महाराष्ट्र में इस बार नहीं होगा विपक्ष का नेता, MVA के किसी भी दल को नहीं मिलीं पर्याप्त सीटें
महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नई विधानसभा सत्र की शुरुआत हो गई। पहले दिन 173 विधायकों ने शपथ ली। समाजवादी पार्टी के दो विधायकों ने भी शपथ ली, जबकि ईवीएम के मुद्दे पर विपक्ष के अधिकांश विधायकों ने शपथ ग्रहण का बहिष्कार किया।
विपक्ष की ऐतिहासिक कमजोरी
इस बार के विधानसभा चुनाव में विपक्ष ने बेहद खराब प्रदर्शन किया है। महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के किसी भी दल को मुख्य विपक्षी दल बनने के लिए जरूरी 29 सीटें नहीं मिलीं। चुनाव में सत्तारूढ़ महायुति ने 230 सीटों पर जीत दर्ज की, जिसमें भाजपा ने 132, एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 57, और अजित पवार की एनसीपी ने 41 सीटें हासिल कीं। दूसरी ओर, एमवीए गठबंधन केवल 46 सीटों पर सिमट गया।
कांग्रेस 16 सीटों तक सीमित रही, उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने 20 सीटें जीतीं, और शरद पवार की एनसीपी केवल 10 सीटों पर अटक गई। यह पहली बार है जब विपक्ष का कोई नेता नेता-प्रतिपक्ष का दर्जा पाने में असमर्थ रहा है।
सपा का एमवीए से अलग होना
चुनाव के बाद एमवीए में दरारें साफ दिखने लगी हैं। समाजवादी पार्टी ने एमवीए से अलग होने की घोषणा की। महाराष्ट्र सपा प्रमुख अबू आजमी ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना पर बाबरी मस्जिद विध्वंस को लेकर बधाई विज्ञापन देने का आरोप लगाया। आजमी ने कहा कि शिवसेना और भाजपा में कोई फर्क नहीं है, इसलिए सपा एमवीए का हिस्सा नहीं रह सकती।
विधानसभा में दिखी फूट
शपथ ग्रहण के दौरान विपक्ष के अधिकांश विधायकों ने ईवीएम मुद्दे पर विरोध जताया, लेकिन सपा विधायकों ने शपथ ली। यह घटना एमवीए की कमजोर स्थिति और गठबंधन में बढ़ती खाई को उजागर करती है।
राजनीतिक विश्लेषण
महायुति की भारी जीत और विपक्ष की कमजोर स्थिति महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा बदलाव दर्शाती है। विपक्ष की एकता में कमी और आपसी मतभेद आने वाले समय में उनके लिए और भी चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं।