महाराष्ट्र की औरंगाबाद पूर्व विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले की दिलचस्प जंग
महाराष्ट्र की औरंगाबाद पूर्व विधानसभा सीट इस बार चुनावी चर्चा का केंद्र बनी हुई है। यह सीट बीजेपी, एआईएमआईएम, और समाजवादी पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबले की ओर बढ़ रही है। कुल 29 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला बीजेपी के अतुल सावे, समाजवादी पार्टी के डॉ. अब्दुल कादरी, और एआईएमआईएम के इम्तियाज जलील के बीच है। तीनों ही उम्मीदवारों ने जनता के मुद्दों पर जोर देते हुए एक-दूसरे पर कटाक्ष किए हैं।
बीजेपी के अतुल सावे की तीसरी बार जीतने की कोशिश
भारतीय जनता पार्टी के अतुल सावे इस सीट पर 2014 से लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं। उन्होंने 2014 और 2019 के चुनावों में एआईएमआईएम के अब्दुल गफ्फार कादरी को हराया था, जो इस बार समाजवादी पार्टी से उम्मीदवार हैं। सावे का कहना है कि उन्होंने क्षेत्र में विकास कार्यों को प्राथमिकता दी है, जैसे सड़कों का निर्माण और पानी की समस्या के समाधान के लिए प्रयास करना। सावे का दावा है कि वे क्षेत्र के लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए करोड़ों रुपये का फंड लाए हैं और उनके नेतृत्व में कई विकास कार्य हुए हैं।
एआईएमआईएम के इम्तियाज जलील का चुनावी मैदान में प्रवेश
इस बार एआईएमआईएम ने अपने पूर्व सांसद इम्तियाज जलील को चुनावी मैदान में उतारा है। जलील एक प्रभावशाली नेता माने जाते हैं और उन्होंने इस चुनाव में जोरदार प्रचार किया है। जलील का कहना है कि बीजेपी ने क्षेत्र में विकास के बजाय नफरत की राजनीति की है। वे जनता को विश्वास दिला रहे हैं कि वे विकास के मुद्दे पर काम करेंगे और क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम के नाम पर वोट न बंटने देंगे। उनका यह भी आरोप है कि महाविकास अघाड़ी गठबंधन ने अपने मराठा उम्मीदवार को बदलकर बीजेपी की मदद की है, ताकि सवेरे जीत हासिल कर सकें।
समाजवादी पार्टी के अब्दुल गफ्फार कादरी की चुनौती
समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अब्दुल कादरी इस सीट पर पहले भी एआईएमआईएम से चुनाव लड़ चुके हैं। पिछले दो चुनावों में उन्होंने बीजेपी के अतुल सावे को कड़ी टक्कर दी थी। 2019 के चुनाव में उन्हें करीब 80,036 वोट मिले थे, जबकि सावे को 93,966 वोट प्राप्त हुए थे। इस बार कादरी सपा के टिकट पर मैदान में हैं, और वे विकास की कमी, पानी की समस्या, और ट्रैफिक के मुद्दों को लेकर बीजेपी पर हमला कर रहे हैं। उनका कहना है कि बीजेपी सिर्फ वादे करती है, लेकिन समस्याएं ज्यों की त्यों बनी रहती हैं।
क्षेत्र की समस्याएं: पानी की किल्लत, ट्रैफिक जाम और गंदगी
औरंगाबाद पूर्व एक शहरी विधानसभा क्षेत्र है, जिसकी आबादी मुख्य रूप से शहर में रहती है। यहां की सबसे बड़ी समस्या पानी की है, जहां कई इलाकों में हफ्ते में एक बार ही पानी आता है। तंग गलियां, गंदगी का अंबार और ट्रैफिक की भारी समस्या भी लोगों के लिए परेशानी का कारण बनी हुई है। अतुल सावे ने अपने कार्यकाल में इन समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रयास करने का दावा किया है, लेकिन उनके विरोधियों का कहना है कि जनता की समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं किया गया है।
जातिगत समीकरण और मुस्लिम वोट बैंक
इस सीट पर जातिगत समीकरण काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मुस्लिम समुदाय का वोट शेयर लगभग 40% है, जबकि दलित समुदाय के मतदाता करीब 16% हैं। इस बार इस सीट पर मुस्लिम समुदाय के दो प्रमुख उम्मीदवार होने से वोटों के विभाजन का डर भी है, जिससे बीजेपी को फायदा मिल सकता है। बीजेपी के अतुल सावे इस लाभ को भुनाने की कोशिश में हैं, वहीं इम्तियाज जलील और अब्दुल कादरी एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं कि वे बीजेपी की मदद कर रहे हैं।
महाविकास अघाड़ी की रणनीति और मराठा आरक्षण का मुद्दा
महाविकास अघाड़ी गठबंधन ने इस सीट पर कांग्रेस को उम्मीदवार दिया है। कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार मधुकर किशनराव देशमुख की जगह लहू एच शेवाले को टिकट दिया है। मराठा आरक्षण भी इस क्षेत्र में एक बड़ा मुद्दा है, और मराठा समुदाय के वोटर्स पर इस चुनाव में इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है। एआईएमआईएम का आरोप है कि कांग्रेस ने बीजेपी की सहायता के लिए मराठा उम्मीदवार को बदला है, जिससे बीजेपी को फायदा मिल सकता है।
पिछले चुनाव का प्रदर्शन
2019 के चुनाव में बीजेपी के अतुल सावे ने एआईएमआईएम के अब्दुल गफ्फार कादरी को 13,930 वोटों के अंतर से हराया था। 2014 में भी दोनों के बीच कड़ी टक्कर थी, जिसमें सावे ने 4,260 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। कांग्रेस उस समय तीसरे स्थान पर रही थी।
निष्कर्ष: कड़ा त्रिकोणीय मुकाबला
इस बार औरंगाबाद पूर्व सीट पर मुकाबला काफी कठिन और दिलचस्प होने की उम्मीद है। बीजेपी के अतुल सावे विकास के दावे के साथ चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि उनके विपक्षी उम्मीदवार उन्हें जनहित के मुद्दों पर घेर रहे हैं। इम्तियाज जलील और अब्दुल कादरी दोनों मुस्लिम समुदाय के नेता हैं और दोनों ने बीजेपी पर निशाना साधा है।
इस चुनाव का परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि मुस्लिम समुदाय के वोट किसके पक्ष में जाते हैं और विकास के मुद्दों पर कौन जनता का विश्वास जीतता है। औरंगाबाद पूर्व विधानसभा सीट का यह चुनाव न केवल स्थानीय राजनीति बल्कि महाराष्ट्र के बड़े राजनीतिक परिदृश्य पर भी असर डाल सकता है।