मनसे के 25 उम्मीदवारों की चुनौती से महायुति और MVA की बढ़ी मुश्किलें
मुंबई विधानसभा चुनावों का काउंटडाउन शुरू हो चुका है, जिसमें सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन (भाजपा-शिवसेना शिंदे गुट) और विपक्षी महाविकास अघाड़ी (MVA) के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है। इस बार चुनाव में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) की एंट्री ने मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है। मनसे ने मुंबई की कुल 36 विधानसभा सीटों में से 25 पर अपने प्रत्याशी उतारकर दोनों प्रमुख गठबंधनों की राह में मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
MNS की चुनावी रणनीति और प्रभाव
MNS ने इस बार विधानसभा चुनाव में उन सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जिन पर मराठी वोटों का प्रभाव अधिक है। माहिम और वर्ली जैसे क्षेत्रों में मनसे की उपस्थिति ने वहां मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। वर्ली सीट पर MNS ने उद्धव गुट के आदित्य ठाकरे और शिंदे गुट के मिलिंद नार्वेकर के खिलाफ प्रत्याशी उतारकर इसे हाई-प्रोफाइल मुकाबला बना दिया है। माहिम सीट पर भी मनसे की सक्रियता ने चुनाव को रोचक बना दिया है।
महायुति और MVA के खिलाफ रणनीतिक दांव
मनसे ने भाजपा के खिलाफ 10 और शिंदे गुट के खिलाफ 12 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। यह स्थिति महायुति के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है, क्योंकि मराठी वोटों का बंटवारा होने से महायुति और MVA दोनों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। खास बात यह है कि मनसे ने सात प्रमुख भाजपा नेताओं के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं, जिनमें मुंबई भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार और विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर शामिल हैं।
मनसे की मौजूदगी से चुनावी समीकरण पर असर
राज ठाकरे की पार्टी की मौजूदगी से यह संभावना जताई जा रही है कि अगर मराठी वोट मनसे के पक्ष में चले गए तो महायुति और MVA दोनों गठबंधनों को भारी नुकसान हो सकता है। मनसे ने जिन सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं, उनमें वर्ली, माहिम, कुर्ला, चांदीवली, भांडुप, और विक्रोली जैसे मराठी बहुल क्षेत्र शामिल हैं।
राजनीतिक विश्लेषण और संभावित नतीजे
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मनसे की चुनावी रणनीति ने महायुति और MVA को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया है। मराठा मानुष के समर्थन के लिए राज ठाकरे की अपील और उनके पिछले आंदोलनों के चलते मराठी वोटों पर उनका प्रभाव देखा जा सकता है।
कुल मिलाकर, मनसे की चुनावी एंट्री और रणनीति ने मुंबई विधानसभा चुनावों में एक नई हलचल पैदा कर दी है, जो चुनावी नतीजों को अप्रत्याशित बना सकती है।