वक्फ संशोधन बिल 2024: जेपीसी की बैठक में सत्ता पक्ष के संशोधन पारित, विपक्ष का कड़ा विरोध

नई दिल्ली – हाल ही में वक्फ संशोधन बिल 2024 को लेकर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की बैठक संपन्न हुई, जिसमें सत्ता पक्ष द्वारा प्रस्तावित 14 संशोधनों को मंजूरी दी गई, जबकि विपक्ष के 44 संशोधनों को खारिज कर दिया गया। विपक्षी दलों ने इस निर्णय का कड़ा विरोध किया और संसद में इसे लेकर बड़ा सियासी हंगामा देखने को मिला।
जेपीसी के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने जानकारी दी कि छह महीने की चर्चा के बाद सत्ता पक्ष के संशोधनों को बहुमत से मंजूरी दी गई। वोटिंग में सत्ता पक्ष के समर्थन में 16 वोट पड़े, जबकि विपक्ष के प्रत्येक संशोधन को मात्र 10 वोट मिले, जिससे सभी विपक्षी प्रस्ताव अस्वीकृत हो गए। समिति की अंतिम बैठक 29 जनवरी को होगी, जहां रिपोर्ट को औपचारिक रूप से स्वीकार किया जाएगा।
बिल का उद्देश्य और प्रमुख प्रावधान
वक्फ संशोधन बिल 2024 को अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में पेश किया था, जिसका उद्देश्य 1995 के वक्फ अधिनियम में संशोधन कर वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को सुधारना है। 1995 के कानून के तहत वक्फ बोर्ड को इतनी शक्तियां प्राप्त थीं कि वह किसी भी सरकारी या निजी संपत्ति पर दावा कर सकता था। इस कानून के तहत देशभर में लगभग 9 लाख एकड़ जमीन वक्फ बोर्ड के अधीन बताई गई है, जिसमें ऐतिहासिक स्मारक, सरकारी भवन और धार्मिक स्थल शामिल हैं।
नए संशोधनों के तहत वक्फ संपत्ति के निर्धारण का अधिकार अब जिला कलेक्टर से हटाकर राज्य सरकार द्वारा नामित अधिकारी को दिया जाएगा। साथ ही, वक्फ बोर्ड में अब दो गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति अनिवार्य होगी। वक्फ संपत्ति के दाता को यह साबित करना होगा कि वह पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा है।
विपक्ष का विरोध और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
विपक्षी दल, विशेषकर कांग्रेस, इस विधेयक के कई प्रावधानों का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह विधेयक वक्फ बोर्ड की शक्तियों को कमजोर करने और अल्पसंख्यकों के अधिकारों में कटौती करने का प्रयास है। वहीं, सत्ता पक्ष का तर्क है कि इन संशोधनों के जरिए वक्फ बोर्ड के अनियंत्रित दावों और सार्वजनिक संपत्तियों पर उसके नियंत्रण को सीमित किया जाएगा।
हाल ही में एक मौलाना द्वारा महाकुंभ के आयोजन स्थल को वक्फ की संपत्ति बताया जाने के मामले ने इस मुद्दे को और गरमा दिया है। सत्ता पक्ष ने विपक्ष से सवाल किया है कि यदि कांग्रेस या सपा की सरकार होती, तो क्या महाकुंभ के आयोजन स्थल को वक्फ की संपत्ति मान लिया जाता?
आगामी रणनीति और संसद सत्र
जेपीसी की 500 पन्नों की रिपोर्ट में सरकार के रुख और विपक्ष के असहमति पत्र को भी शामिल किया गया है। आगामी बजट सत्र में इस रिपोर्ट को संसद में पेश किया जाएगा, जहां इस पर विस्तृत चर्चा होगी। सरकार का फोकस वक्फ बोर्ड की शक्तियों पर संवैधानिक और कानूनी नियंत्रण लगाने पर है, जबकि विपक्ष इसे अल्पसंख्यक विरोधी कदम बता रहा है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या केंद्र सरकार इन संशोधनों के जरिए वक्फ बोर्ड की शक्तियों पर लगाम लगाने में सफल हो पाती है या नहीं।