Editorial

क्या भारत भाईचारे की विरासत को खो रहा है?

लेखक: सय्यद फेरोज़ आशिक

महाकुंभ का समापन होते ही सोशल मीडिया पर हिंदी फिल्मों के दिवंगत अभिनेता टॉम ऑल्टर का एक पुराना साक्षात्कार देखने को मिला। इस साक्षात्कार में उन्होंने एक दिलचस्प बात साझा की थी। टॉम ऑल्टर ने बताया कि ईरान से एक फिल्म निर्देशक भारत आए थे और दिल्ली के चांदनी चौक को देखकर चकित रह गए थे। उन्होंने कहा कि किसी और देश में ऐसा नजारा नहीं दिखता, जहां मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरजाघर एक-दूसरे के आमने-सामने हों। टॉम ऑल्टर ने इस पर जवाब दिया कि यह भारत की संस्कृति और भाईचारे का प्रतीक है, लेकिन अगर कभी यह आपसी सौहार्द टूट गया, तो हमारे पड़ोसी देश खुश होंगे क्योंकि वे हमेशा से यह मानते आए हैं कि भारत की सहिष्णुता और गंगा-जमुनी तहजीब एक मिथक मात्र है।

इत्तेफाक से इसी साक्षात्कार के बाद टीवी पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कुंभ की सफलता पर खुद की पीठ थपथपाते देखा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 45 दिनों में 66 करोड़ लोग प्रयागराज में संगम स्नान के लिए पहुंचे थे। यह संख्या दर्शाती है कि सनातन धर्म की आस्था में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि यह पहले से और मजबूत हुई है।

धर्म, राजनीति और नफरत का बढ़ता असर

सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोग निश्चित रूप से बढ़ रहे हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि फिर कुछ राजनीतिक दल बार-बार ‘लव जिहाद’ और ‘धर्मांतरण’ जैसे मुद्दों को क्यों हवा देते हैं? क्या यह केवल हिंदू-मुस्लिम समाज के बीच नफरत की दीवार खड़ी करने की कोशिश नहीं है? बिहार में महाशिवरात्रि के दिन एक धार्मिक जुलूस निकाला गया, जिसमें एक झांकी में फ्रिज में रखी हिंदू लड़कियों की कटी हुई लाशों को दिखाया गया था। यह सीधे तौर पर एक विशेष समुदाय के खिलाफ घृणा को बढ़ाने का प्रयास था। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मीडिया केवल उन्हीं घटनाओं को प्रमुखता देता है जिनमें हत्यारा मुस्लिम होता है, जबकि ऐसी घटनाएं हिंदू समुदाय में भी हुई हैं।

ऐसे उकसाने वाले कृत्य समाज में तनाव बढ़ाते हैं। कुछ कट्टरपंथी हिंदू गोरक्षक बनकर मुसलमानों की पहचान के आधार पर उन्हें हिंसा का शिकार बना रहे हैं। हाल के वर्षों में गौहत्या के नाम पर कई निर्दोष मुस्लिम नागरिकों की हत्या हो चुकी है। सबसे दुखद पहलू यह है कि इन हत्यारों को संरक्षण देने वाले हमारे ही राजनेता हैं, जो ‘लव जिहाद’ जैसे कानून बनाकर इस सांप्रदायिक तनाव को और भड़काते हैं।

आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार का खतरनाक चलन

अब स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि मुस्लिम व्यापारियों और रेहड़ी-पटरी वालों को जबरन बाहर निकाला जा रहा है। उत्तराखंड में ऐसे कई गांव हैं जहां मुस्लिम दुकानदारों को ‘लव जिहाद’ और ‘जमीन जिहाद’ जैसे फर्जी आरोपों के चलते बाहर कर दिया गया है। मुंबई में कुछ दिनों पहले अफवाह फैलाई गई कि मुस्लिम बिल्डरों द्वारा बनाई जा रही इमारतें सिर्फ मुसलमानों के लिए हैं। इस तरह की अफवाहें सांप्रदायिक तनाव को जन्म देती हैं और दंगों की चिंगारी भड़काती हैं।

क्या हम भाईचारे को बचा पाएंगे?

भारत हमेशा से विविधता में एकता का प्रतीक रहा है। दिल्ली के चांदनी चौक जैसे स्थान इस बात की गवाही देते हैं कि यहां मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरुद्वारे सदियों से एक-दूसरे के पास खड़े हैं। लेकिन आज हिंदू और मुस्लिम समाज के बीच दूरियां इतनी बढ़ गई हैं कि यह कहना मुश्किल हो गया है कि यह सौहार्द कब तक बना रहेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने एक लेख में लिखा कि महाकुंभ के बाद भारत के विकास का एक नया युग शुरू होगा। लेकिन क्या यह विकास भाईचारे के बिना संभव है? अगर हम इस नफरत की राजनीति से बाहर नहीं निकले, तो वह सपना, जिसके बारे में टॉम ऑल्टर ने बात की थी, हमेशा के लिए टूट जाएगा।

आज जरूरत इस बात की है कि हम धर्म और राजनीति को अलग रखें। भाईचारे को बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है, क्योंकि यही भारत की असली ताकत है। अगर हम इसे बचा नहीं सके, तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

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