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भारत की आज़ादी में मुस्लिम संगठनों की अहम भूमिका

Writer– Feroz Aashiq

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम केवल कुछ चुनिंदा नेताओं या संगठनों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें विभिन्न समुदायों, विचारधाराओं और संगठनों की भागीदारी थी। जब भी स्वतंत्रता आंदोलन का जिक्र होता है, तो मुख्य रूप से महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के योगदान की बात की जाती है। लेकिन यह भी सच है कि भारत की आजादी की लड़ाई में मुस्लिम संगठनों और मुस्लिम नेताओं की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण थी, जितनी किसी अन्य समुदाय की। मुस्लिम नेतृत्व ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बलिदान दिया। अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर से लेकर छोटे-बड़े नवाबों, राजकुमारों, जमींदारों, मौलवियों, उलेमाओं और आम नागरिकों तक, सभी ने इस संघर्ष में अपना योगदान दिया।

स्वतंत्रता संग्राम में मुस्लिम नेतृत्व का योगदान

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई मुस्लिम नेताओं ने अपने विचारों, संघर्षों और आंदोलनों के माध्यम से ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई। इनमें प्रमुख नाम थे – डॉ. जाकिर हुसैन, मौलाना अबुल कलाम आजाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, मौलाना मोहम्मद अली जौहर, मौलाना शौकत अली, मोहम्मद बरकातुल्ला, बदरुद्दीन तैयबजी और हकीम अजमल खान। इन नेताओं ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, बल्कि समाज को जागरूक करने और सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए भी प्रयास किए।

स्वतंत्रता संग्राम में मुस्लिम संगठनों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। जमीयत उलेमा-ए-हिंद, मजलिस-ए-अहरार-ए-इस्लाम, खुदाई खिदमतगार, ऑल इंडिया मोमिन कॉन्फ्रेंस और राष्ट्रवादी मुस्लिम पार्टी जैसे संगठनों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूती प्रदान की।


जमीयत उलेमा-ए-हिंद: आजादी के संघर्ष में अहम भूमिका

जमीयत उलेमा-ए-हिंद की स्थापना 1919 में हुई थी। यह संगठन शुरू में धार्मिक उद्देश्यों के लिए बना था, लेकिन धीरे-धीरे इसने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। इस संगठन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ मिलकर काम किया और देश की एकता और अखंडता के लिए प्रयास किया।

1940 में जब मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग ने अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग उठाई, तब मौलाना हुसैन अहमद मदनी के नेतृत्व में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इसका विरोध किया। मौलाना मदनी ने जोर देकर कहा कि भारत में इस्लाम कोई नया धर्म नहीं है और मुसलमानों को देश विभाजन के लिए नहीं बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के लिए संघर्ष करना चाहिए। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया और स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया।

भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में जमीयत के कई नेता जेल भेजे गए। मौलाना हुसैन अहमद मदनी को भी गिरफ्तार किया गया और उन्हें नैनी जेल में रखा गया। उनका स्पष्ट संदेश था कि आजादी के बाद एक ऐसा भारत बनना चाहिए जहां सभी धर्मों के लोग बराबरी से रहें।


मजलिस-ए-अहरार-ए-इस्लाम: भारत विभाजन का विरोध करने वाला संगठन

मजलिस-ए-अहरार-ए-इस्लाम की स्थापना 1929 में हुई थी। इस संगठन ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया, बल्कि मुस्लिम लीग की बंटवारे की नीति का भी कड़ा विरोध किया। यह संगठन ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सक्रिय रूप से लड़ा और भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की।

सुभाष चंद्र बोस ने 31 अगस्त 1942 को बर्लिन से अपने रेडियो संदेश में इस संगठन का उल्लेख करते हुए कहा था कि “मजलिस-ए-अहरार-ए-इस्लाम एक राष्ट्रवादी मुस्लिम पार्टी है”। इस संगठन ने 1939 में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की थी और यह आजाद मुस्लिम कांफ्रेंस का हिस्सा था। इसका उद्देश्य भारतीय मुसलमानों को कांग्रेस और मुस्लिम लीग की राजनीति से अलग एक नई दिशा देना था।


खुदाई खिदमतगार: अहिंसा के पुजारी बादशाह खान का संगठन

खुदाई खिदमतगार की स्थापना 1929 में खान अब्दुल गफ्फार खान ने की थी। उन्हें “सरहदी गांधी” या “फ्रंटियर गांधी” भी कहा जाता था। यह संगठन अहिंसक संघर्ष में विश्वास करता था और गांधीजी के सिद्धांतों को अपनाकर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल था।

गफ्फार खान ने दुनिया की पहली अहिंसक सेना तैयार की, जिसमें एक लाख पठान शामिल थे। इस संगठन ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कई आंदोलनों में हिस्सा लिया और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक अहम हिस्सा बना।


ऑल इंडिया मोमिन कॉन्फ्रेंस: स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

ऑल इंडिया मोमिन कॉन्फ्रेंस ने भी स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके नेता अब्दुल कयूम वकील एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने कांग्रेस का समर्थन किया और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की मांग का पुरजोर विरोध किया और भारतीय मुसलमानों को देश के साथ खड़े रहने के लिए प्रेरित किया।


राष्ट्रवादी मुस्लिम पार्टी और मौलाना अबुल कलाम आजाद

मौलाना अबुल कलाम आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े मुस्लिम नेताओं में से एक थे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हमेशा हिंदू-मुस्लिम एकता की बात की। वे राष्ट्रवादी मुस्लिम पार्टी के अध्यक्ष थे और स्वतंत्रता संग्राम में अपनी विचारधारा और संघर्ष से महत्वपूर्ण योगदान दिया।


निष्कर्ष: भारत की आजादी में मुस्लिम समुदाय का योगदान अविस्मरणीय

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम किसी एक समुदाय, धर्म या संगठन की देन नहीं था, बल्कि यह पूरे देश की साझी लड़ाई थी। मुस्लिम संगठनों और नेताओं ने इस संघर्ष में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जमीयत उलेमा-ए-हिंद, मजलिस-ए-अहरार-ए-इस्लाम, खुदाई खिदमतगार, ऑल इंडिया मोमिन कॉन्फ्रेंस और कई अन्य मुस्लिम संगठनों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया और भारत की आजादी के लिए बलिदान दिए।

इतिहास को संपूर्ण रूप में देखने की जरूरत है, ताकि स्वतंत्रता संग्राम के हर योगदानकर्ता को उचित सम्मान मिल सके। मुस्लिम नेताओं और संगठनों ने न केवल भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया, बल्कि विभाजन का भी विरोध किया और भारतीय मुसलमानों को देश के प्रति निष्ठावान बनाए रखा। यह आवश्यक है कि हम इस महत्वपूर्ण योगदान को याद रखें और स्वतंत्रता संग्राम की समावेशी विरासत को आगे बढ़ाएं।

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