महाराष्ट्र चुनाव में वोट जिहाद बनाम धर्मयुद्ध का एजेंडा तय, महिला, किसान और आरक्षण के मुद्दों पर सियासी संग्राम
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अब केवल 10 दिन बाकी हैं। चुनाव से पहले सत्तारूढ़ भाजपा, शिवसेना, एनसीपी के गठबंधन महा-युति और विपक्षी पार्टियों कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) के गठबंधन महाविकास अघाड़ी ने अपने-अपने चुनावी घोषणापत्र जारी कर दिए हैं। दोनों ही गठबंधनों ने महिलाओं, किसान, आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन इससे पहले ही महाराष्ट्र की राजनीतिक पार्टियों ने अपना चुनावी एजेंडा स्पष्ट कर लिया था।
महा-युति और महाविकास अघाड़ी के घोषणापत्र
महा-युति ने अपने घोषणापत्र में “बंटेंगे तो कटेंगे” और धारा 370 से संबंधित मुद्दों पर विपक्षी दल कांग्रेस और महाविकास अघाड़ी पर तीखा प्रहार किया है। भाजपा ने संविधान बचाओ सम्मेलन में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे पर हमला बोलते हुए कहा है कि नेता अगर संन्यासी की तरह गेरुआ कपड़े पहनते हैं तो राजनीति से बाहर निकल जाएं। इसके अलावा, भाजपा ने मुस्लिमों को 10% आरक्षण, मौलाना को भत्ता देने जैसी मांगों पर भी अपनी स्थिति स्पष्ट की है।
वहीं, महाविकास अघाड़ी ने जातिगत जनगणना, संविधान की सुरक्षा, दलितों और पिछड़ों के अधिकारों पर जोर देते हुए भाजपा और महा-युति पर हमला बोला है। महाविकास अघाड़ी ने आरक्षण की 50% सीमा हटाने और दलितों तथा आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए सख्त कदम उठाने का वादा किया है।
मुख्य मुद्दे और नारे
उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने “बंटेंगे तो कटेंगे” का नारा महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव में भी बड़े पैमाने पर प्रयोग किया है। इस नारे ने विधानसभा चुनाव का एजेंडा तय कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नारे को आगे बढ़ाते हुए कहा है, “अगर एक हैं तो सुरक्षित हैं,” और कांग्रेस पर आदिवासियों, पिछड़ों और दलितों को बांटने का आरोप लगाया है। भाजपा ने यह दावा किया है कि पिछड़ों और दलितों का बांटकर कांग्रेस आरक्षण छीनने की कोशिश कर रही है।
जातिगत समीकरण और वोटर आधार
महाराष्ट्र की जातिगत संरचना चुनावी परिणामों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार, महाराष्ट्र की आबादी में मराठा लगभग 32%, दलित 14%, मुस्लिम 11.54% और आदिवासी 9.35% हैं, जो कुल मिलाकर लगभग 65% आबादी को बनाते हैं। ये मतदाता लगभग 60% कुल मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में महा-युति को 44% वोट शेयर दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था, जिससे उन्हें 48 में से 31 सीटें प्राप्त हुई थीं। महाविकास अघाड़ी को केवल 17 सीटें मिली थीं।
महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटों में से 30 निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुस्लिम वोट कुल मतदाताओं के 10% से 40% तक हैं, जिन्होंने महा-युति के पक्ष में एकजुट होकर वोट किया था। मुस्लिम वोटों के एकत्रित होने से महा-युति को भारी नुकसान हुआ है, जबकि महाविकास अघाड़ी ने जातिगत जनगणना और दलितों के समर्थन से अपने पक्ष में परिणाम प्राप्त किया है।
भाजपा के चुनावी रणनीति और चुनौतियाँ
भाजपा ने “वोट जिहाद बनाम वोटों का धर्मयुद्ध” को चुनावी एजेंडा के रूप में अपनाया है। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने संभाजीनगर में आयोजित सभा में लोकसभा चुनाव का उदाहरण देते हुए कहा कि धुले, मालेगांव में वोटों के बंटने से बीजेपी उम्मीदवार की हार हुई थी। उन्होंने बालासाहेब ठाकरे को हिंदू सम्राट की उपाधि देते हुए विरोध में कहा कि कुछ लोगों (उद्धव) को उन्हें हिंदू सम्राट कहने में शर्म आती है।
कांग्रेस और महाविकास अघाड़ी की रणनीति
कांग्रेस और महाविकास अघाड़ी ने जातिगत जनगणना, संविधान की सुरक्षा, दलितों और पिछड़ों के अधिकारों पर जोर दिया है। मल्लिकार्जुन खरगे ने संविधान बचाओ सम्मेलन में कांग्रेस के घोषणापत्र में पांच स्तंभों का उल्लेख करते हुए कहा कि महाराष्ट्र की प्रगति और विकास के लिए कृषि, ग्रामीण विकास, उद्योग, रोजगार, शहरी विकास, पर्यावरण और लोक कल्याण पर ध्यान दिया जाएगा। उन्होंने बेरोजगार युवाओं के लिए मासिक वजीफा, स्वास्थ्य बीमा योजना, मुफ्त दवाइयों की उपलब्धता, जातिगत जनगणना और आरक्षण की सीमा हटाने का वादा किया है।
चुनावी परिणामों पर संभावित प्रभाव
जातिगत समीकरण और वोटर आधार ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाई है। मराठा, दलित, मुस्लिम और आदिवासी समुदायों के एकत्रित वोटों ने महा-युति को लोकसभा चुनावों में मजबूत बनाते हुए उन्हें महत्वपूर्ण सीटें दिलाई हैं। हालांकि, जातिगत विभाजन और मुस्लिम वोटों के एकजुट होने से महा-युति को चुनौतियाँ भी सामने आई हैं। महाविकास अघाड़ी ने जातिगत जनगणना और दलितों के समर्थन से अपने पक्ष में मजबूत स्थिति बनाई है, जो आगामी विधानसभा चुनावों में निर्णायक साबित हो सकती है।
निष्कर्ष
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जातिगत समीकरण, चुनावी नारे और पार्टियों की रणनीतियाँ निर्णायक भूमिका निभा रही हैं। महा-युति और महाविकास अघाड़ी दोनों ने अपने-अपने घोषणापत्र में महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया है, जिससे चुनावी माहौल और भी गर्म हो गया है। आगामी चुनावों में जातिगत समीकरण और मतदाताओं का समर्थन ही तय करेगा कि कौन सा गठबंधन सत्ता में सत्तारूढ़ रहेगा और महाराष्ट्र के भविष्य को दिशा देगा।