चुनावी समीकरणों को साधने की कोशिशें तेज कर दी हैं। इसी कड़ी में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) भी बिहार में अपनी सियासी पकड़ मजबूत करने और अन्य दलों के समीकरण बिगाड़ने की तैयारी कर रही है।
AIMIM का ‘हैदराबादी प्लान’, नई रणनीति पर फोकस
AIMIM इस बार बिहार में अपनी रणनीति को नए तरीके से लागू करने जा रही है। पार्टी का जोर न सिर्फ सीमांचल क्षेत्र पर रहेगा, बल्कि राज्य के अन्य हिस्सों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की जाएगी। पार्टी ने ‘हैदराबादी प्लान’ के तहत बिहार में अधिक से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारने की रणनीति बनाई है। AIMIM इस बार कम से कम 50 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।
सीमांचल से आगे बढ़ने की रणनीति
पार्टी ने 2020 के विधानसभा चुनावों में सीमांचल क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन किया था और 5 सीटों पर जीत हासिल की थी। अब पार्टी सीमांचल के अलावा राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी पैर पसारने की कोशिश कर रही है। पार्टी के शीर्ष नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ लगातार मंथन किया जा रहा है।
AIMIM का हिंदू-मुस्लिम संतुलन
पार्टी इस चुनाव में नया प्रयोग करने जा रही है। जानकारी के अनुसार, जितनी सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे जाएंगे, उतनी ही सीटों पर गैर-मुस्लिम उम्मीदवार भी खड़े किए जाएंगे। AIMIM की इस रणनीति के तहत सीमांचल क्षेत्र से वरिष्ठ नेता राणा रणजीत सिंह को बहादुरगंज या बलरामपुर सीट से चुनाव लड़ाने की योजना बनाई जा रही है। पार्टी का कहना है कि वह केवल मुस्लिमों की पार्टी नहीं है, बल्कि समाज के हर वर्ग की आवाज बनने के लिए चुनावी मैदान में उतर रही है।
AIMIM की बिहार में बढ़ती राजनीतिक ताकत
बिहार विधानसभा चुनाव में AIMIM की एंट्री 2015 में हुई थी, लेकिन तब पार्टी को सफलता नहीं मिली थी। हालांकि, 2020 में पार्टी ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और 5 सीटों पर जीत हासिल कर राजनीतिक समीकरण बदल दिए। AIMIM का वोट शेयर भी बढ़कर 1.24% हो गया।
क्या महागठबंधन से हाथ मिलाएगी AIMIM?
AIMIM के राष्ट्रीय प्रवक्ता आदिल हसन ने कहा कि बीजेपी को हराने के लिए सभी समान विचारधारा वाली पार्टियों को साथ आना होगा। उन्होंने यह भी संकेत दिए कि अगर बिहार में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के साथ गठबंधन की संभावनाएं बनती हैं, तो पार्टी इस पर विचार कर सकती है।
AIMIM का चुनावी एजेंडा
AIMIM सीमांचल और बिहार के पिछड़े इलाकों में विकास के मुद्दे को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ेगी। पार्टी का कहना है कि इस क्षेत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की भारी कमी है, जिससे हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय प्रभावित हो रहे हैं। पार्टी का लक्ष्य सीमांचल और अन्य पिछड़े इलाकों का विकास सुनिश्चित करना है।
निष्कर्ष
AIMIM बिहार में अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। पार्टी इस बार बड़ी संख्या में सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है और मुस्लिम व हिंदू समुदाय के उम्मीदवारों के संतुलन के साथ अपनी छवि को व्यापक बनाने का प्रयास कर रही है। बिहार की राजनीति में AIMIM की यह नई रणनीति कितना असर डालेगी, यह आगामी विधानसभा चुनावों में देखने को मिलेगा।