कपिल मिश्रा के खिलाफ FIR की मांग पर कोर्ट का बड़ा फैसला, पुलिस पर भी उठाए सवाल

दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े मामले में भाजपा नेता कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग पर बड़ा फैसला सुनाया है। प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट उद्भव कुमार जैन ने शिकायतकर्ता मोहम्मद वसीम को सलाह दी कि वह इस मामले में संबंधित एमपी/एमएलए कोर्ट का दरवाजा खटखटाएं, क्योंकि कपिल मिश्रा पूर्व विधायक हैं।
वसीम के आरोप:
शिकायतकर्ता मोहम्मद वसीम ने आरोप लगाया कि दंगों के दौरान उन्हें और अन्य लोगों को पुलिस ने पकड़कर जबरन राष्ट्रगान और “वंदे मातरम” गाने को मजबूर किया था। उनका दावा है कि कपिल मिश्रा एक गैरकानूनी सभा का नेतृत्व कर रहे थे और उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं। वसीम का आरोप है कि पुलिसकर्मी मिश्रा और उनके समर्थकों का समर्थन कर रहे थे।
कोर्ट की टिप्पणी:
मजिस्ट्रेट ने कहा कि पुलिस की कार्रवाई रिपोर्ट कपिल मिश्रा के खिलाफ आरोपों पर पूरी तरह से चुप है। कोर्ट ने माना कि या तो जांच अधिकारी मिश्रा के खिलाफ जांच करने में विफल रहे या जानबूझकर आरोपों को छिपाने की कोशिश की गई। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि सार्वजनिक जीवन में सक्रिय व्यक्तियों से संविधान के दायरे में जिम्मेदार व्यवहार की उम्मीद की जाती है।
एफआईआर के आदेश:
कोर्ट ने एसएचओ और अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ IPC की धारा 295A (धार्मिक भावनाओं को आहत करना), 323 (चोट पहुंचाना), 342 (गलत तरीके से कारावास) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है।
यह मामला उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान हुई हिंसा और पुलिस पर लगे गंभीर आरोपों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।