हाशिमपुरा नरसंहार: 42 बेकसूर मुसलमानों को गोलियों से भूनने वाले कातिलों को मिली ज़मानत
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 1987 के बहुचर्चित हाशिमपुरा नरसंहार मामले में दोषी ठहराए गए आठ व्यक्तियों को जमानत प्रदान की। यह निर्णय जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दिया।
1987 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में घटित इस घटना में प्रांतीय सशस्त्र बल (पीएसी) के कर्मियों ने हाशिमपुरा इलाके से 42 मुस्लिम पुरुषों को हिरासत में लिया था। इन्हें पास की एक नहर के पास ले जाकर गोली मार दी गई और उनके शव नहर में फेंक दिए गए थे।
मामले का कानूनी सफर
इस मामले में मार्च 2015 में दिल्ली की ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के अभाव में 16 पीएसी कर्मियों को बरी कर दिया था। हालांकि, अक्टूबर 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए 16 में से 8 को दोषी ठहराया। दोषियों ने इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जो अभी लंबित है।
आरोपियों के वकील ने दलील दी कि हाई कोर्ट का फैसला “गलत आधार” पर था और 2018 से जेल में बंद दोषियों का आचरण अनुकरणीय रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन्हें जमानत प्रदान की।
घटना का ऐतिहासिक महत्व
हाशिमपुरा नरसंहार भारतीय न्याय प्रणाली और सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण घटना है। वर्षों से यह मामला न्यायिक प्रक्रियाओं और निर्णयों के कारण सुर्खियों में रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय एक बार फिर देश में सांप्रदायिक सद्भाव और न्याय व्यवस्था पर चर्चा को पुनर्जीवित करेगा।
हाशिमपुरा नरसंहार: एक काला अध्याय
हाशिमपुरा नरसंहार भारतीय इतिहास के सबसे वीभत्स सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में से एक है। यह घटना 22 मई 1987 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के हाशिमपुरा मोहल्ले में हुई थी।
घटना की पृष्ठभूमि
1987 में मेरठ सांप्रदायिक दंगों की चपेट में था। शहर में तनाव बढ़ने के बाद स्थिति को नियंत्रित करने के लिए उत्तर प्रदेश प्रांतीय सशस्त्र बल (पीएसी) को तैनात किया गया। इसके तहत हाशिमपुरा, एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र, भी सुरक्षा बलों के निशाने पर आया।
घटना का विवरण
22 मई की रात, पीएसी ने हाशिमपुरा से 50 से अधिक मुस्लिम पुरुषों और किशोरों को हिरासत में लिया। इन्हें ट्रक में भरकर क्षेत्र से बाहर ले जाया गया।
- गाजियाबाद जिले की मुरादनगर नहर पर लाकर उन्हें एक-एक करके ट्रक से उतारा गया।
- पुरुषों को गोली मार दी गई और उनके शवों को नहर में फेंक दिया गया।
- कुछ बचे लोगों ने छलांग लगाकर अपनी जान बचाई और बाद में पुलिस को घटना की जानकारी दी।
इस वीभत्स घटना में 42 निर्दोष लोगों की जान चली गई।
जांच और कानूनी प्रक्रिया
- एफआईआर और जांच: घटना के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की, लेकिन शुरुआत में जांच में ढिलाई बरती गई।
- ट्रायल कोर्ट का फैसला (2015): 28 साल बाद दिल्ली की ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी 16 आरोपियों को बरी कर दिया।
- दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला (2018): हाई कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला पलटते हुए 8 आरोपियों को दोषी ठहराया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई।
- सुप्रीम कोर्ट में अपील (2023-24): दोषियों ने इस फैसले को चुनौती दी, और सुप्रीम कोर्ट ने लंबित अपील के दौरान उन्हें जमानत दे दी।
इस घटना का महत्व
हाशिमपुरा नरसंहार केवल एक अपराध नहीं था; यह भारतीय राज्य तंत्र और सांप्रदायिकता पर गंभीर सवाल उठाता है। इस मामले में पीड़ितों को न्याय दिलाने में हुई देरी ने न्याय व्यवस्था की खामियों को उजागर किया।
आज भी न्याय का इंतजार
1987 के इस मामले को 36 साल हो चुके हैं, लेकिन पीड़ित परिवार आज भी पूर्ण न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह घटना भारत की सांप्रदायिक राजनीति और न्यायिक प्रणाली के लिए एक कठिन परीक्षा के रूप में देखी जाती है।