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दिल्ली चुनाव: ओवैसी की एंट्री से AAP का खेल बिगड़ा, बीजेपी को मिला सीधा फायदा

नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (AIMIM) ने भले ही कोई सीट नहीं जीती हो, लेकिन आम आदमी पार्टी (AAP) को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। AIMIM ने ओखला और मुस्तफाबाद विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन दोनों जगह हार का सामना करना पड़ा।

AAP को भारी नुकसान, बीजेपी को फायदा

AIMIM की वजह से खासतौर पर मुस्तफाबाद सीट पर आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका लगा। यहां से बीजेपी के मोहन सिंह बिष्ट ने आम आदमी पार्टी के अदील अहमद को 17,000 वोटों से हराया। AIMIM के प्रत्याशी ताहिर हुसैन को 33,000 से ज्यादा वोट मिले, जिससे AAP को सीधे नुकसान हुआ।

2015 और 2020 के चुनावों में आम आदमी पार्टी को मुस्लिम बहुल सीटों पर भारी समर्थन मिला था, लेकिन इस बार AIMIM के उम्मीदवारों ने वोटों में बड़ी सेंध लगाई। मुस्तफाबाद में 2020 में AAP के हाजी यूनुस को 98,000 वोट मिले थे, लेकिन इस बार यह घटकर 67,000 हो गए।

ओखला में भी AIMIM ने दिया कड़ी टक्कर

ओखला सीट पर आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता अमानतुल्लाह खान लगातार तीसरी बार चुनाव जीते, लेकिन उनका जीत का अंतर काफी कम हो गया। 2020 में उन्होंने 70,000 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार यह घटकर सिर्फ 23,000 रह गया।

AIMIM के प्रत्याशी शिफा-उर-रहमान को 40,000 वोट मिले, जिससे साफ हुआ कि मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा AIMIM की ओर शिफ्ट हुआ है।

CAA-NRC आंदोलन का असर

AIMIM ने CAA-NRC आंदोलन से जुड़े उम्मीदवारों को टिकट देकर मुस्लिम वोटरों को भावनात्मक रूप से जोड़ने की कोशिश की।

  • शिफा-उर-रहमान जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र संगठन के अध्यक्ष रहे हैं और CAA विरोधी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं।
  • ताहिर हुसैन 2020 के दिल्ली दंगों में संलिप्तता के आरोप में UAPA के तहत जेल में बंद हैं।

इन दोनों उम्मीदवारों का चुनाव प्रचार “जेल के बदले वोट” और “नाइंसाफी” जैसे नारों पर आधारित था। इनके प्रचार के दौरान भी पुलिस का पहरा लगा रहता था, जिससे इमोशनल अपील और ज्यादा मजबूत हुई।

AAP के खिलाफ नाराजगी क्यों?

  1. CAA-NRC आंदोलन के दौरान अरविंद केजरीवाल के बयानों से मुस्लिम समुदाय में नाराजगी रही। उन्होंने कहा था कि अगर दिल्ली पुलिस उनके नियंत्रण में होती, तो शाहीन बाग का प्रदर्शन तुरंत हटा दिया जाता।
  2. तब्लीगी जमात मामले में AAP के नेताओं की चुप्पी को भी मुसलमानों ने नकारात्मक रूप में लिया।
  3. AAP के शीर्ष नेता, केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और आतिशी सिंह ओखला और मुस्तफाबाद में प्रचार करने नहीं पहुंचे, जिससे यह संदेश गया कि AAP मुस्लिम वोटों को हल्के में ले रही है।

AIMIM के लिए नुकसान नहीं, बल्कि रणनीतिक जीत

हालांकि AIMIM को सीटें नहीं मिलीं, लेकिन वोट प्रतिशत बढ़ने और AAP को नुकसान पहुंचाने में पार्टी सफल रही। असदुद्दीन ओवैसी ने 10 दिनों तक दिल्ली में डेरा डाला, कई पदयात्राएं कीं और AAP को मुस्लिम विरोधी बताया।

AIMIM के नेता तेलंगाना, बिहार और महाराष्ट्र से दिल्ली आकर प्रचार में जुटे। सीटों के लिहाज से भले ही AIMIM को सफलता नहीं मिली, लेकिन राजनीतिक प्रभाव और वोट शेयर के मामले में यह पार्टी के लिए बड़ी उपलब्धि है।

निष्कर्ष

  • AIMIM ने AAP के वोटबैंक में सेंध लगाकर उसे कमजोर किया।
  • बीजेपी को फायदा हुआ और मुस्तफाबाद सीट पर जीत मिली।
  • ओखला में अमानतुल्लाह खान की जीत का अंतर कम हो गया।
  • CAA-NRC आंदोलन का असर वोटिंग पैटर्न पर साफ दिखा।

AIMIM ने दिल्ली में भले ही सीटें न जीती हों, लेकिन उसने मुस्लिम राजनीति में अपनी जगह बनाने और भविष्य की रणनीति को मजबूत करने का संकेत जरूर दे दिया है।

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